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________________ साहित्य-समीक्षा २८७ मंत्री थी दि० प्रतिदाय क्षेत्र महावीर जी, जयपुर। ने अपने प्राक्कथन में कामलीवाल के इस पोष प्रबन्ध मूल्य १५) रुपया। की बहुत प्रशमा की है। इस तरह जहाँ यह शोधप्रबन्ध यह एक शोध प्रबन्ध है। इस पर कस्तूरचन्द जी अन्वेषक विद्वानो के लिए महत्व की सामग्री प्रदान करता कासलीवाल को पी. एच. डी. की डिग्री राजस्थान विश्व- है वहा गजस्थानीय ग्रन्थ भण्डारी में प्राप्त दुर्लभ सामग्री विद्यालय ने प्रदान की है। प्रबन्ध की भाषा अंग्रेजी है, का भी परिचय मिल जाता है। महावीर तीर्थ क्षेत्र कमेटी किन्तु उद्धरण सभी संस्कुन हिन्दी मे दिये गए है। ग्रन्थ का यह कार्य अन्यन प्रशमनीय है। समाज को चाहिए छह अध्यायो मे विभक्त है। प्राथमिक कथन में ग्रन्थ कि वह मे ग्रन्थों को मगा कर अंबश्य पढ़ें। लेखन आदि के सम्बन्ध में विस्तृत एव जानने योग प्रकाग ३. युक्त्यनुशासन पूर्वाध-सम्पादक क्षुल्लक गीतलडाला गया है। कागज, स्याही, लेखन, लिखित प्रति की मागरजी और अनुवादक प० मूलचन्द्र जी शास्त्री, प्रकाशक मुरक्षा और वेष्ठन आदि के विपय में लिखा गया है। दि० जन पुस्तकालय मांगानेर (राजस्थान) मूल्य ७५ पैसे । दूमरे अधिकार में ग्रन्थ भण्डारी की स्थापना पर प्रकाा ग्रानार्य ममन्तभद्र के युक्त्यनुशासन (वीरस्तवन) को डालने हुए उत्तर और दक्षिण भारत के भण्डागं का परि- १२ काग्किाग्री का विस्तृत हिन्दी विवेचन है। प्राचार्य चय दिया गया है। नीसरे में राजस्थान के (अजमेर विद्यानन्द की संस्कृत टीका के आधार पर उमका विवेचन जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर और कोटा डिवीजन के) जन किया गया है यदि इसमे मूल कारिकामों के साथ संस्कृत ग्रन्थ भण्डारी का विस्तृत परिचय दिया है। चतुथं अधि- टीका पोर लगा दी जानी पीर कारिका में पाये हर कार में आमेर प्रादि जैन ग्रन्थ भण्डारों की ऐतिहासिक दानिक मन्तव्यों का ऐतिहामिक दृष्टि से तुलनात्मक महत्ता पर प्रकाश डाला गया है। पाचवें में जैन ग्रन्थ विवेचन किया जाता और प्रन्थ को एक ही भाग में रखा भण्डारों में उपलब्ध शोध-सामग्री, पार्ट और प्रिन्टिग का जाता तो यह निम्मन्देह विशेष लाभ प्रद होता । माय में विवेचन किया है । और छठवे मे अनुसन्धान की मामग्री प्रस्तावना भी आजकल के दृष्टिकोण के अनुमार होना का मूल्य प्राकते हुए हिन्दी राजस्थानी भाषामो के लेखको चाहिए । उमस माहित्य की महत्ता का सहज ही बोध हो की रचनाओं का भी परिचय दिया गया है। अन्त के जाता है । छपाई मफाई माधारण है, ग्रंथ मंगाकर अवश्य परिशिष्ट तो बहुत ही उपयोगी है। डा. हीगलाल जी पहना चाहिए । अनेकान्त के २०वें वष को विषय-सूचो १ अग्रवालों का जैन संस्कृति में योगदान-. परमानन्द शास्त्री ९८,१७७,२३३ २ अलोप पाश्र्वनाथ प्रमाद-मुनि कान्ति सागर ५१ ३ प्राचार्य हेमचन्द्र के योगशास्त्र पर एक प्राचीन - दिगम्बर टीका-श्री जुगलकिशोर मुख्तार १०७ ४ अत्मनिरीक्षण-परमानन्द शास्त्री ५ पात्म विद्या क्षत्रियों की देन-मुनिश्री नथमल १६२ ६ एलिचपुर के राजा श्रीपाल उर्फ ईल नेमचन्द धन्नूसा जैन ७ ऋषम जिन स्त्रोत्रम्-मुनि श्री पअनन्दि ४६ कविवर देवीदाम का परमानन्द विलास-. डा० भागचद जैन एम. ए. पी-एच. डी. २८२ कविवर प. श्रीपाल का व्यक्तित्व एवं कृतित्व -डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल १० कारी नलाई की जैन मूर्तियां-पं. गोपीलाल 'अमर' एम. ए ११ केशी गौतम सवादप० बालचन्द सिद्धान्त शास्त्री २८८ १२ कंवल्य दिवस एक सुझाव-मुनि श्री नगराज ७४
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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