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________________ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन २७५ इंडियन कल्चर' प्रकाश में पाया । इमम प्रो० हन्दिकी ने ३. ललित कलाये और शिल्प विज्ञान । यशस्तिलक की सास्कृतिक विशेषकर धार्मिक और दार्श- ४. यशस्तिलककालीन भूगोल । निक मामग्री का विद्वनापूर्ण अध्ययन और विश्लेषण ५ यशस्तिलक की शब्द-सम्पत्ति । प्रस्तुत किया है। प्रथम अध्यायमे वह सामग्री दी गई है जो यशस्निलक मन् १९६० मे वागणसी में प मुन्दरलाल शास्त्री ने के परिशीलन की पृष्ठभूमि के रूप में अनिवार्य है। इम हिन्दी अनुवाद के साथ प्रथम तीन पाश्वासी का सम्मादन अध्याय में तीन परिच्छेद है। पहले परिच्छदमे यशस्तिलक करके प्रकाशन किया है। अन्त में लगभग उतने ही श्रीदेव का रचनाकान, यशस्तिलक का साहित्यिक और सांस्कृतिक के टिप्पण भी दे दिये है। इस संस्करण में सम्पादक ने स्वरूप, यशस्तिलक पर अब तक हुए कार्य का लेखा-जोखा, मूल पाठ को प्राचीन प्रतियो में बहुत कुछ शुद्ध किया है। सोमदेव का जीवन और माहित्य, सोमदेव और कन्नौज के पिछले ५-६ दशको में पत्र-पत्रिकाओं में भी सोमदेव गुर्जर प्रतिहार तथा देवसथ के विषय में मंक्षेप मे प्रावश्यक और यशस्तिलक पर विद्वानों के कई लेख प्रकाशित हुए जान है, जिनमे स्व० ५० नाथूगम प्रेमी, म्व० ५० गाविदगम मोमदेव के जीवन और साहित्य का जो परिचय उपशास्त्री, डॉ० वी० गघवन तथा डॉ. ई. डी. कुलकर्णी लब्ध होता है, उससे उनके उज्ज्वल पक्ष का ही पता के नेव विशेष महत्त्वपूर्ण है। चलता है। नीतिवाक्यामृत और यशस्तिलक उनकी उपयशस्तिलक के अन्तिम नीन प्राप्वामी का प० कनाश- लब्ध रचनाएं है । पण्णबतिप्रकरण प्रादि चार अन्य ग्रथ चन्द्र शास्त्री ने संपादन और हिन्दी अनुवाद किया है, जो अनुपलब्ध है। भारतीय ज्ञानपीठ वाराणमी द्वारा सन् १९६४ के अन्त मे नीतिवाक्यामृत के मस्कृत टीकाकार ने मामदेव को उपासकाध्ययन नाम में प्रकाशित हुआ है। सम्पादक ने कन्नीज के गुर्जर प्रतिहार नरेश महेन्द्रदेव का अनुज बताया मूलपाठ को प्राचीन प्रतियो से बहुत कुछ ठीक किया है। है। यशस्तिलक के दो पद्य भी महेन्द्रदेव और सोमदेव के प्रारम्भ में मंपादक ने छयानबे पृष्ठो की हिन्दी प्रस्तावना सम्बन्धो की और मकेत करते है। उनका अनुपलब्ध ग्रन्थ भी दी है। प०जिनदास शास्त्री, सोलापुर ने श्रुतमागर महेन्द्रमातनिमजला और सोमदेव का देवातनाम भी शायद मूरि की टीका की पूर्ति स्वरूप मस्कृत टीका लिग्बी है, वह इस पोर इगित है । महेन्द्रपाल देव द्वितीय तथा सोमदेव के भी इमके अन्त में मुद्रित हुई है। सम्बन्धो में कालिक कठिनाई भी नही पानी । यशस्तिलक . यशम्तिलक पिछले लगभग बम वर्षों में मेरे विशेप में गजनीति और गासन का जो विशद वर्णन है, उससे अध्ययन का विषय रहा है। हिन्दू विश्वविद्यालय की पी- मोमदेव का विशाल गज्यतन्त्र मोर शासन में परिचय एच. डी उपाधि के लिए लिख गये शोध प्रवन्ध में मैंने म्पाट है। इतनी मब सामग्री होते हुए भी मेरी समझ में इसकी सास्कृतिक मामग्री का विवेचन किया है। मैने मोमदेव को प्रतिहार नरेश महेन्द्रपाल देव का अनुज मानने भग्मक उम सामग्री का विवेचन किया है जिमके विषय के लिए अभी और अधिक ठोग माध्यो की अपेक्षा बनी में इसके पूर्व किमी ने भी प्रकाश नही डाला किन्तु जिमका रहती है। उपयोग भाग्नवप का नवान उपलब्धिया म किया जाना यम्निलक चालुक्यवशीय अरिकेसरी के प्रथम पुत्र चाहिए। वद्यग की राजधानी गगधारा में रचा गया था। परिकेमरी अपने शोध-निष्का को मैन मव पाच अध्यायों में तृतीय के एक दानपत्र से सोमदेव और चालुक्यो के समेटा है मम्बन्धो का और भी दृढ निश्चय हो जाता है। चालुक्य १. यशस्तिलक के परिशीलन की पृष्ठभूमि । वा दक्षिण के महाप्रतापी गष्ट्रकूटो के अधीन मामन्त २. यगस्तिलककालीन सामाजिक जीवन । पदवी धारी था। याम्निलक गष्ट्रकूट मंस्कृति को एक
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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