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________________ २४६ अनेकान्त उसके पैरों के नीचे बैठा है। आम्रवृक्ष पर बाइसवे के दाये और नीचे के बाये हाथ में वीणा ले रखी है। तीर्यवर नेमिनाथ की छोटी-सी पद्मासन प्रतिमा है। वृक्ष वाहन अस्पष्ट है । नीचे एक भक्त उसकी पूजा कर रहा के दोनों ओर खड़ी एक-एक विद्याधरी पुष्पवृष्टि करती है और प्रतिमा के ऊपरी छोरों पर विद्याधर पुष्पमालाएँ हुई दिखाई गयी है । अम्बिका की पूजा करने वाली एक लिए उड़ रहे हैं। स्त्री उसके दाये ओर है। पूजा करने वाला पुरुष उसके ३५. महावतयुक्त हाथी, (००६६), २० से.मी. बाये ओर हाथ जोड खड़ा है । स्त्री बहुत से आभूषण यह किसी तीर्थकर-प्रतिमा का खण्डित ऊपरी भाग पहिने है और पुरुष की हल्की सी दाडी है। है। एक हाथी दाये बैटा हुआ है, उसकी पीठ पर घण्टा ३३. अम्बिका और पद्मावती, (२५८१). ४८ से मी. लटक रहा है । दो दिव्य पुरुष हाथी पर सवार है। हाथी यह किसी जैन मन्दिर की चौखट का खण्ड है । इसके के सामने भी एक पुरुष खडा है। ओर के प्राधे भाग में कोई तीर्थकर पद्मासन मे शंव और वैष्णव के अतिरिक्त अन्य हिन्दू देव-देवियो मासीन है जिनके दोनो योर एक-एक तीर्थकर कायोत्सर्गा- की मूर्तियां भी कारी तलाई में विपुल मात्रा में प्राप्त सन मे ध्यानस्थ खड़े है। धुर-छोर पर मकर और पुरुप होती है। इनके कुछ अत्यन्त मनोरम नमूने रायपुर सनहैं। बायी अंर के आधे भाग मे ऊपर एक विद्याधर है। हालय में देखे जा सकते है। खजुराहो की भांति यहाँ भी और नीचे प्रतिमास्थान में अम्बिका और पद्मावती एक अप्सराओं, नायिकायो और शाल-भजिकाग्री प्रादि की साथ ललितासन में बैठी है। अम्बिका की गोद में बालक अधिकता है। यहा अदलील प्रतिमाएं भी प्राप्त होती है, और पद्मावती के मस्तक पर सर्प दिखाया गया है। यद्यपि उनकी सख्या अधिक नहीं है। मकर, नरशार्दूल, ३४. सरस्वती, (२५२४), ७६ से.मी. गजशार्दूल और कीर्तिमुख अादि अलकरण, लोकजीवन के इस अत्यन्त खण्डित प्रतिमा में चतुर्भुजी सरस्वती विभिन्न दृश्य तथा दैनिक उपयोग की विविध वस्तुएं भी देवी ललितासन मे बैठी है। उसके मस्तक और हाथ भी कारी तलाई मे मदिगे की दीवालो पर उत्कीर्ण की गय खण्डित है पर प्रभामण्डल पूर्णतः स्पष्ट है । उसके ऊपर थी। समर्पण और निष्ठुरता मुनि श्री कन्हैयालाल लक्ष्मी ! तेरे जैसी सौभाग्यशालिनी ससार में कोई नही है। तेरी चरण रज पाने के लिए बड़े-बड़े गजा चक्रवर्ती आदि सभी प्रतिष्ठित लालायित रहते है। भला, इस वसुधा मे तेरा स्वागत कौन नहीं करता। तेरी शुश्रूषा के लिए अमीर-गरीब सभी अपना सम्पूर्ण जीवन तेरे चरणो में समर्पित किए चलते है। तेरे लिए ठिठुरती हुई सर्दी, कड-कड़ाती हुई बिजली व चिलचिलाती गर्मी मे भी मनुष्य भटकते रहते है। भूख और प्यास को भी भूल जाते है । खाते, पीते, सोते, जागते तेरा ही ध्यान करते है । तेरी रक्षा के लिए नगी तलवारो का पहरा लगता है। दो-दो तालों वाली तिजोरियां तेरे विश्रामार्थ शय्या बनती है। अपनी प्राण-रक्षा की अपेक्षा तेरी रक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण समझी जाती है। रहने के लिए अच्छे-से-अच्छा स्थान तुझे मिलता है । मौका आने पर तेरा स्वामी तेरे पर प्राण न्योछावर करने को भी तैयार रहता है और तुझे किमी भी प्रकार का कष्ट नहीं होने देता। चपले! इतना होते हुए भी तू अपनी चचलता का परित्याग नहीं करती। आज कही, तो कल कही ? लक्ष्मी! तू क्यो भूल रही है ? क्या तुझे यह ज्ञात नही है कि अस्थिर मनुष्यों को ससार मे क्या गति होती है और उनका सम्मान कैसे होता है ? हन्त ! समय पर तू किसी की भी सहयोगिनी नही बन सकती है और न किसी के कष्टों को भी दूर करने का प्रयत्न करती है। क्या यह तेरी कृतघ्नता और निष्ठुरता नहीं है ?
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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