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फारी सलाई की बंन मतियां
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देवियों को प्रतिमाएं अधिकांग में है। तीर्थंकरों में भी खण्डित है। इन्द्रो के ऊपरी भाग भी खण्डित हैं। चौकी प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की प्रतिमाएं सर्वाधिक हैं। के ऊपरी भाग पर दाएं यक्ष गोमुख और बाएँ यक्षी विशेष प्रतिमाओं मे द्विमूर्तिकाएँ, त्रिमूर्तिकाएँ, सर्वतोभद्रि- अम्बिका की छोटी-छोटी प्रतिमाएं है। सिंहों की पीठ काएँ और सहस्रकूट जिन चैत्यालय की प्रतिकृति की प्रति- प्रापस मे सटी हुई है और उनके पास एक-एक पुजारी माएँ उल्लेखनीय है। इनमें से कुछ प्रतिमाएं स्थानीय लाल खडा है। शेष पूर्ववत् । पत्थर की और कुछ सफेद बलुवा पत्थर की है। जैसा कि ४. ऋषभनाथ (२५६४), ६८.५ से. मी. कहा जा चुका है, यहाँ की अधिकांश प्रतिमाएँ यही, इस सफेद बलुमा पत्थर की पद्मासन प्रतिमा का गले अत्यन्त अस्त-व्यस्त एव खण्डित स्थिति में बिखरी पड़ी है। के ऊपर का भाग खण्डित है। कन्धों पर जटाए लटक कुछ प्रतिमाएँ अासपास के लोग उठा ले गये है" । यही रही है। इसे मूलनायक मानकर इसके दाएँ पद्मासन और की एक, बाइसवे तीर्थकर नेमिनाथ की शासन देवी बाए कायोत्सर्गासन तीर्थकर उत्कीर्ण किए गये है । यक्षी अम्बिका की प्रतिमा, कारी तलाई के समीपवर्ती ग्राम चनेश्वरी है, अम्बिका नहीं । शेष पूर्ववत् । करनपुरा में एक वृक्ष के नीचे रख दी गई है जिसे स्थानीय ५. ऋषभनाथ, (२५४८) ११२ से. मी. गोड़ लोग खेरमाई के नाम से पूजते है। यहाँ की कुछ यह प्रतिमा पद्मासन है और उसका मुख खण्डित है । प्रतिमाएं महन्त घासीदास स्मारक संग्रहालय, रायपुर में सिहो के जोडे के साथ हाथियों का जोड़ा भी बनाया गया प्रदर्शित है जिनमें से कुछ का संक्षिप्त विवरण यह है -- है। शेप पूर्ववत् । १. ऋषभनाथ, (२५२७)", १३५ से. मी.
६. ऋषभनाथ, (२५२५), १०२ से. मी. तीर्थकर ऊंची चौकी पर पद्मामन में ध्यानस्थ बैठे है। सफेद बलमा पत्थर की बनी यह प्रतिमा खाण्डत हान
ण्डत है। श्री वृक्ष, प्रभा- के साथ ही प्रकृति के दुष्प्रभाव से गलकर भद्दी हो गयी मण्डल, तीन छत्र, महावतयुक्त हाथी, दुन्दुभिक और है। श्री वृक्ष जटाएं और वृपभ चिह्न अकित है। पुष्प वृष्टि करता हा विद्याधर युगल तथा उनके नीचे ७ऋषभनाथ और अजितनाथ, (२५८६), १०७ से. मी. चमरधारी इन्द्र अकित है। चोकी अलकृत है। उम पर
सफेद बलुआ पत्थरकी इस द्विमूर्तिका मे दोनो तीर्थकर पडा झल पर ऋषभनाथ का चिह्न बृपभ है। वृपभ के कायोत्सर्गासन में है। दोनो के प्रातिहार्य और परिकर पृथक नीचे चौकी के ठीक मध्य मे धर्मचक्र बना है जिसके दोनो
पृथक् हैं। चौकी के नीचे एक छोटा लेख उत्कीर्ण है पर पोर एक-एक सिह है। सिहासन के दाहिने छोर पर
वह अत्यन्त खण्डिन हो गया है दोनो मूर्तियों के मुख तथा ऋषभनाथ का शासन देव गोमुख और बाएं छोर पर उनकी
हाथ खण्डित है। शामन देवी चक्रेश्वरी की ललितासन में बैठी प्रतिमाएँ है।
८. अजितनाथ और संभवनाथ, (२५५७), १३८ से. मी. २. ऋषभनाथ, (३५७६), १३२ से. मी.
लाल बलुया पत्थर की इस विशाल द्विमूर्तिका में यह उपर्युक्त प्रतिमा के समान है किन्तु इसका मस्तक
द्वितीय और तृतीय तीर्थंकरों की कायोत्सर्गासन मे स्थित अखण्डित है केश घुघराले है । चक्रेश्वरी अपने वाहन गरुड
प्रतिमाएँ है। दोनो के मस्तक और हाथ खण्डित हैं । प्रातिपर आसीन है।
हार्य और परिकर है। तीर्थकरो के चरणों के पास बैठे ३. ऋषभनाथ, (००३३), ७४ से. मी.
भक्तजन उनकी पूजा कर रहे है । कला अत्यन्त उच्चकोटि इस पद्मासन प्रतिमा का मस्तक और दोनों घुटने
की है। १०. कटनी के पं० कजीलाल जी ने कारी तलाई से एक . पृष्पबन्त और शीतलनाथ, (२५५६), १०७ से. मी.
सर्वतोभद्रिका प्रतिमा लाकर अपने बगीचे मे रखी है। यह द्विमूर्तिका प्रतिमा सफेद बलुमा पत्थर की हैं ।
जन सन्देश, १२।११।१६५६, पृ० ६, कालम १। इसमे नौवें और दसवें तीर्थकर खडे हैं। नौवें का दायाँ ११. कोष्ठकके अन्दर के अंक रायपुर संग्रहालयके क्रमांक हैं और दसवें का बायां हाथ खण्डित है । शेष पूर्ववत् ।