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अप्रवालों का जन सस्कृति में योगदान
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नही है।
सिह और बिहारीदास के सत्समागम से ही जैनधर्म के प्राकृप्ट हुए थे। मौर तभी ग्रन्थ रचना की और भी रहस्य को पाकर विद्वान बने थे। बिहारीदास के नाम से चित्त लगाया था। मापकी निम्न रचनाएं प्रवलोकन में अनेक पद उपलब्ध होते है । संभवत: वे इन्ही के हो। यह माई है उनके नामादि निम्न प्रकार है :थानतराय के समकालीन है।
१. भक्तामर कथा स. १७३९, २. सम्यक्त्व कौमुदी सोलहवें कवि मानसिंह है। संभवतः यह प्रागरा मे
स. १७४६, ३. श्रीपाल विनोद (सिद्धषक कथा) स. जोहरी थे। बड़े ही सरल हृदय, विद्वान और अध्यात्म
१७५० पौरगजेब के राज्यकाल मे बनाकर समाप्त किया चर्चा में रस लेते थे। इन्होंने भी द्यानतराय को जैन
है । यद्यपि यह संस्कृत रचना का पद्यानुवाद मात्र है, फिर सिद्धान्त का परिज्ञान कराया था। और भगवतीदास
भी मरस है । और दोहा, चौपाई, सोरठा, परिल्ल पादि पोसवाल के साथ-साथ द्रव्य संग्रह का भी पद्यानुवाद
अनेक छन्दो के १३५४ पद्यो में रचा गया है, कवि ने किया था। जैसा कि उसके निम्न वाक्य से प्रकट है।
उसकी प्रशस्ति में अपना निम्न परिचय दिया है :इहि विधि ग्रंथ रच्यो सुविकाम, मानसिंह व भगोतीदाम यह पद्यानुवाद माघ मुदो दशमी को किया गया है१ ।
"नाम कथा श्रीपाल विनोब, पढत सनत मन होय प्रमोब। कवि मानसिंह का यह प्राध्यात्मिक पद (गीत) कितना
जाति वानिया अग्गरवार, गोत्र अठारह मे सिरबार। सरम और भावपूर्ण है इसे बतलाने की अावश्यकता
गर्ग गोत्र जदुवश प्रधान, अनखचून मुझ अल्लि महान ।
परदादे को मडन नाम, कुलमान हो सो पाम । जगत गुरु कब निज प्रातम ध्याऊं ॥
दावो पारस तासु समान, यथा नाम जैसे गुणजान । नग्न दिगम्बर मुद्रा धरिक, कब निज प्रातम ध्याऊ ।
दरिगहमल्ल तात मुझ तनों शील ममेव सवर्शन मनो। ऐसी लब्धि होइ कब मोकों, हो वा छिन को पाक ॥१
ताको अनुज विनोदीलाल, मै यह रचना रची विशाल । कब घर त्याग होऊ बनवासी, परम पुरुष लौ लाऊ ।। रहो अडोल जोड़ पदमासन करम कलंक खपाऊ ॥२
सवत मत्रह से पचाम, द्वंज उजारी अगहन मास । केवलज्ञान प्रगट कर अपनो, लोकालोक लखाऊ ।
रवि वामर पाई शभघरी, ता दिन कथा सपूरन भई।" जन्म-जरा-दुख देय जलांजलि, हों कब सिद्ध कहाऊं ॥
४. चौथी रचना राजुल पच्चीमी है, जिसमे नेमिनाथ सुख अनंत विलसौं तिह पानक, काल अनंत गमाऊ। और गजमति का वर्णन है। पाचवी रचना नेमिनाथ 'मानसिंह महिमा निज प्रगटे, बहुरि न भव में पाऊं ॥४ घाहला-यह कवि की छोटी मी मरस रचना है, इसमें
मानसिह रत्नपरीक्षक जोहरी थे, और अध्यात्म चर्चा मिनाथ की पारातका चित्रण किया गया है। पशु पक्षियों में विशेप रस लेते थे। वे अच्छे कवि भी थे । कवि की को बाडे मे बन्द देखकर मोर उनकी करुण पुकार सुनकर अन्य रचनामी का अन्वेषण करना चाहिए।
हिमा मे भयभीत हो वैराग्य ग्रहण किया, और भौतिक सबर्वे कवि विनोदीलाल है। इनके परदादा का मुखों का परित्याग कर मानव कल्याण के लिए उनका नाम 'मंडन' और दादा का नाम 'पारम' था। और पिना तपस्या के लिए चला जाना मच्चा पूरुपार्य है। कवि ने का नाम 'दरिगह मल्ल' था। विनोदीलाल जैन सिद्धान्न वर की वेप-भूपा का वर्णन निम्न पद्य में किया है :के अच्छे विद्वान और कवि थे। कवि ने अपने विषय में मोर धरो सिर दूलह के कर ककण बांध बई कस होरी। लिखा है कि-" पन प्रायु वृथा मुझ गई, तीजे पन कछु कुंडल कानन में झलके प्रति भाल में लाल विराजति रोरी। शुभ मति भई।" इससे स्पष्ट है कि आयु के दो भाग मोतिन की लड़शोभित है छवि देखिल वनिता सब गोरी। बीत जाने पर कवि जैनधर्म की पोर विशेष रूप से लाल विनोदी साहिब के सुख देखनको दुनियाँ उठ बोरी॥ १ संवत सत्रह से इकतीस, माघ सुदी दशमी शुभदीस। नेमिनाथ की विरक्ति का चित्रण निम्न पद्य में मंगल करण परम सुखधाम, द्रव्य संग्रह प्रति करहुप्रणाम ।७ किया है