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________________ विषय पृष्ठ १७२ विषय-सूची श्री अमृतचन्द्र सूरिकृत एक अपूर्व ग्रंथ क्रमांक डा० ए. एन. उपाध्ये १. शान्तिनाथ स्तोत्रम्-मुनि श्री पद्मनन्दि १४५ - ___मुनि श्री पुण्यविजय की ज्ञानाराधना से विद्वत्समाज 3 २. मन्वसोर में जैनधर्म-40 गोपीलाल 'प्रमर' पूर्ण परिचित है । कितने ही प्राचीन ग्रन्थों का जीर्णोद्धार, एम० ए० स शोधन और प्रकाशन उनके शुभ हस्त से हुपा है। ३. तृष्णा को विचित्रता-श्रीमद्राजचन्द्र प्रभी ज्ञानपचमी के शुभ दिन उनका कृपा पत्र मुझे १५० मिला है। उसमे वे कहते है४ सागारधर्मामृत पर इतर श्रावकाचारों 'मैं कुछ कार्य के लिए डे ला का ज्ञानभण्डार को देखने का प्रभाव-२० बालचन्द्र सि० शास्त्री १५१ गया था। वहाँ पर ताडपत्र में लिखा हा प्राचार्य श्री ५. प्रात्मविद्या क्षत्रियों की देन- मुनिश्री अमृतचन्द्र मूरिकृत अपूर्व ग्रन्थ देवा। श्री अमृतचन्द्राचार्य नथमल १६२ की इस कृति का उल्लेख पापको प्रस्तावना मे नहीं मिला। ६. श्री अंतरिक्ष पाश्वनाथ बस्ती मन्दिर अत. प्रतीत हुया कि श्री अमृतचन्द्राचार्य की यह कृति तथा मूल नायक मूनि शिरपुर | अज्ञात ही है। अन्य का नाम हैप० नेमचन्द धन्नूमा जैन न्यायतीथं शक्तिमरिणतकोश अपर नाम लघुतत्त्वस्फोट ७. कवि देवीदास का परमानन्द विलास ___ इमम पच्ची-पच्चीस पद्यात्मक पच्चीस पच्चीसियाँ डा० भागचन्द जैन एम० ए० पी० है । अर्थात पञ्चविशनि पञ्चविशिकाये है । इसकी रचना एच० डी० पालंकारिक एव प्रामादिक है । थोडे ही समय में इसकी ८. अग्रवालों का जैन सस्कृति में योगदान-- प्रेसकापी-पाण्डुलिपि हो जायगी। बाद मे विद्यामन्दिर की परमानन्द जैन शास्त्री ओर ने प्रकाशिन किया जायगा।' थावक और धाविकानो मे श्री अमतचन्द्र का खाम ६. भगवान महावीर गोर बुद्ध का परि स्वाध्यायी बहुत है। इस वार्ता में उनका समाधान होगा निर्वाण-मुनि श्री नगराज १८७ -ग्रथ यथाशीघ्र प्रकाशित किया जायगा । और कई जगह १०. श्री अमृतचन्द्र सूरिकृत एक अपूर्व ग्रन्थ इस ग्रथकी प्रति किमी को परिचित हो तो सूचना दीजिये । श्री डा० ए० एन० उपाध्ये टाइटिल पेज २ मुनिश्री पुण्यविजय जी की उमर ७३ वर्ष है, और अभी उनके मोतियाबिदुका ऑपरेशन होने वाला है । उनसे अभी पत्र व्यवहार करके उन्हे कष्ट देना ठीक नही-यही विनती है। अनेकान्त का वार्षिक मूल्य ६) रुपय। अनेकान्त को सहायता एक किरण का मूल्य १ रुपया २५ पै० __ बाबू नानालाल जी के. मेहता, एडवोकेट मनेकान्त के बड़े प्रेमी है। शुरू में अनेकान्त के सदस्य है । आपने इस वर्ष पर्युषण पर्व मे अनेकान्त के लिये दश १०) रुपया सम्पादक-मण्डल भेजे है। इसके लिये वे धन्यवाद के पात्र है। प्राशा है अन्य डा० प्रा० ने० उपाध्ये विद्वान भी इसका अनुकरण करेंगे । व्यवस्थापक 'अनेकान्त' डा. प्रेमसागर जैन श्री यशपाल जैन अनेकान्त मे प्रकाशित विचारो के लिए सम्पाव मण्डल उत्तरदायी नहीं है। -यवस्थापक अनेकान्स *
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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