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अनेकान्त
[च] उत्तरचर- मुहतेपूर्व भरिणी उदित नहीं हुमा है. इसमे अरस्तू की हेत्वनुमान संबंधी सभी उपलब्धियां तथा
क्योकि अभी कृतिका ऊपर नही है। सीमानो से अधिकांशतः मुक्ति मौजूद है। [a] सहचर- समतुला का एक छोर उन्नाम नहीं है।
(ज्ञानपुर-वाराणसी) क्योकि दूसरा छोर नाम नहीं है।
सहायक ग्रन्थ सूची (Bibliography) ४. अनुपलब्धि विरुद्ध हेतु
1. Aristotle--Anal Priora [क] कार्य- इस प्राणि मे व्याधि विशेष है,
2. F.H. Bradley-Principles of Logic क्योकि निगमय चेष्टाएँ नहीं है।
3. Welton-Intermediate Logic [ख] कारण- इसमे दुःख है,
4 Joseph -An Introduction to Logic क्योकि इष्ट संयोग नही है।
5. LS. Stabling-A modern Introduction to [ग] स्वभाव- सभी वस्तुएं अनेकान्त धर्मी है,
Logo क्योकि उनमे एकान्त स्वभाव नहीं है। 6 JS mill-Logic
7. C.R. Jain-Science of Thought इस प्रकार सक्षेप में, उपलब्धि के दोनों प्रकागे में ७-७ उपप्रकार और अनुपलब्धि में अविरुद्ध के ८ तथा ।
8. P.K. Jain-Jaina and Hindu (Nyay.)
Logic-a cumparative study विरुद्ध के ३ उपप्रकार किए गए है।
9. माणिक्यनन्दि-परीक्षामुपम उपसंहार
10. हेमचन्द्र-प्रमाण मोमासा उपयूकस विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता || अन्नमभद्र-तकं सग्रह है, कि जैन तक के क्षेत्र में किसी वर्ग ये नगास्त्रियों में 12 गौतम-न्यायमूत्र पीछे नही है। देवनमान की विद चर्चा और उसका 13. प्रमाणनय तत्वालोकालका उहापोह महिन विवेवन जैनदन की महान् उपलब्धि है। 14 अननबार्य-प्रमेय रत्नमाला
स्व-पर सम्बोधक पद
मानत क्यों नहि रे, हे नर । मीत्र सयानी । भयो प्रचेत मोहमद पोक, अपनी सुधि विसरानी टंक दुखी अनादि कुबोध अव्रत ते, फिर तिनमों रति ठानी। ज्ञानसुधा निज भाव न चास्यो, पर परनति मति मानी ॥१॥ भव प्रमारता लखै न क्यों जह, नृप ह कृमि विट थानी । सधन निषन नृप दास स्वजन रिपु, दुखिया हरि से प्रानी । २। देह येह गद गेह नेह इम, है बहु विपति निसानी।। जड मलीन छिन छीन करमकृत, बषन शिव-मुख-हानी ॥३॥ चाह-ज्वलत ईधन-विधिवन-धन, प्राकुलता कुलखानी । शान-सुधारस-शोषन रवि ये, विषय अमित मृतुवानी ॥४।। पों लसि भक्तन-भोग विरचि करि, निजहित सुन जिनवानी । तजस राग बौल प्रब, अवसर, यह जिनचन्द्र बसानी ॥५॥
विवर दौलतराम