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________________ अनेकान्त इस बार भी मानसिंह ने धन देकर तथा पुत्र को भेजकर सन् १५१२ (वि. स. १५६६)२ में राजा मानसिह सलह कर ली। सन १५०५ में सिकन्दर ने ग्वालियर पर के राज्य में गोपाचल में श्रावक सिरीमल के पत्र चतरूने पनः प्राक्रमण किया। अबकी बार ग्वालियर की सेना नेमीश्वर गीत की रचना ४४ पद्यों में की है। यह ग्रन्थ ने उसके दांत खट्टे कर दिये । उसकी रसद काट दी गई, आमेर भडार में सुरक्षित है। जिसमें जैनियों के २२वें और वह बड़ी दुरावस्था के साथ भागा। पश्चात् सन् तीर्थकर नेमिनाथ का जीवन परिचय प्रकित है। १५१७ तक मानसिंह को चैन मिला। परन्तु इस बार तोमरवंश का अन्तसिकन्दर पूर्ण तैयारी के साथ ग्वालियर पर हमला सिकन्दर के बाद इब्राहीम लोदी दिल्ली की गद्दी पर करना चाहता था किन्तु सिकन्दर मर गया। बैठा। राज्य सभालते ही उसकी महत्वकांक्षा ग्वालियर मानसिंह का कलाप्रेम लेने को हुई। उसे अपने प्रपिता वहलोल लोदी और पिता मानसिंह ने मृगनयना गुजरी के लिए गूजरी महल सिकन्दर लोदी के प्रसफल होने की बात याद थी ही। बनवाया। और 'मान कुतूहल' नाम के संगीत ग्रन्थ को अत: उसने सम्पूर्ण शक्ति तय्यारी में लगाई। उसने रचना की। ग्वालियर का मानमन्दिर (चित्रमहल) हिन्दू ग्वालियर के किले पर घेरा डाल दिया, उसी समय मानस्थापत्य कला का प्रभुत नमूना है। इसका निर्माण सिह की मृत्यु हो गई। मानसिंह के बाद तोमर लोदियों विशुद्ध भारतीय शैली में हुआ है। जिसने मुगल स्थापत्य के प्राधीन हो गए। और मानसिह का बेटा विक्रमादित्य कला को प्रभावित किया है । इस महल को अनुपम चित्रो अपने पूर्वजो की स्वातत्र्य भावना को निभा न सका। से अलंकृत किया है। उनका रग आकर्षक चटकीला है। उपसंहारमानमन्दिर के प्रागनो और झरोखों मे अत्यन्त सुन्दर इस तरह ग्वालियर के तोमर वश में जैन धर्म का ठोस खुदाई का काम है। प्रागन के खभों, भीतो, तोडो और सांस्कृतिक कार्य हुअा है, उसका यहां कुछ निर्देश किया गया गोखों में सुन्दर पुष्पों, मयूरो तथा सिंह, मकर आदि है। मेरा विचार है कि ग्वालियर राज्य में जितने जैन उत्कीर्ण किये गये हैं। बाबर ने भी इस महल की कारी शिलालेख, मूतिलेख है, यदि उनका संकलन कर सका तो गरी की प्रशंसा की है। तत्कालीन विद्वान भट्टारको, राजाओं और धावकों का मानसिह के राज्य समय मे क्या कुछ सास्कृतिक प्रामाणिक इतिवृत्त भी लिखा जा सकेगा। कार्य हुए है। इस सम्बन्ध में यद्यपि विशेष अनुसंधान नहीं हो पाया है तो भी एक दो उल्लेख नीचे दिए जाते ग्वालियर मे पुरातनकाल से जैन सस्कृति के पालक बिद्वान मुनि, भट्टारक और श्रेष्टि जन अपनी शक्ति भर जैन धर्म को समुन्नत करने के प्रयत्न मे लगे रहे है । यही सन् १५०१ (वि० स० १५५८) मे चैत्र सुदी १० सोमवार के दिन गोपाचल दुर्ग मे राजा मानसिंह के कारण है कि वहां जैनियों के पुरातत्त्व की विपुलता है। राज्य में काष्ठासघ नदिगच्छ विद्यागण के भट्टारक सोम मघे नदिगच्छे विद्यागणे भ. श्री सोमकीतिदेवास्तकीर्ति और भ० विजयसेन के शिय ब्रह्मकाला ने प्रमर पट्टे भ० श्री विजयसेन देवास्तत् शिष्य ब्रह्मकाला कीर्ति के षट्कर्मोपदेश की प्रति अपने पठनार्थ लिखाई द षट्कर्मोपदेशशास्त्रं लिखाप्यं प्रात्मपठनार्थ । थी । -प्रशस्ति स० आमेर पृ० १७३ १. अथ नपति विक्रमादित्य सवत् १५५८ वर्षे चैत्र सुदी २. सवतु पंद्रह से दो गने, गुनहुत्तरि ताऊपर भने । १० सोमवासरे प्रश्लेखा नक्षत्रे गोपाचलगढ़ दुर्गे महा- भादी वदि पंचमीवार, सोम नषितु रेवती सार । राजाधिराज श्री मानसिह राज्ये प्रवर्तमाने श्री काटा -ने मीश्वर गीत
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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