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ग्वालिपर के तोमर राजवंश के समय जनधर्म
लिखवा कर भेट किए थे। यह ग्रन्थ बाराबंकी के के 'मात्म संबोध काव्य' की २६ पत्रात्मक जीर्ण प्रति मिली शास्त्रभंडार मे मौजूद है।
है जो संवत् १४४६ की लिखी हुई है। "संवत् १४४८ सवत् १५२१ मे लिपि की गई ज्ञानार्णव की एक प्रति वर्षे फाल्गुण वदि १ गुरौ दिने स्रावग लष्मण कम्मक्षय जैन सिद्धान्त भवन पारा में उपलब्ध है।
विनाशार्थ लिखितं ।" इस प्रशस्ति से स्पष्ट है कि यह भ० गुगभद्र ने अनेक कथामो का निर्माण भी ग्वा. रधु कवि की प्राद्य रचना है। इससे रइधू कवि का समय लियर निवासी श्रावको की प्रेरणा से किया था। इस तरह सं. १४४८ से १५२५ तक का उपलब्ध होता है जिसमे कीर्तिसिंह के राज्य में अनेक सांस्कृतिक कार्य निर्माण किये रचनाकाल सभवतः १५१५ और उसके कुछ बाद तक रहा गये हैं, कीतिसिंह ने स. १५१० से १५३६ तक राज्य किया। है। और प्रतिष्ठाकार्य स. १४६७ से १५२५ तक जान
कीर्ति सिंह के बाद राज्यसत्ता कल्याणमल (मल्लसिंह) पड़ता है। इससे यह तथ्य निकलता है कि रइधू कवि दीर्घ के हाथ में आई थी, इसके राज्यकाल के सांस्कृतिक कोई जीवी थे। इससे वे शतवर्ष जीवी रहे जान पड़ते हैं । उल्लेख नहीं मिले । सिर्फ १५५२ का एक मूर्तिलख उप
मानसिंह लब्ध है।
कल्याणमल का पुत्र मानसिंह अपने पिता के बाद बलहहचरिउ मे मिर्फ हरिवशपुगण (नेमिजिन ग्वालियर की गद्दी पर बैठा था। यह राजा प्रतापी संगीत चरिउ) के रचे जाने का उल्लेख है। इससे स्पष्ट है कि प्रिय और कला प्रिय था। और जिस किसी प्रकार से वलहद्द चरिउ के बाद हरिवंश पुराण की रचना हुई है। अपने पूर्वजों द्वारा संरक्षित एवं संवद्धित राज्य को स्वतत्र हरिवंश पुराण में त्रिषप्ठिशलाकाचरित (महापुराण) रखने में समर्थ हो सका था। इसके राज्य समय दिल्ली मेघेश्वर चरित, यशोधर चरित, वृत्तसार और जीवधर के बादशाह बहलोल लोदी ने ग्वालियर पर भाक्रमण चरित्र इन छह ग्रन्थो का उल्लेख है। इससे ये छह ग्रन्थ करना प्रारम्भ कर दिया। तब मानसिंह ने कूटनीति से भी स १४६६ मे पूर्व रचे गये है।
कभी धन देकर उस संकट से पीछा छुडाया। वह लोल मम्मइजिनचरिउ प्रशस्ति मे मेघश्वर चरित, ' लोदी की मृत्यू सन् १४८६ में हो गई। उसके बाद त्रिषष्टि महापगण, सिद्धचक्रविधि, बलहद्दचरिउ, सुदर्शन सिकन्दर लोदी गद्दी पर बैठा । इसकी ग्वालियर पर दृष्टि चरित और धन्यकुमार चरित नामक ग्रथो का समुल्लेख है। ।
थी ही, परन्तु उसने इम बलिष्ठ राजा की मोर पहले प्रत कहना चाहिए कि ये ग्रथ भी रइधु ने स. १४६६ से
मंत्री का हाथ बढाया। और राजा को घोडा तथा पूर्व किमी ममप चे है। स भवत. ये सभी ग्रथ स. १४६२ पोशाक भेजी। मानसिह ने भी एक.हजार घुड़सवारों के से १४६६ के मध्यवर्ती काल मे रचे गये है। इनसे कवि
माथ अपने भतीजे को भेंट लेकर सुल्तान से मिलने के वर रइध की कविता करने की शक्ति का अंदाज लगाया
लिए वयाना भेजा। इमसे मानसिह कुछ समय तक . जा सकता है।
निष्कटक राज्य कर सका। सन् १५०५ मे तोमरो के __मुझे अभी हाल में जयपुर के मामेर भंडार मे रहधू
राजदूत निहाल से कुद्ध होकर सिकन्दर लोदी ने ग्वालियर १. विज्जुल चंचलु लच्छीसहाउ,
पर प्राक्रमण किया, किन्तु मानसिंह ने धन देकर और पालोइविउ जिणधम्मभाउ ।
अपने पुत्र विक्रमादित्य को भेजकर सुलह कर ली। सन् जिण गंथु लिहावउ लक्खु एकु,
१५०५ मे सिकन्दर ने ग्वालियर पर प्राक्रमण किया, और सावय लक्खा हारीति रिक्खु ।
१. एक सोवनको लका जिसि, तो वरु राउ सबल वरवीर। मुरिण भोजण भुंजाविय सहासु,
भयबल प्रायु जु साहस धीरं, मानसिह जग जानिये । चउवीस जिणालउ किउ सुभासु ।
ताके राज सुखी सब लोग, राज समान करहिं दिनभोग। -जैन ग्रन्थ प्रशस्ति सं० पृ० १४४
जनधर्म बहुविधि चलें, श्रावगदिन न कर पट् कर्म । २. जैन लेखसंग्रह पूर्णचन्द नाहर भाग २
-नेमीश्वर गीत