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________________ वृषभदेव तथा शिव-सम्बन्धी प्राच्य मान्यताएं मनुष्य कपाल, विषधर तथा स्त्री से रहित हैं, शान्त हैं, हैं-भगवान् को संसार में केशव कहा जाता है जो रागी शिव हैं, अहिंसक हैं, राजन्यवर्ग उनके चरणों को पूजा हो [यः के शेषु रागवान् स 'केशवः'२, जो केशों मे अनुकरता है, परोपकारी है, भीति दूर करने वाले हैं, परन्तु रागी हो उसे केशव कहते हैं] परन्तु तुम तो वीतरागी अपने अन्तरग रिपु वर्ग के लिए भयकर है, वामा वियुक्त हो, अतः तुम्हारे अन्दर वह केशवत्व कसे पा सकता है ? (स्त्री रहित) है, परन्तु स्वयं संसार के लिए वाम (प्रति- 'केशव'३ के अन्य प्रश्न मूलक शाब्दिक तात्पर्य को लेकर कूल) हैं, त्रिपुरहारी (जन्म जरा मृत्यु) अथवा मिथ्या- इन्द्र कहते हैं-भगवन् वास्तव में वे ही जड़ हैं जो दर्शन, ज्ञान, चरित्र रूपी त्रिपुर के विनाशक हैं, हर हैं, तुम्हारा उपहास करते है और ऐसे जन का नरक-वास ही धैर्यशाली हैं, निर्मल स्वयं बुद्ध रूप से सम्पन्न हैं, स्वयंभू निश्चित है, भगवान् ! तुम काश्यप हो, जड़ प्राचार से है, सर्वज्ञ है, सुख तथा शान्तिकारी शकर है, चन्द्रधर है, विहीन हो, एकाग्र चिन्ता निरधि पूर्वक ध्यानी हो, आकाश सूर्य है, रुद्र है, उग्र तपस्वियों में अग्रगामी हैं, ससार के अग्नि, चन्द्र, सूर्य, यजमान, पृथ्वी, पवन सलिल-इन स्वामी है तथा उसे उपशान्त करने वाले है, महान् गुणगणों पाठ शरीरो से युक्त महेश्वर हो, परमौदारिक शरीर से से यशस्वी है, महाकाल है, प्रलयकाल के लिए उग्रकाल युक्त हो, कलिकाल के समस्त पाप-पक से मुक्त४ हो, है, गणेश (गणधरो के स्वामी) हैं, गणपतियो (वृषभसेन सिद्ध हो, बुद्ध हो, शुद्धोदनि हो, सुगत हो, कुमार्ग नाशक आदि गणधरो) के जनक है, ब्रह्मा हैं, ब्रह्मचारी हैं, - वेदांगवादी (सिद्धान्तवादी) हैं, कमल योनि हैं, पृथ्वी का २. देखिये, महापुराण १०,५ की टिप्पणी र उद्धार करने वाले प्रादि वराह है, सुवर्ण वृष्टि के साथ ३. केसव ते सब जे पइ हसंति, गर्भ मे अवतीर्ण हुए हैं, दुर्भय के निवारक हैं, हिरण्यगर्भ जड पावपिंड रउरवि वसंति । है, [युग सृष्टा है] परमानन्द चतुष्टय (अनन्त-दर्शन. जय वासव का सव विहि तुमम्मि, अनन्त-ज्ञान, अनन्त-सुख तथा अनन्त-वीर्य) से सुशोभित रंतरू चित्ति णिरोह जम्मि । है, प्रज्ञानान्धकार-हारी है, दिवसनाथ हैं, यज्ञ पुरुष है। जय गयण हुयासण चद रवि, पशु-यज्ञ के विनाशक है, ऋपि सम्मत अहिंसा धर्म के जीवय महि मारुय सलिल । प्रकाशक है१। माधव (अन्तरंग बहिरंग लक्ष्मी के स्वामी) अट्ठङ्ग महेसर जय सयल, है, त्रिभुवन के माधवेश है, मद्य-रूपी मधु को दूपित करने पक्खालिय कलिमल कलिल । वाले मधुसूदन है, लोक दृष्टा परमात्मा है, गोवर्द्धन -महापुराण १०,५ (ज्ञानवर्धक) है, केशव है और परमहंस हैं, इन्द्र कहते तुलना कीजिये: या सृष्टि सृष्य राद्या वहति विधिहुतं या हविर्या च जय परमाणेत चउक्क सोह, होत्री । ये द्वे सन्ध्ये विधत्त श्रुतिविषयगुणा या स्थिता भावंधसारहर दिवसलाह । व्याप्य विश्व । यामाहु 'सर्वबीज प्रकृतिरिति यया जय जण्ण पुरिस पसु जण्णणासि, प्राणिन. प्राणवन्त.। प्रत्यक्षाभि 'प्रपन्नस्तनुभिरवतु रिसि संस अहिंसाधम्मभासि ।। वस्ताभिरष्टाभिरीशः। १. जय माहव तिहुवण माहवेस, -अभिज्ञान शाकुन्तल १, १ तथा मालविकाग्निमित्र ___ महसूयण दूसिय महु विसेस । जय लोयणि पोइय परमहंस, ४. जय जय सिद्ध बुद्ध सुद्धोयणि, गोवद्धण केसव परमहंस। सुगय कुमग्गणासणा। जगि सो केसउ जो रापवंत, जय वइकुण्ठ विठ्ठ दामोयर, तुह णीरायहु, कहिं केसवत्त । हय परवाइ वासणा ॥ -महापुराण १०, ५ -महापुराण १०,
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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