SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माश्रमपत्तन ही केशीराय पट्टन है या। विशेष खोज के लिए अकबरकालीन गौड़-कवि (२) ब्राह्मण सम्प्रदाय के तीर्थों में चर्मण्वती नदी चन्द्रशेखर का 'सुर्जन चरित' उठाकर देखा तो मुझे इस पर स्थित मृत्युजय महादेव सबसे अधिक प्रसिद्ध थे। तीर्थ के महत्त्व का और अधिक भान हुमा। रणथभारेश्वर इनका विशिष्ट नाम अम्बुपथसार्थवाही या जम्बुमार्ग था। हम्मीर ने राजधानी मे यज्ञ न कर इसी महान् तीर्थ में (३) व्यापार की दृष्टि से भी यह नगर महत्वपूर्ण 'कोटिमख' किया था। किन्तु प्रतीत होता है कि सोलहवीं रहा होगा। हम्मीर महाकाव्य ने इसे पत्तन की सज्ञा दी शताब्दी की जनता इसे प्राश्रम-पत्तन न कह कर केवल है और सुर्जन चरित ने पुटभेदन की। जल और स्थल पत्तन या पट्टन कहने लगी थी। तथापि चम्बल के किनारे मार्गों से व्यापार करने वाले नदी किनारे स्थित नगर को उसकी अवस्थिति और पाश्रम-पत्तन की तरह पट्टन में भी पटभेदन कहते हैं । पत्तन शब्द मुख्यतः बन्दरगाह के लिए 'जम्बू मार्ग मृत्युञ्जय' के मन्दिर का अवस्थान इस विचार है चाहे वह मम तट पर दो या नदी तट पर । को दृढ़ करने के जिए पर्याप्त थे कि हम्मीर महाकाव्य का आश्रम नगर के लिए दोनो शब्द उपयुक्त हैं। पाश्रम-पत्तन और सुर्जन चरित का पट्टन वास्तव मे एक (४) रणथंभोर और पाश्रम-पत्तन या पट्टन के बीच ही स्थान है। में पल्ली, तिलद्रोणी नदी, पारियात्र गिरि पर स्थित सुर्जन चरित के पट्रन सम्बन्धी वृत निम्नलिखित हैं : विल्वेश्वर महादेव और षट्पुर आदि स्थान थे। पुरोहितेन न स्वपुरो हितेन, पुरस्कृतभूमिसुरैः परीतः। अब ये नाम कुछ बदल गये हैं। मुझे अपने भतीजे नृपः प्रतस्थे सह पट्टराज्ञा, स पट्टनाख्य पुटभेवनं यत् ॥२२॥ दिवाकर शर्मा, एम० ए० से ज्ञात हुआ कि तिलद्रोणी नवी तिलद्रोणिमदीन सत्वः, स तां जगाहे गहनप्रवाहाम्। अब तिलर्जुनी के नाम से ज्ञात है । इस नदी के पास-पास श्रियं वधान भगुपाद जातां, हिरण्यगर्भ वषत तथान्तः।२६ इन काव्यो मे वणित अन्य स्थान हैं। 'पल्ली' विल्वेश्वर विलोकयामास स पारियात्रं, गिरि पुरारातिमिवावनीशः। महादेव से अढाई मील दूर है। इसे पालाई भी कहा जाता स भूभतं भूमिभतां वरीयान, निषेवितं नाकसदा निकायः३० है। षटपुर को आजकल खटकड़ कहा जाता है। यह मेज बभ्राम बिभ्राणमनल्पतोत्र, तणेजुषां पावनपूर्णशालाः ।३४ नदी पर स्थित है । तिलद्रोगी मेज नदी की सहायक नदी तस्यान्तरे शान्तरजाः स राजा, सुदुर्लभालोकनमन्यलोक। है । और खटकड़ के पास ही मेज नदी मे मिलली है। ब्यलोकय विल्वपलाशिमले, विल्वेश्वरं वल्लभमीश्वराया।३५ यहाँ पर तीन नदियो का सगम होने के कारण इसे ततः पाशाविससोनिकारक त्रिवेणी के नाम से भी पुकारते है। विल्वेश्वर महादेव ___का मन्दिर भी यही पहाड़ की चोटी पर स्थित है। इस स पट्टनात्यं नगरं पटीयः, फलप्रकर्षे विहित क्रियाणाम् । मन्दिर पर शिवरात्रि को मेला लगता है। प्रलचकाराश हृतान्तरायः, सुनीतिवमेव मनः प्रसादः ।३६ उपर्युक्त तथ्यों में परमानन्द जी और दरबारीलाल सुराङ्गनाजित पारिजात-प्रसूनपर्याप्ततरङ्गशोभा। चर्मण्वती शर्ममयप्रवीणा प्रवीणयामास यशांसि यस्य । ०। जी कोठिया प्रादि विद्वानो द्वारा निर्दिष्ट मदनकीर्ति चतुस्त्रिशिका, ब्रह्मदेव रचित बृहद् द्रव्य संग्रह की टीका, चर्मण्वतोवारिणि धर्मपल्या सम समाप्याभिषव सवीरः।। प्राकृत निर्वाणकाण्ड, और उदयकीर्ति कृत अपभ्रश निर्वाण तं जम्युमार्ग विमलोपचारं-रान मृत्युञ्जयमञ्जमूतिम् ।४१ भक्ति आदि जनप्रथों के उल्लेखो को जोड़कर हम यह भी (एकादश सर्ग; मेरी हस्तलिखित प्रति से) कह सकते है कि पाश्रम पत्तन में नदी (चम्बल) के इन दो काव्यग्रंथों के अवलोकन से ये बातें निश्चित किनारे मुनि सुव्रत तीर्थकर का प्रख्यात जिनालय भी हो गई: पर्याप्त प्राचीनकाल से वर्तमान रहा है । चतुस्विशिका के (१) माश्रम-पत्तन नगर किसी समय अत्यन्त पवित्र उल्लेख के आधार पर यह कहना सम्भवतः असंगत न तीर्थ रूप में विख्यात था। राजा यहाँ अपने महान यज्ञ होगा कि ब्राह्मणो से कुछ संघर्ष के बाद ही श्री सुव्रत करते । यहाँ मृत्यु भी परमार्थदायिनी समझी जाती। तीर्थकर की यह प्रतिमा स्थापित हो चुकी थी।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy