SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आश्रमपत्तन ही केशोराय पट्टन है डा० दशरथ शर्मा एम. ए. डी. लिट. श्री परमानन्द जी जैन शास्त्री ने कुछ महीने पूर्व तो सर्वविदित ही है कि चित्तौड़ पर भोज का अधिकार पाश्रम पत्तन या पाश्रमक को ठीक तरह पहचानने की था; और अपने दौर्बल्य के दिनो में भी चम्बल के पाससमस्या मेरे सामने रखी थी। साथ ही मापने बृहद् द्रव्य पास के प्रदेश पर अधिकार जमाए रखने के लिए ये संग्रह पर ब्रह्मादेव की टीका भी मुझे दी। उसके उल्लेखा- रणथभोर के चौहानो से बहुत समय तक झड़प करते 'नसार प्राश्रम नगर मण्डलेश्वर श्रीपाल के अधिकार में रहे। इसलिए स्वयं भोज के समय चम्बल नदी पर स्थित था जो मालवदेश में स्थित 'धारानगरी के माधीश कलि- किसी नगर पर एक परमार मण्डलेश्वर का अधिकार काल चक्रवर्ती भोजदेव का सम्बन्धी था।' इमी नगर में कोई पाश्चर्य की बात न थी। मुनिसुव्रत तीर्थकर के चैत्यालय की स्थिति भी इस टीका इसी विचार से प्रेरित होकर मैं संस्कृत साहित्य की से निश्चित है। मैंने पाश्रम नाम के कुछ प्राचीन स्थान ओर मुड़ा। नयचन्द्र सूरि के हम्मीर महाकाव्य की मैंने ढूंढ निकाले । परमार शिलालेखों से ज्ञात हुआ कि अनेक प्रावृत्तिया की है। पाण्डया जी के लेख के पढने के पाश्रम स्थान ब्राह्मणों की अच्छी बस्ती थी। नागोद बाद मुझे सहसा स्मरण हुआ कि उसमे चर्मण्वती नदी पर रियासत के 'पाश्रम' के विषय में भी पढा । संस्कृत स्थित प्राथम-पत्तन नाम के एक तीर्थ का वर्णन वर्तमान साहित्य में भी कुछ उल्लेख मिले जिनका निर्देश यथा- है। रणथभोर के राजा, हठीले हम्मीर के पिता, जत्रसिंह स्थान किया जाएगा। परन्तु मेरा विचार उस समय तक ने पुत्र को राज्य देकर पाश्रम पत्तन के पवित्र तीर्थ के अनिश्चयात्मक स्थिति में था जब मुझे वीरवागी के इस लिए प्रयाण किया था - वर्ष के स्मारिका में थी दीपचन्द पाण्डया का, "क्या दत्त्वेति शिक्षा शुभबद्धसरव्या, पाटण केशोराय ही प्राचीन पाश्रम नगर है ?" नाम का गेहे च देहे च निरीहचित्तः । लेख पढने का सुअवसर प्राप्त हुमा। इस प्रश्न के उत्तर जंत्र प्रभुः स्वात्महितं चिकीर्षन्, मे मुझे जो सामग्री प्राप्त है उसके आधार पर यह निश्चित श्री प्राश्रम-पत्तनमन्वचालीत् ॥१०६॥ रूप से कहा जा सकता है, "हाँ, प्राचीन पाश्रम-पत्तन ही शिवापि जम्बूपयसार्थवाही, वर्तमान केशोराय पटन हैं।" - विराजते यत्र शिवः स्वयम्भूः । अब पाटन केशोराय राजस्थान में है ? किन्तु चिर- यो ध्यातमात्रोप्यरुभक्तिमार्जा, काल तक चर्मण्वती (चम्बल) नदी के दोनो ओर की दत्ते न कि भुक्तिमिवाशु मुक्तिम् ॥१०॥ भूमि परमार साम्राज्य के अन्तर्गत रही थी। अवन्ति में मज्जच्छचीदृगयुगलीकुवेलजाकर बसने वाली और उस प्रदेश को मालव सज्ञा देने विष्वग्गलत्कज्जलमेचकाम्बु । वाली वीर मालव जाति इसी भूखण्ड से होती हुई चर्मण्वती यत्र सरिद वहन्ती, प्रवन्ति में पहुंची थी। मालव या विक्रम सम्वत् के पुण्यधियो वेणुरिवावभाति ॥१०॥ प्राचीनतम प्रयोग भी दक्षिण-पूर्व राजस्थान में ही मिले (अष्टम सर्प) है। महाराजाधिराज भोज परमार के यशस्वी छोटे भाई किन्तु जैत्रसिंह पाश्रम-पत्तन पहुँच न पाया। उसका रास्ते उदयादित्य के समय का शिलालेख शेरगढ़ (कोटा राज्य) में पल्ली पुरी में देहावसान हो गया। से मिला है। इसका प्राचीन नाम कोशवर्धन दुर्ग था। यह . अब विचार एक निश्चित दिशा में प्रवृत्त हो चुका
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy