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हिन्दी जैन कवि और काव्य
(वि० सं० १८००-१६५०)
डा०प्रेमसागर जैन
मेरे प्रथ-'हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, में १. लाला हरयशराय मध्यकालीन हिन्दी के ६० जैन भक्त कवियों के जीवन हिन्दी के जैन कवि साधु थे या व्यापारी। उन्होंने पौर कृतित्व का निरूपण है । उनके भावपक्ष और कला को कुछ लिखा-स्वान्तः सुखाय था। उसे माजीविका का पक्ष पर विचार है, हिन्दी निर्गुण तथा सगुणमार्गी कवियों माध्यम नहीं बनाया। इसी कारण दरबारी कवि बनने से तुलना है और हिन्दी जैन भक्ति काव्य की प्रवृत्तियों से बचे रहे । उनका काम्य भी नायिकामों के नख-शिख का प्राकलन है। यह मेरा शोध प्रबन्ध था और इसके वर्णन में न डूब सका। यह जन कवियो की मानी-जानी द्वारा मैं हिन्दी विद्वानो के समक्ष एक नई दृष्टि और एक विशेषता थी। नया अध्याय रख सका हैं, ऐसा उन्होंने स्वीकार कविवर हरयशराय भी ऐसे ही एक कवि थे। उनका किया है।
जन्म लाहौर के समीप कसूर नाम के कस्बे में हुमा था। इस 'प्रबन्ध' का समय निर्धारित था। मैंने उसमें राज्य शान्तिपूर्ण था। प्रतिदिन नये नये उपद्रव होते रहते सीमित रह कर ही कार्य किया। समय-वि०स: १४०० इनका परिणाम कहिए या सजा सबसे अधिक व्यापारी से १८०० तक था। शोध के लिए इतना समय पधिक ही वर्ग को भोगनी पड़ती थी। उन्हें धन और गहने जमीन में है। मैंने उसे पूरा किया। ग्रंथ की भूमिका में मैंने स्वीकार गाडने पडते, मोटा-मोटा पहनना पडता और घर के द्वार किया है कि हिन्दी काव्य का निर्माण वि० सं० ११० से बन्द रखने होते या वहाँ से अन्यत्र भाग जाना पड़ता। प्रारम्भ हुमा एक जैन कवि के द्वारा । वह सतत चलता हरयशराय के पिता ने सब कुछ किया। प्रधिक-से-अधिक रहा । जैन कवि लिखते रहे। उन्होंने जो कुछ लिखा, विपतियां झेलकर टिके रहे। किन्तु दुलंध्य भी कही लाषा उसमें भक्ति का अंश अवश्य था-थोड़ा या बहुत । प्रतः जाता है । अन्त में, कसूर छोड़कर दूसरी जगह जाना ही मध्यकाल में वि० सं०१००० से १६०० तक जैन भक्ति पड़ा। वह स्थान नूतन कसूर नाम से प्रसिद्ध हुमा । अवश्य धारा चलती रही। उस पूरे का परिचय, विश्लेषण और ही कसर रहने वाले अपना जन्मस्थान विस्मृत न कर सके प्राकलन अवश्य है। मैंने शोध ग्रंथ की 'भूमिका' और होंगे. इसी कारण ऐसा इमा । स्थानगत मोह प्रबल होता 'परिशिष्ट' में इसके ठोस संकेत दिये थे। विश्वास था कि है। हरयशराय ने बचपन से ही विपत्तियाँ देखीं। उनका इस अवशिष्ट कार्य को कोई अन्य अनुसन्धित्सु पूरा करेगा मर्म बिंध गया होगा। कविता के तारों में हलन-चलन हुई किन्तु ऐसा न हो सका । मेरे पास अनेक शोधक आते हैं- होगी। उपादान शक्ति पी ही। समय पर फूट पड़ी तो पी. एच. डी. की अभिलाषा में। सभी आसान विषय अजवा ही क्या । कवित्व का यही इतिहास है। चाहते है। एक कवि या ग्रंथ की पाकांक्षा करते हैं। हरयशराय श्वेताम्बर जैन थे। पोसवाल जाति और वास्तविक शोध कार्य को अंगीकार करने में हिचकते हैं। गोत्र गान्धी । किन्तु उनके काव्य से स्पष्ट है कि वे जाति उन्हें डिग्री से प्रेम है शोध से नही । तो यह कार्य में स्वयं और सम्प्रदाय से कहीं ऊपर थे। उनका हृदय शुद्ध था, पूरा करूंगा, इसी विचार से यह लेखमाला प्रारम्भ कर निष्पक्ष और तरल । उन्होंने कभी किसी बन्धन को सहेजा रहा हूँ। क्रमशः चलेगी। पूरी हो ऐसा चाहता हूँ। नहीं। फिर वे जाति के घेरे में बंधने वाले जीव भी नहीं