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________________ अनेकान्त प्रवेशद्वार और गर्भगृह गर्भगृह में पूर्व-पश्चिम दीवालों को छूती हुई एक प्रवेशद्वार के दायें द्वारपक्ष पर गंगा का और बायें साधारण वेदी है। इस पर मब कोई प्रतिमा नहीं है पर द्वार पक्ष पर यमुना का अंकन है। प्रत्येक देवी की ऊचाई सर कनिंघम ने वहाँ एक अत्यन्त महत्वपूर्ण पोर विशाल सवा फुट है। गंगा का वाहन मकर मोर यमुना का वाहन प्रतिमा देखी थी२५ जिसे अब प्रयाग-नगर-सभा के सम. कम दिखाये गये हैं। दोनों के एक हाथ में कलश और हालय में देखा जा सकता है।२६ दसरे मे चमर हैं। इनके शरीर का त्रिभंग इस सयम के प्रतिमा का नाम साथ उभारा गया है कि उसकी प्रतिकृति करने में खजु इस प्रतिमा को क्या नाम दिया जाय, यह विशेष रूप राहों का कलाकार भी असफल रहा प्रतीत होता है। से विचारणीय है। स्थानीय जनता इसे इस मन्दिर के दोनों के प्राभूषण विशेष सुन्दर बन पड़े है । गगा के पार्श्व नाम पर 'पतियान दाई' नाम देती है ।२७ सर कनिंघम ने मे यक्ष की एक भामण्डल सहित चतुर्भुज मूर्ति अंकित है इसे 'पतनी देवी' लिखा है २८ और उसका समीकरण जिसका प्रथम हाथ खण्डित है और शेष मे क्रमशः गदा महाराज संक्षोभ के एक२६ और महाराज सर्वनाथ के नाग और श्वान दिखाये गये हैं। इसी प्रकार यमुना के दो३० कांस्य-अभिलेखों में उल्लिखित 'पिष्टपुरिका देवी' पार्श्व में भी एक भामण्डल सहित चतुर्भुज यक्षमूर्ति है। से किया है ।३१ पर यह समीकरण न तो पुरातत्त्व की इसका भी प्रथम हाथ प्रशतः खण्डित है जिसके शेष भाग दृष्टि से सभव है३२ और न भाषा शास्त्र की दृष्टि से३३ । में किसी जानवर की रस्सी अब भी देखी जा सकती है। श्री नीरज जैन का अनुमान भी, इस प्रतिमा के नाम के शेष तीन हाथों में क्रमश: गदा, कमल और नाग अंकित है संबन्ध मे उल्लेखनीय है; 'देवी अम्बिका के पासन पर गंगा और यमुनाके शिरोभाग से द्वार की बगवरी तक सीधे पाषाण पर साधारण बेलबूटे अकित है और चौखट के भा एक पक्ति का लेख है जो अस्पष्ट है। मुनि कान्तिऊपरी भाग पर दोनों ओर फणावलि सहित पार्श्वनाथ की भी ब्राह्मण-देवियां कहने को भूल की है। देखिये, तथा मध्य में प्रादिनाथ की प्रतिमा उत्कीर्ण की गई है। ये ए. मार., ए. एस पाई., जिल्द ६, पृ. ३२ । तीनों प्रतिमाएं पद्मासन में हैं और प्रत्येक की ऊचाई पांच २५. वही, पृ. ३१ और प्रागे। इच है। प्रवेशद्वार पर, गर्भगृह की ही भांति अप्सरामों और २६. इस प्रतिमा के स्थानान्तरित किये जाने की तथा सुन्दरियों प्रादि के अंकन के प्रभाव से स्पष्ट है कि उस कथा के लिए देखिये, अनेकान्त (अगस्त ६३), समय तक कलाकार की छेनी पर सयम का पहरा था। वर्ष १६, किरण ३, पृ० १६ इसके अतिरिक्त सर कनिंघम ने यहाँ एक शिव-पार्वती २७. यह भी सभव है कि प्रतिमा के नाम पर यह नाम की प्रतिमा भी अंकित देखी थी२२ जो अब वहाँ उपलब्ध मन्दिर को मिला हो, जैसा कि प्रायः सर्वत्र होता है। नही है। पर यह निश्चित है कि प्रतिमा शिव-पार्वती की न २८. ए. पार., ए, एस. आई, जिल्द ६, पृ० ३१ । होकर धरणेन्द्र-पद्मावती की थी, क्योंकि उन दोनों प्रकार २६. देखिए, पीछे टिप्पणी ७ पौर ८ । की प्रतिमाओं में कई दृष्टियों से समानता होती २३ और ३०. देखिए, पीछे टिप्पणी , १० और ११ । सर कनिंघम के समय तक जन प्रतिमाशास्त्र प्राय. प्रप्रका ३१. ए., पार , ए, एस, माई, जिल्द १, . ३२ । शित थे अतः उनका यह भ्रम माश्चर्यजनक नहीं।२४ ३२. क्योंकि इन दोनों महाराजों की इष्ट देवी पृष्टपुरिका २२. ए. पार. ए. एस. आई., जिल्द ६, पृ. ३२। पतौरा में नहीं, बल्कि खोह के मास-पास किसी २३. देवगढ में धरणेन्द्र-पद्मावती की सैकड़ो प्रतिमाएँ मन्दिर मे थी। देखिए, उक्त तीनों कांस्य अभिलेखों देखी जा सकती हैं जिन्हें सहसा कोई साधारण के सम्बन्ध में, सी. पाई. माई., जिल्द तीन में पुरापुरातत्त्वज्ञ शिव-पार्वती की प्रतिमा समझ बैठताहै। तात्विक टिप्पणियां। २४. यह सर कनिंघम का भ्रम ही था क्योंकि उन्होंने ३३. 'पिष्टपुरिका' शब्द किसी भी नियम से 'पतियान' या अनलिखित अम्बिकामूर्ति की पाश्र्ववर्ती मूर्तियों को पतनी' शब्द का रूप नहीं ले सकता।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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