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________________ पतियान बाई: एक गुप्तकालीन बन मन्दिर लम्बे, मात फुट चार इच चौड़े और पाठ इंच मोटे एक की सपाट छत और सामने का मण्डप, बिना किसी ही पत्थर से ढका गया है जिसने इस मन्दिर को सुरक्षित परिवर्तन के मन्दिरों में भी बनाया जाने लगा, जिसका रखने और सुन्दरता बनाने मे महत्त्वपूर्ण योगदान किया स्पष्ट प्राभास हमें इस मन्दिर में दृष्टिगत होता है। है। प्रवेशद्वार १६ की ऊचाई साढे तीन फुट और चौडाई दूसरो विशेषता यह है कि इसके प्रवेश द्वार की चौखट का दो फुट है। ऊपरी भाग इतना लम्बा है कि वह द्वार पक्षों की सीमा प्रारम्भ मे इसके सामने एक मण्डप था, जिसके दो से प्रागे बढ़ गया है । मन्दिर स्थापत्य की यह विशेषता, स्तम्भ मन्दिर के उत्तरी कोणो से सटे थे और शेष दो यद्यपि बाद में भी कायम रही, फिर भी मिश्र के मन्दिरो उनमे कुछ प्रागे स्थित थे। मण्डप की सामग्री मन्दिर के और उदयगिरि तथा नासिक की गुफापों में भी स्पष्ट प्रामपाम स्पष्ट रूप से उपलब्ध नही है तथापि उसके पलब्ध नहीं है तथापि उसक रूप से देखी जा सकती है। यह विशेषता निस्सन्देह रूपसे अस्तित्व में सन्देह नहीं किया जा मकता, क्योकि जैसा कि प्रारम्भ में प्रचलित लकड़ी की चौखट से ग्रहण की गई है, चित्र १७ से स्पष्ट है, प्रवेश द्वार के ऊपर दो कड़ियों जिसमें ऊपरी भाग की लम्बाई एक जरूरत की चीज यो, (बडेरो) को काटकर दीवाल के समतल कर दिया गया और उसका प्रतिरूप होने की वास्तविकता से यह स्पष्ट है जो इस मण्डप का आधार थी। होता है कि भारत में और अन्यत्र भी लकड़ी प्राचीनतर इम मन्दिर को धराशायी करने को कुछ प्राततायियों निर्माण से ही पत्थर का मूल्यवान् स्थापत्य उद्भूत हुमा ने इमकी पिछली दीवान के कोणो के, लगभग एक फुट था ।१६ इस मन्दिर की तीसरी विशेषता है उसके द्वार की ऊचाई पर कुछ पत्थर निकालने की चेष्टा की थी, पक्षो पर गगा-यमुना का मकन । गुप्त-पूर्व काल से ही पर मफल होने से पूर्व ही आततायियो को भाग जाना यह विशेषता मन्दिर स्थापत्य में स्थान पा लेती है और पड़ा। पास के ग्राम के लोग या तो बनाने में असमर्थ थे बहत बाद तक चलती रहती है। पोथी विशेषता यह है या वे यह बताना नहीं चाहते थे कि यह चेष्टा किसने की कि इसकी कारनिस चारो मोर बनायी गई। यही बात था।'१८ साची और तिगोवा के मन्दिरो में परिलक्षित होती है, मन्दिर का निर्माणकाल इसलिए मैं दृढ़तापूर्वक, इस मन्दिर का निर्माण गुप्तकाल यह मन्दिर प्रारम्भिक गुप्तकालीन स्थापत्य का एक मे हुमा मानता हूँ।२० सुन्दर उदाहरण है। उस समय के मन्दिरों में पाये जाने यद्यपि पतियानदाई मन्दिर मे कोई अभिलेख उपलब्ध वाले मभी लक्षण इस मन्दिर में पाये जाते है। इसकी नही हुपा है२१ तथापि उसे गुप्तकाल का एक सुन्दर छन गुफा मन्दिरों की भाति सपाट है और उस पर किमी उदाहरण मानने में कोई आपत्ति नहीं रह जाती, उदयप्रकार की शिखर नही है। यह विशेषता इम मन्दिर को गिरि की गुफापों और एरन तथा बिलसर के मन्दिरों की बहन प्राचीन सिद्ध करती है। स्थापत्य का क्षेत्र जब ठीक यह शैली है जिसमें प्राप्त अभिलेख उन्हें गुप्तकालीन गुफापो से मन्दिर तक विस्तृत हुप्रा होगा तब उसका स्वरूप गुफाओं से बहुत अधिक समान रहा होगा । गुफाओं सिद्ध करने में पूर्णत समर्थ है । १६. इसका विस्तृन विवरण, इमी लेख मे प्रागे प्रस्नत १६. वही, पृ.४३ । किया जा रहा है। २०. वही पृ. ३२ । १७. इसके छायाकार श्रीनीरज जैन, सतना है जिनसे यह २१. इस मन्दिर मे जो मूर्ति प्राप्त हुई थी उसपर उसकी माभार प्राप्त किया गया है। साथ का रेखाचित्र परिकर मूर्तियों के नाम उत्कीर्ण हैं जिनकी लिपि गुप्तोत्तर भी देखिये जिसमें मण्डप का अनुमानत: रेखांकन काल की है पर जैसा कि प्रागे लिखा जा रहा है, इस किया गया है। मूर्ति का सम्बन्ध इस मन्दिर के निर्माण काल से जरा भी १८. ए. पार., ए. एस. पाई. जिल्द ६, पृ. ३२-३३ । नही है।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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