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________________ प्रोम् महम अनेकान्त . परमागमस्य बीजं निषिद्धनात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोषमयनं नमाम्यनेकान्सम् ॥ वर्ष १६ किरण ६ । । वीर-सेवा-मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली-६ वीर निर्वाण सवत् २४६३, वि० स० २०२३ सन् १९६७ सरस्वति-स्तवनम् जयत्यशेषामरमौलिलालितं सरस्वतित्वत्पद्पजद्वयम् । हृदि स्थितं यज्जनजाड्यनाशनं रजोविमुक्त श्रयतीत्यपूर्वताम् ॥१॥ अपेक्षते यन्न दिनं न यामिनी न चान्तरं नैव बहिश्च भारति। न ताप कृज्जाड्यकरं न तन्महः स्तुवे भवत्याः सकल प्रकाशकम् ॥२॥ -मुनिश्री पचनन्दि अर्थ-हे सरस्वती! जो तेरे दोनों चरण-कमल हृदय में स्थित होकर लोगो की जड़ता (प्रज्ञानता) को नष्ट करने वाले तथा रज (पापरूप धूलि) से रहित होते हुए उस जड़ और धूलि युक्त कमल की अपेक्षा अपूर्व ना (विशेषता) को प्राप्त होते हैं वे तेरे दोनों चरण-कमल समस्त देवों के मुकुटों से स्पर्शित होते हुए जयवन्त होवे ॥ हे मरस्वती । जो तेग तेज न दिन की अपेक्षा करता है और न रात्रि की भी अपेक्षा करता है, न प्रभ्यन्तर की अपेक्षा करता है और न बाह्य की भी अपेक्षा करता है, तथा न सन्ताप को करता है और न जड़ता को भी करता है; उस समस्त पदार्थों को प्रकाशित करने वाले तेरे तेज की मैं स्तुति करता हूँ ।। ___ भावार्ष-सरस्वती का तंत्र मूर्य और चन्द्रमा से भी अधिक श्रेष्ट है; क्योंकि सूर्य, चन्द्र तेज दिन एवं रात्रि की अपेक्षा करने के साथ सन्ताप और जड़ता (शीतलता) को भी करते हैं। और जहा वे बाह्य मयं के ही प्रकाशक हैं । वहां सरस्वती का तेज दिन और रात्रि की अपेक्षा न करते हुए मन्तस्तत्व को प्रकाशित करता है।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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