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________________ सूत्रधार मण्डन विरचित 'पमहन' में नमति लक्षण लक्षण मादि बतलाये गये हैं। उन मब के माधार से श्री सम्बन्ध में और भी कई अन्य प्रकाक्षित किये है। प्रतिया बालचन्द्र जैन, क्यूरेटर, रायपुर म्युजियम का एक लेख विज्ञान' मे जैन धर्म, जैन मन्दिर जैन प्रतिमा पादि 'जैन प्रतिमा लक्षण' के नाम से 'अनेकान्त' के अगस्त ६६ सम्बन्ध में काफी महत्त्वपूर्ण प्रकाश डाला गया है। परिके अंक (वर्ष १६ किरण ३) में प्रकाशित हुया है। शिष्ट में अपराजित पच्छा के श्लोक भी उदघृत कर दिये गुजरात और राजस्थान जैन मन्दिर और मूर्तियों गये हैं। की दृष्टि मे बहुत ही उल्लेखनीय है। यहा सोमपुरा डा० द्विजेन्द्रनाथ शुक्ल का दिया हमा विवरण रूप नामक शिल्पियों की एक जाति बश-परम्पग से जैन मण्डन की अपेक्षा भी काफी विस्तृत है। इसलिए उसे मन्दिगे व मूर्तियों के निर्माण में अग्रणी रही है। अनेक ही बने मन्य स्वतन्त्र लेख मे प्रकाशित किया जायगा । वास्तव में शिलालेग्यों मे उस मन्दिर व मतियो के शिल्पियों का भी जन मन्दिर और मूर्तियो सम्बन्धी जो भी विवरण वास्त नामोल्लेख पाया जाता है। इन सत्रधारों मे १५वी शारत्र के ग्रन्थो में उपलब्ध है वह काफी अपूर्ण लगता है। शताब्दी के सूत्रधार मण्डन बहत ही उल्लेखनीय हैं जिन्होंने इनमें उल्लिखित जन प्रतिमानो के अतिरिक्त अन्य अनेक मेवाड के महाराणा कुम्भा के समय वास्तु-शास्त्र के कई प्रकार की पाषाण व पीतल की (सप्त धातु) छोटी-बड़ी महत्वपर्ण ग्रन्थों की रचना की। उसके रचित प्रामाद अनेक लियो की मूर्तिया प्राप्त है। समय-समय पर प मण्डन, राज वल्लभ देवता मति प्रकरण इनकी शैली और कला मे काफी परिवर्तन व परिवर्शन पादि ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके है। प्रामाद मण्डन का हुया है। दक्षिण भारत और उत्तर भारत के जैन मन्दिरों हिन्दी अनुवाद के साथ एक मुन्दर सस्करण प० भगवान- पर जनेनर मन्दिर-मूर्ति निर्माण कला का भी काफी दाम जैन, जयपुर ने प्रकाशित किया है। और रूप मण्डन प्रभाव पडा । कुछ विलक्षण जैन व जनेतर मूर्तियां पुराको हिम्दी अनुवाद के साथ डा. बलराम श्रीवास्तव ने तत्व अवशेषो में प्राप्त हुई हैं जिनके सम्बन्ध में वास्तुमम्पादित कर मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी से मन शास्त्र के ग्रन्यो मे कही उल्लेख तक नहीं मिलता। प्रत १९६४ में प्रकाशित करवाया है। रूप मण्डन का छठा यावदयकता है जैन मन्दिर व मूतियो की कला का प्राप्त अध्याय जैन मूनि गक्षणाधिकार' है । ३६ श्लोको के इम माधनो के आधार से सम्यक् अध्ययन और विवेचन किया मध्याय के सम्बन्ध मे डा. बलराम श्रीवास्तव ने भूमिका जाय । उत्तर भारत की जैन श्वेताम्बर मूर्तियों का तो मे अच्छा प्रकाश डाला है । जैन समाज की जानकारी के बडौदा के डा. उमाकान्त शाह ने बहुत विस्तृत एवं के लिए जैन मूर्ति लक्षण सम्बन्धी भमिका का प्रश यहा गम्भीर अध्ययन किया है पर अभी तक उनका विशाल नीचे दिया जा रहा है: शोर प्रबन्ध प्रकाशित नहीं हो पाया है। 'जैन पार्ट' डा. बलगम श्रीवास्तव ने रूप मण्डन के अनिम्ति नामक छोटा ग्रन्थ ही अग्रेजी में प्रकाशित हुमा है। उत्तर बहद् महिना, जैन माइकनोग्राफी, अपराजित पृच्छा, पादि दाक्षण-भारत के दि. व. मन्दिर मूतियों का के आधार से विषय को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। अध्ययन प्रभी किया जाना अपेक्षित है। मण्डन का देवता मूर्ति प्रकरण भी हमारे मग्रह का जैन मृति लक्षणमुनि कान्तिसागर जी को भेजा हुआ है अन्यथा उसमे पमण्डन' का छठा और मन्तिम अध्याय 'जैन मूर्ति माये हये जैन सम्बन्धी विवरण को भी यहा माथ में लक्षणाधिकार' है। मूत्रधार मण्डन के काल में गुजरात दिया जाता। और राजस्थान में जैनधर्म का बड़ा प्रभाव था और जैन जैन प्रतिमा लक्षण सम्बन्धी और एक ग्रन्थ मन मन्दिरो तथा मूतियो के निर्माण का प्रचार था। मूत्रधार १९५६ मे 'प्रतिमा विज्ञान' के नाम से हिन्दी मे प्रका- मण्डन ने जैन-प्रतिमा लक्षण का मूक्ष्म किन्तु उपयोगी शित मा था उसके लेखक डा. विजेन्द्रनाथ शुक्ल, विवरण प्रस्तुत किया है। जैन माहित्य में जिनों तथा लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में है उन्होने इस तीर्थंकरों के मूर्ति लक्षणों का यत्र-तत्र विवरण मिलता है।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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