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________________ शान्तिनाष फाग २८५ पचारा जिन बालकं निरुपम शुस्वा प्रणम्योज्झिति, कृत्वा जन्म महोत्सव परया भूत्या समादाय ते । सको प्राप्य पुरीं प्रवेश समता राक्षां गणं पूजनं, पित्रोः संप्रविषाय भूषणवरः प्रादु प्रभाभास्वरम् ॥ पुत्र शोभा अवलोकता ए सुणि सुन्दरे माय मनि हरिष ने माइ । माल्हंतडे माइ मनि हरिख न माइ जात महोछव तव करघउ ए सुणि सुरे सजन राणी अनइ राय ॥१॥ बली हरिषि प्रानंदिनाटक करीए सुणि सुदरे सुर गया मापणइ ठामि । देवीय जिन सेवा करइ ए सुणि सुदरे भगति रमाडइ कामि ॥२॥ जिम जिम मरुकले सुत हसहए सुणि सुदरे तिमतिम माय सतोष । अनुक्रमिई शाति जिन वावीया ए सुणि सुदरे कू परहउ हमा निरदोष ॥३॥ शीखामण विण अवतरी ए सुणि सुदरे जिन मुख विद्यावाणि । ता यौवनि प्रलंकरया ए सुणि सुदरे रूप शोभा गनी खाणि ॥४॥ ऊचीय चालीस धनुष काया सुणि सुदरे हेम वरण दीपत । पूरउ जीवीय लाख वरिष सुणि सुदरे धरम मूरति जिम भत ॥५॥ मायु चउथउ भाग सुखि गयउ ए सुणि सुदरे कुमर पद भजत । बापइ राजपट बाधोय उए सुणि सुदरे सुरवर सहित सोहत ।।६।। मंडलेसर पद भोगवह ए सुणि सुदरे तेतलो बरिष महत । चक्र रतन पछइ उपनउं ए सुरिण सुदरे नवनिधि चउदह रत्न ॥७॥ महीय छ खड साधीहउ ए सुणि सुदरे राज करत महंत । चक्रवति पद भोगवद ए सुणि मुदरे मायु नउ चउथलु भाग ।।८।। गाहा-एसो पंचम चक्को गर सुर खग गाह मिय पयकमलो। भुंजइ भोग महतो सावयषम्ममि पर लोगो । अठोऊ-अंतेउर सविचरि छणऊ सहमसुनारि भूचर खेचर ए भोगवह मन हरीए ॥१॥ गज चुरासी लाख तुगा करइ सुभाप तेतला रथ वरए जू ताहा असवरए ॥२॥ ढालबीजी-कोडि अठार तुरग माए पायदल चुरासीय कोडितु । तसुपय मणमइ मुकुट बद्ध राजा सहस वत्रीसतउ ।। तिह समदेस विभासीय ए बहुतरि सहस पुराणि तउ । पाटण च्यालीस सहस पाठ ग्राम छइछणउ कोडि तु ।। सहस नवाणउ द्रोणमुख सोल सहस खेडा जाणि तु । छपन्न अन्तरदीप हुइ चउदस सहस संवाह तु ।। सहस्र अठार संख्या म्लेच्छ राजा चक्रवति पाय पडति तउ । सोल महस गण बद्ध मुर राखइ निधि अंगरत्न तउ।४। अनुपम चामर ढालीई ए सूरिज प्रभसिरि छत्र तउ । बीजली प्रभमणि कुण्डल विए कबच अभेदी वाणितउ ।। अजितं जय घर हेममय बनु वज्र काड हवेइ तु । अपर अनेरी रिद्धि घणी प्रागमि कहीय अपार तउ ।६। पुण्य फलिईसवि भोगवइ ए सरगह करज भोग तु । इम जाणि करु धरम एक जाणिय चंचल पायु तु.७० बीणंपर भवि जीव लहइ मन वाछित फन सार तु । जे न कोवउ धरम पर पमु सम तेह नऊ मायु तु ।। डालबीबी-एकहं दिन ऐ जिनवर राज काजि दर्पण मुख जोना । तब देखिय रे छिन्निए छाह तां हंस वैराग उअनुए।१। घणु संसार रे एह प्रसार सार न दीसइ दुखिन भरयु । निनु एकलु रे पावइ जाह माय करमे जीव वाधीउ ।२। सही विषय न ए विष सम सौख्य दुक्ख भोग प्रति चचला ए। सबि इन्द्रीरे विषम ए चोर घोर नरहबिल देहडी।३। इम चितता रे जिनवर पासि प्रासि वसरि सुर प्रावीया । जिन छडीय ए तृण जिम राज प्राज पालि खिचड़ी नीकल्या ।।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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