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________________ उपनिषदों पर श्रमण संस्कृति का प्रभाव मुनिश्री नथमल भारतीय साहित्य की दो धाराएं मानी जाती हैं- विरोधी धाराएं परिदृप्ट हो रही हैं। वैदिक और प्रामणिक । जैन और बौद्धो का जो साहित्य दूसरी धाराओं के संरक्षक जैसे जैसे मिटते गये, वैसेहै उसे श्रामणिक (श्रमण परम्पराका) पौर शेष सारे वैसे उनका साहित्य अपने संरक्षकोके प्रभावमें वैदिक धाग साहित्य को वैदिक कहा जाता है। पर वह स्थापना के प्रबल प्रवाह में सम्मिलित होता गया। निर्दोष नही है । यहां श्रमण के अनेक सम्प्रदाय रहे है- साहित्य की कसौटी-वेदिक साहित्य का मुख्य भाग जैन, बौद्ध, माजीवक, गैरिक, तापस आदि१। मूलाचार यज्ञ था। उसका विकास उत्तरोत्तर होता रहा । समूचा के अनुसार रक्तपट, चरक, तापस, परिवाजिक, शैव, मायुर्वेद उसी से अनुप्राणित है। ब्राह्मण ग्रन्थो मे यज्ञ की कापालिक मादि भी प्रवैदिक सम्प्रदाय २ । सांख्य दर्शन परम्परा और आगे बढ़ गई थी। वैदिक धारा का प्रबल विरोधी था। उसने कठ, श्वेताश्व- औपनिषदिक धारा, जिसे श्रमणो की धारा कहा जा तर. प्रश्न, मैत्रायणी जसे प्राचीन उपनिपदा को बहुत सकता है. यज्ञो का विरोध करती थी। उसका प्रवाह प्रभावित किया था। अध्यात्म विद्या की ओर था हम कौन है ? कहां से पाए ___ समय के प्रभाव में प्राजीवको का प्राज अस्तित्व है? क्यो पाए है? कहा जाएंगे? आदि-आदि प्रश्नो नही रहा। पर उनका साहित्य सवथा लुप्त नहीं हुआ। पर विचार किया जाता था४। अध्यात्म विद्या श्रमण उसने वैदिक और अवैदिक सभी साहित्य धागों मे साहित्य की कसौटी थी। स्थान पाया है। गरिक, तापस प्रादि वैदिक परम्परा मे त्रिवर्ग-विद्या (अर्थ, धर्म और काम) लौकिक साहित्य विलीन हो गए है पर उनका साहित्य उनकी धारा मे की कसौटी थी। इन तीन कमोतियों के ar पूर्ण विलीन नहीं हुमा । उनका अपना स्वर आज भी जान सकते है कि अमुक साहित्य किस धारा का है या मुखरित है। किस धारा में प्रवाहित है। स्थानाङ्ग से पता चलता है कि महावीर के युग मे उपनिषदों को धारा-प्राचार्य शकर ने जिन दस साहित्य की तीन धाराएं प्रवाहित हो रही थी-लोकिक, उपनिषदों पर भाष्य लिखा, वे प्राचीन माने जाते है । वैदिक और सामयिक३ । राजनीति, अर्थनीति, और काम उनके नाम है-ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डुक्य, नीति सम्बन्धी ग्रन्थ लौकिक साहित्य की कोटि मे आने तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य और वहदारण्यक । डा० बेलथे। ऋक, यज और साम ये तीन वेद वैदिक साहित्य के लोग वेलकर और रानाडे के अनुसार प्राचीन उपनिषदों मे मुख्य ग्रन्थ थे। ज्ञान, दर्शन और चारित्र के निरूपक मूख्य ये है-छान्दोग्य, वृहदारण्यक, कठ, ईश, ऐतरेय, तत्तग्रन्थ सामयिक वा श्रामणिक साहित्य की धारा के थे। रीय, मुण्डक, कौपीतकि, केन और प्रश्न२ । उनमे से कुछ इस लेख मे मेरा प्रतिपाद्य विषय यह है कि उपनिषद् उपनिषदों में मुख्य वेद एवं वैदिक धारा के प्रति जो पूर्णरूपेण वैदिक धारा के ग्रन्थ नहीं है। आज हम जिसे विरोध है उसे देख सहज ही प्रश्न होता है कि वेदो और वैदिक साहित्य मानते हैं वह सारा वैदिक नही है किन्तु उसकी धारा का विरोध करने वाले उपनिषद् क्या वैदिक लौकिक, वैदिक, और श्रामणिक तीनों का संगम है । वह साहित्य की कोटि में पा सकते हैं ? मुण्डकोपनिषद् मे इस अनेक धारामों का सगम है, इसीलिए उसमे अनेक वेदों को अपराविद्या कहा गया है। परा विद्या, जिससे १. दशवकालिक नियुक्ति, हारिभद्रीय वृत्ति, पत्र ६८ २. मूलाचार ५, ६२ ३. स्थानाङ्ग ३, ३, १८५ १.केनोपनिषद् २. हिस्ट्री माफ इण्डियन फिलॉसफी भाग २ पृ०८७-६०
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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