SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिरुकुरल (तमिलवेद): एक जैन-रचना मुनिश्री नगराजजो चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य ने कहा-"यदि कोई चाहे काव्य की भाषा तीखी और हृदयस्पर्शी है। धर्म की कि भारत के समस्त साहित्य का मुझे पूर्ण ज्ञान हो जाये उपादेयता के विषय में कहा गया है-"मुझ से मत पूछो तो तिरुकूरल को बिना पढ़े उसका अभीष्ट सिद्ध नही हो कि धर्म से क्या लाभ है ? बस एक वार पालकी उठाने सकता।" इस महत्वपूर्ण अन्य को शैव, वैष्णव, बौद्ध ग्रादि वाले कहारों की पोर देख लो और फिर उस आदमी को सभी अपना धर्मग्रन्थ मानने को समुत्सुक हैं। लगभग दो देवो जो उममें सवार है।" सहस्र वर्ष पूर्व लिखा गया वह अन्य तमिलवेद अर्थात् क्रोध के विषय में कहा गया है-"जो व्यक्ति क्रोध तिम्कुरल है। तमिल जाति का यह सर्वमान्य और मारि को दिल मे जमाकर रखता है, जैसे वह कोई बहुमूल्य ग्रन्थ है। इमलिए उसका नाम 'तमिलवेद' पडा। पदार्थ हो, वह उस मनुष्य के समान है जो कठोर जमीन पर हाथ दे मारता है। उस आदमी को चोट पाये बिना प्रचलित धारणा के अनुमार इस ग्रन्थ के रचयिता नही रह सकती।"२ तिग्वल्लुवर अर्थात् सन्त वल्लुवर हैं। यह एक काव्यात्मक मायावी के विषय में कहा गया है-"तीर सीधा नीति-ग्रन्थ है। बहन बड़ा नहीं है। यह ग्रन्य कुरन नामक होता है और तम्बूरे मे कुछ टेढ़ापन होता है। इसलिए छन्द में लिखा गया है। कुरल छन्द एक अनुष्टुप नोक आदमियो को उनकी मूरत से नहीं, उनके कामो से मे भी छोटा होता है। पहचानो३।" भावार्थ-तीर सीधा होकर भी कलेजे में हम ग्रन्थ में धर्म, अर्थ और काम-पे तीन मूलभून लगता है, नम्बूरा टेढ़ा होकर भी अपनी मधुर ध्वनि से प्राधार माने गये हैं। विभिन्न विषयपरक १३३ अध्याय हमे माहादित करता है। अतः मायावी लोगों की ऊपरी है और एक एक अध्याय में दश-दश कुरल छन्द हैं । कुल सरलता में न फंसो। मिलाकर १३३० छन्द होने हैं, जो पक्तियों में २६६० हैं। धैर्य के विषय में कहा गया है-"विपत्ति से लोहा रचना-सौष्ठव तमिल के विद्वानों के द्वारा निरूपम माना लेने में मुस्कान से बढकर कोई साथी नहीं हो सकता४।" गया है। हिन्दी में गद्य अनुवाद उपलब्ध है, पर पद्य का वाणी के विषय में कहा गया है-"तुम ऐसी वक्तृता गद्यात्मक या पद्यात्मक अनुवाद एक भावबोध मे अधिक उसे चुप न कर मके५।" कछ नहीं बताया करता । कालीदाम ने संस्कृत शब्दावली सामान्य उपदेशो को भी निराले ढंग से कहने में कवि में जिस भाव को अपने कलात्मक कवित्व में बाँधा है और बहुत सफल रहा है। जो मानन्द उससे संस्कृत काव्यरसिक उठा मकना है, वह गरिमा और अमिषा कलात्मकता उसके हिन्दी अनुवाद में थोडे ही पा सकती यह ग्रन्थ इतना ख्यातिलब्ध कैसे हमा और इसे इतनी है ! वह अनुवाद भी यदि संस्कृत पद्य का हिन्दी गद्य में हो तो काव्यात्मक मानन्द का लेश भी कहाँ बच पायेगा? १. धर्म प्रकरण-७ तिरुकूरल के काव्यात्मक प्रानन्द के विषय में तमिल नहीं २. क्रोध प्रकरण-७ जानने वाले हम अननुभूत और अनिभिज्ञ ही रह सकते हैं; ३. माया प्रकरण-१ तथापि कवि की उक्ति-चारुता प्रादि कुछ विशेषतानों को ४. विपत्ति में धैर्य प्रकरण-१ हम तथारूप अनुवाद से भी पकड़ सकते हैं। ५. वाक पटुता प्रकरण-५
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy