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________________ जन वर्शन पौर निःशस्त्रीकरण २४१ मम्मण जैसे व्यक्ति हैं जो बिना किसी प्रयोजन के रात- मारता है। अतः मैं भी उसे मारूमा, यह सुरक्षा प्रेरित दिन हिंसा में ही रत रहते हैं। ऐसी हिंसा पासक्ति हिंसा है । बहुत से युद्धों का कारण की सुरक्षा ही है। जनित हिंसा कहलाती है। शारीरिक, मानसिक या अन्य प्राशंका या भय वश भी व्यक्ति भयंकर हिंसाए कर किसी अावश्यकतावश जो हिंसा की जाती है, वह सह- लेता है। प्राशंकाजनित हिंसाए अनगिनत हो सकती हैं। प्रयोजन हिंसा कहलाती है। इसमें १५ कर्मादान, कृषि, क्योंकि अाशंका मन ही कल्पना है और कल्पनाएं असीम व्यापार, गृह-कार्य प्रादि से अद्भुत सारी हिंसाए समा- हो सकती है । प्रमुक मुझे मार देगार, अमुक मेरा मनिष्ट विष्ट होती हैं। जैसे कोई शरीर के लिए हिसा करता कर देगा. प्रमक मेरा धन दूर लेगा. अमक मेरा राज्य है। कोई मांस के लिए हिसा करता है। कोई रक्त छीन लेगा, अमुक मेरे अहं को कुचल देगा। इत्यादि आदि के लिए हिंसा करता है। यह सब प्रयोजन हिंसा भविष्य की आशंकाएं व्यक्ति को प्रतकित हिंसा प्रयोग में के ही प्रकार हैं। नियोजित कर देती है। प्रतिशोध भी हिंसा का बहुत बड़ा कारण है। बहुत ____ हिंसा के इन कारणों के अतिरिक्त भी कुछ कारण से व्यक्ति ऐसे हैं जिनमे सामान्यतया हिंसा के भाग नही है, जिससे मानव मन को सहज वृत्तियां अभिव्यंजित होती हैं । सायकोलोजी का यह सुप्रसिद्ध सिद्धान्त जगते लेकिन जब कोई दूसरा व्यक्ति अनिष्ट कर है कि हरव्यक्ति महत्वाकाक्षी होता है। हर व्यक्ति देता है तो वे संतुलन खो देते हैं और दबी हुई हिंसक वत्तियां उग्र रूप ले लेती हैं फिर उनके चिन्तन का कोण बन्धन-मुक्ति का इच्छुक होता है। हर व्यक्ति दुःख ही बदल जाता है। वे सोचते हैं कि अमुक ने हमारा प्रतिघात के लिए प्रयत्नशील रहता है। प्राचारांग अनिष्ट किया है, हमारे सम्बन्धी को मारा है३, या हमें में इन तीनों ही प्रवृत्तियों को हिसा के हेतु रूप में मताया है, इसलिए हम भी उसे मारेंगे। इसके विपरीत स्वीकार किया है। प्रवृत्तिमात्र कोई हिसा नही है। चिन्तन का अवकाश उन्हें नहीं, कोई कुछ करे हमे अपना लेकिन असम्यक् कर्म हिंसा है। प्रथक असत् उद्देश्य से जो प्रात्म-धर्म समझकर सहिष्णुता की साधना करनी चाहिए। कर्म किया जाता है, वह असम्यक ही होता है। अतः उसे हिंसा मे ही परिगणित किया जाएगा। कभी-कभी और प्रतिशोधजन्य हिसाएं सहिष्णुता के प्रभाव में ही होनी हैं। कहीं-कही उद्देश्य सम्यक् होते हुए भी साधन की विकृति कर्म को असम्यक् बना देती है। बहुत से व्यक्ति यश, पूजा, सुरक्षा भी हिंसा का प्रबल कारण है और यह इतना । प्रतिष्ठा और मम्मान के लिए हिंसा करते है । यहां अव्यवहारिक भी नहीं है। क्योंकि साधारणतया व्यक्ति उद्देश्य और साधन दोनों विकृत है। कई व्यक्ति जन्मकिसी पर हाथ उठाना नही चाहता लेकिन जब सामने मरण की परम्परा३ से मुक्ति पाने के लिए हिंसा करते वाला चल कर माक्रमण करता है तो उस समय पहिसक हैं। यहां साध्य पवित्र होते हुए भी साधनों की नितान्त रहना बहुत कठिन है । अपने बचाव के लिए सहज ही कलुषता है। बहुत से व्यक्ति दुःख प्रतिघात४ के लिए प्रत्याक्रमण के भाव उत्पन्न हो जाते हैं। अमुक मुझे हिंसा करते हैं। १. वही, अ० १, उ ७, सूत्र ७ १. प्राचारांग, अध्ययन १, उद्देशक ६, सूत्र ७ आरंभ सत्ता पकरेंति सग। अप्पेगे हिंसति मेत्ति वा वहति । २. वही, प १, उ०६, सत्र ५ २. वही, अ० १, उ० ६, सूत्र ७ ॥ अप्पेगे मच्चाए वहंति हिंसि मंति मेत्ति वा वहति ३. वही, प्र. १, उ०६, सूत्र ७ ३. वही, म. उ १, सूत्र ५ अप्पेगे हिंससु मेत्ति वा वहति ।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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