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________________ बंगाल का गुप्तकालीत तान-शासन २३९ इस ताम्रशासन से बंगाल के उस प्रान्त में प्राचीन- दानपत्र की सोलहवी पक्ति में परम भट्टारक शब्द काल में भूमि क्रय और दान करने के लिये किस प्रकार उस नपति से सम्बन्ध रखता है जिसके शासन काल का की कार्य प्रणाली का उपयोग होता था, इसका परिचय यह दान पत्र है। पर इसमें उसका नाम नहीं है। भली भांति हो जाता है। दामोदरपुर के दानपत्रों से विदित है कि इस समय बुद्ध इच्छुक दानकर्ता आयुक्तक (District offleer) और गुप्त के राज्यान्तर्गत पुण्ड्रवर्द्धन भुक्ति थी। प्रस्तु, बहुत मधिष्ठान अधिकरण (City council) के मुखिया नगर सम्भव है कि इस दान पत्र के निरुल्लिखित नपति बुद्धगुप्त श्रेष्ठी (Mayor) के निकट गये और निर्धारित मूल्य पर ही थे। उनका राज्यकाल सन् ४७६ से ४९५ था। दान के लिये भूमि बिक्री करने के लिये निवेदन किया। पंचम इस पर प्रायुक्तक और अधिष्ठान भधिकरण ने जिज्ञास्य इस ताम्र शासन की की छट्ठी मोर १३वीं पंक्तियों विषय को मीमांसार्थ (जांच पड़ताल के लिये) पुस्तपाल+ (Recordkeepers) के हाथ मे अपण कर दिया। पुस्त में "काशीक पचस्तूपान्वय" का उल्लेख हुआ है। जैन पाल ने आवश्यक अनुसन्धान कर (Transaction) सौदे के ___ संघों के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयत्न अभी तक पक्ष में मनमति देते हुए अपनी विवत्ति (Report) पेश सन्तोषपूर्ण नही हुमा है। जैन ग्रन्थों से पता चलता है कि कर दी। तत्पश्चात् शासन कर्तृवर्ग ने प्रार्थी से मावश्यक इस पंचस्तूपान्वय के संस्थापक पौण्डवर्डन के श्री मूल्य वसूल कर लिया और उन गांव के मुखिया और प्रहंबल्या चार्य थे। आप अपने समय के बडे भारी पंध अन्य गृहस्थों को सूचना दे दी कि भूमि को माप कर नायक थे। प्रार्थी को दे देवें। एक बार युग प्रतिक्रमण के समय उन्हें यह ज्ञात हमा इस दान पत्र में भूमि माप का परिमाण धान्य (बीज) कि अब पक्षपात का जमाना आ गया है। उन्होने यह के अनुसार है अर्थात् कुल्यवाप१। कुल्यवाप, द्रोण विचार किया कि मुनियों में एकत्व की भावना बढ़ाने से ३२ माढक १२८ प्रस्थ । कुल्यवाप का प्राशय उतनी भूमि ही लाभ होगा। अतः प्राचार्य श्री ने नन्दि, वीर, देव, से है जितनी एक कुल्य घान्य (बीज) से बोई जाय । इस अपराजित, सेन, भद्र, प चस्तूप, गुप्त गुणधर, सिंह, चन्द्र दान पत्र मे द्रोणवाप और पाढ़ बाप भूमि माप भी है। प्रादि नामों से भिन्न-भिन्न संघ स्थापित किये १ अहंद् दानपत्र मे समय सं० १५६ माघ वदी० ७ लिखा है। बलिका समय वीर निर्वाण रा०७१३ के लगभग पं. यह संवत् सम्भवतः गुप्ताब्द है । जिस समय का यह दान जुगलकिशोर जी ने लिखा है२ । किन्तु नन्दि सघ की पत्र है, उस समय बगाल मे गुप्ताब्द प्रचलित था। तद- पट्टावली के अनुसार उनका समय वीर निर्वाण स०५६३ नुसार गणना करने से जनवरी सन् ४७६ का यह लेख हैं। वष होता है । + एक पुस्तकपाल प्रधान होता था और उसके आधीन १. श्रुतावतार (मा० ग्र० न० १३) कई पुस्स्तपाल होते थे। २. स्वामी समन्तभद्र पृ० १६१ १. Api. India Vol. XU PP. 113-45 ३. भास्कर भाग १ किरण ४ माग में उबलते हुए पानी में जिस तरह मानव को अपना प्रतिबिम्ब विखाई नहीं देता, उसी तरह क्रोध से । संतप्त मानव को प्रात्मा का शान्त स्वरूप भी दिखाई नहीं देता।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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