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क्या नहीं?
खण्डगिरि यात्रा में भी उनकी पर्याप्त प्रेरणा रही । देश- उसी वर्ष क्लकत्ते में इन्फ्लुएन्जा का भीषण प्रकोप रत्न डा. राजेन्द्र प्रसाद ने भी यहां की यात्रा की और हमा। इस मापत्काल में बाबूजी ने पीडितों के लिए फल पंडित जवाहरलाल नेहरू तो दो बार यहा पधारे । अन्य दूध, दवा, भोजन प्रादि उपलब्ध कराने की सराहनीय गण्य मान्य व्यक्ति भी समय-समय पर यहा पधारते रहे व्यवस्था की। १९४३ के बंगाल के भयानक दुभिक्ष में भी जिनके स्वागत और यात्रा व्यवस्था के लिए बाबू जी सदा बाबूजी ने प्रकाल प्रस्त क्षत्रों में घूम धूमकर विपन्न पौर तत्पर रहते । इस प्रकार प्रचार होते होते इस स्थान का बुभुक्षित मानवों की महत्वपूर्ण सेवा की। इसी प्रकार नाम देश के महत्वपूर्ण पुरातत्व स्थलों में बहुत शीघ्र १९४६/४७ मे नोमाखाली के ऐतिहासिक नर संहार के प्रा गया।
समय पपने प्राणों की परवाह न करते हुए बाबूजी ने ___ निकट से देखने पर पता लगता है कि प्रचार और दंगाग्रस्त क्षेत्रों में घूम घूमकर रिलीफ केम्पों का संचालन प्रसार की उनकी प्रणाली बहुत वैज्ञानिक और इसी कारण किया। इसी समय गनी ट्रेडर्स एसोसिएशन द्वारा लाखों प्रभावक भी थी। मैंने उनके कागजो मे देखा है कि खण्ड- रुपयों की सहायता कराकर उसका नोपाखाली में सदुगिरि मे डाकघर खुलवाने का जो प्रस्ताव उन्होने विभा- पयोग किया । कलकत्ते के हिन्दू-मुस्लिम दंगों के समय गीय अधिकारियों को भेजा था वह कितना टिप-टाप और तो उन्हें हमेशा भेद-भाव से ऊपर, पीडित मानवता की
विक था। भासपास के पचास साठ माल क्षत्र का सेवा में तत्पर देखा गया। गनी ट्रेडर्स एसोसिएशन के नक्शा तैयार कराकर उसमे वर्तमान डाक घरों की स्थिति, बडे-बडे पापारिक विवादों को सुलझाने में पाप अद्वितीय जनमख्या से उसका सम्बन्ध, सडको की सुविधा प्रादि
प्रतिष्ठा वाले पच थे। प्रापका व्यक्तित्व इस क्षेत्र मे दिखाते हुए हर प्रकार से खण्डगिरि में नया डाक घर निर्मल दर्पण की तरह प्रभावकारी सिद्ध होता था और खोलने की उपयोगिता और प्रावश्यकता को सिद्ध किया
अापके समक्ष वादी प्रतिवादी दोनों अद्भुत विश्वास के गया था।
साथ अपनी सही स्थिति प्रकट कर देते थे पोर माप खण्डगिरि मे सम्राट् खारबेल के नाम पर एक लाखों नहीं, करोडो तक के विवाद बड़ी प्रासानी से धर्मार्थ प्रौषधालय खोलने की योजना, इस स्थान के लिए, निष्पक्षता पूर्वक निपटा देते थे । इस दिशा में जो सम्मान उनकी प्रतिम योजना थी। यह केवल प्रसग की बात है अापने अजित किया था वह माज तक कोई अन्य व्यक्ति कि २६ जनवरी १९६६ को प्रात काल जब कलकत्ते मे
न कर सका । इसी कारण गनी ट्रेडर्स एसोसिएशन ने बाबू जी की प्ररथी सजाई जा रही थी ठीक उसी समय कलकत में अपनी परम्परा तोड़कर पापको मान पत्र खण्डगिरि मे इस प्रौपधालय का शुभारम्भ हो रहा था। समर्पित किया। बाबूजी को तो यह सम्मान एक बोझ इस प्रकार खण्डगिरि-उदयगिरि की सुरक्षा, प्रचार और
ही था परन्तु गनी ट्रेडर्स एसोसिएशन स्वयं इस सम्मान प्रभावना के लिए जीवन के अन्तिम क्षणो तक आपने से सम्मानित हुआ। अथक प्रयास किये और अपनी अनेक योजनामो को अपने
प्रयास किय ार अपना अनक याजनामा का अपन प्रास्थावान-श्रावक सामने सफल होते भी देखा ।
परम अहिंसामय जैनधर्म पर गहन और प्रचल जन-सेवक
प्रास्था तो बाबूजी को विरासत मे ही मिली थी। सराजन-सेवा के जिस कठोर व्रत का पालन बाबू जी ने वगी शब्द ही श्रावक का अपभ्रंश है। आपके माता पिता पाजीवन किया उसकी साधना में उनके धीरज और धन धार्मिक प्रवृत्ति के सच्चे श्रावक थे । इस सुयोग के साथ का पर्याप्त उपयोग हमा। इसकी शुरुवात (१९१७) ही साथ जीवन की दो घटनामों ने भापकी विचारधारा मे तब हुई जब वे अपनी २१ वर्ष की अवस्था मे काग्रेस के को असाधारण रूप से उदार और परहितकारी बना दिया सक्रिय सदस्य बने तथा उन्होने कलकत्त में जैन राष्ट्रीय था। एक पोर जीवन में संतान के प्रभाव ने जहा आपको कान्फन्स का सफल प्रायोजन किया।
"वसुधैव कुटुम्बकम्" का पाठ पढ़ाया वही दूसरी भोर