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वे क्या नहीं थे ?
श्री नीरज जैन
"जा मरने से जग उर, मोरे मन मानन्द । जैन भजन संस्थानों के अध्यक्ष मत्री और सदस्य रहे है।
मरन से ही पाइये पूरण परमानन्द ॥" परिग्रह के प्रायश्चित की भावना मे लाखों रुपयों का दान
ये हैं वे पंक्तियां जिनमे स्वर्गीय बाबू छोटेलाल जी भी प्रापने अपने जीवन मे किया था। का जीवन दर्शन सक्षेप मे उजागर हमा है। जीवन के
काम तो बाबू जी को सदा प्यारा रहा परन्तु नाम प्रारम्भ से लेकर मरण काल तक एक अनोखी निभीकता,
और प्रसिद्धि से वे सदैव दूर भागते रहे। यहाँ तक कि जो उनके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बन गई थी, उनके
अपनी जन्म तिथि भी उन्होने यत्नपूर्वक छिपाकर रखी। चरित्र की विशेषता रही है। उसी विशेपता को प्रकट
चुपचाप काम करने की पद्धति मे ही उनकी आस्था थी। करने वाला यह दोहा उन्हें बहुत प्रिय था और प्राय
जाने कहाँ कहाँ में, कौन-कौन लोग आवश्यकता पड़ने पर उनके मुंह से सुनाई दे जाता था। कई जगह इसे उन्होने
सहायता के लिए उन्हें लिखते थे। उत्तर में वे अावश्यक लिख भी रखा था।
द्रव्य भेज देते और कभी किसी मे उसकी चर्चा तक न श्रद्धेय बाबू जी से मेरा परिचय पाठ नौ वर्ष का ही करते थे। उनकी डायरियो आदि से पता चलता है कि था, किन्तु इस अल्पकाल के सम्पर्क में ही उनके बहुमुखी- एक-एक व्यक्ति को दस दस बीस बीस हजार रुपयो तक प्रतिमा-सम्पन्न, स्नेह-सिक्त और प्रभावशाली व्यक्तित्त्व की सहायता इस प्रकार उन्होने दी है। संस्थानो को तो को गहराई तक जानने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। उनका प्रमून्य सहयोग सदा मिलता ही रहता था। उनके अवसान के उपरान्त तो कलकत्ते में उनकी सामग्री की सार-सम्हार करते हुए बाबूजी के गत जीवन की भनेक अनव
अनवरत अध्येताछोटी-बड़ी घटनाओं विशेष प्रसगों और उनके द्वारा किये बाबूजी मे ज्ञान की प्रतृप्त पिपासा जीवन के प्रारम्भ गए समाज सेवा के अनेक कार्यों का भी पर्याप्त परिचय से ही रही है। भारतीय इतिहास, और विशेष कर जैन मुझे प्राप्त हुना।
इतिहास के प्रजात तथा अप्रसिद्ध प्रकरणों और पुरातत्त्व इस श्रद्धाजलि लेख मे मुझे यह लिखना चाहिए था के स्थानों तथा अवशेषो के शोध की भावना भी उनमें कि “बाबू छोटेलाल जी क्या थे?" पर आज जब लेखनी बडी बलवती रही है । सन् १९२१ मे रायलएसियाटिक लेकर बैठा हूँ और बाबू जी के व्यक्तित्त्व तथा कृतित्त्व सोसाइटी लायब्रगे का प्रावेदनपत्र प्रस्तुत करते हुए पर विचार कर रहा हूँ तब समझ में नहीं पाता कि उन्होंने अपने आपको अनुसधित्सु-(Research Scholer) उनके किस रूप में उन्हे यहाँ स्मरण करूं? इसीलिए लिखा था । बास्तव में यही उनका सही परिचय था। 'वे क्या थे' यह कहने के बजाय यह कहना आज मुझे उनका शेष सारा जीवन भी इसी परिभाषा का सही अधिक पासान लग रहा है कि "वे क्या नही थे ?" उदाहरण बनकर रहा। तब से अन्त तक वे रायल
बाबू छोटे लाल जी ने विगत ५०-५५ वर्ष में सामा- एसियाटिक सोसाइटी के सम्मान्य सदस्य रहे । समयजिक धार्मिक, राजनैतिक, शैक्षणिक, और साहित्यिक क्षेत्र समय पर सोसाइटी में उनके भाषणो का भी प्रायोजन मे अनेक मूक सेवाएँ की हैं । जैन समाज का तो बच्चा- होता था। अन्त समय (जनवरी ६६ मे) जब उन्हें बच्चा पापके उपकारों से उपकृत है ही, जैनेतर समाज में मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी अस्पताल ले जाया गया भी आपकी अच्छी प्रतिष्ठा रही है । आप अनेक सुप्रसिद्ध तब भी इस लायब्रेरी के दो ग्रन्थ उनके साथ थे जिन्हे