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________________ धर्मप्रेमी बाबू छोटेलालजी विशन चल जैन वा. छोटेलाल जैन सच्चे धर्मप्रेमी, मिलनसार, खुश- प्राखीरने या १९६१ के शुरू में "बोरसेवा मन्दिर" मिजाज सज्जन थे। मेरी प्रापसे लगभग ३० वर्ष दरियागज देहलो मे हुई। माप पूज्य वर्गीजी के प्रत्यन्त भक्त पूर्व की जानकारी थी। लेकिन सन १९४३ मे देहली से थे। दिसम्बर १९६४ मे उन्होने मेरे से पूज्य वर्णीजी के अजमेर बदली हो जाने के कारण मै १९५४ तक अजमेर "इस धूप" का नकशा बनाने के वास्ते कहा जो श्री मे रहा इसलिए इस बीच मे उनसे न मिल सका उसके सम्मेद शिखरजी में बनवाना चाहते थे उस पर मापने अपने बाद में अजमेर के दफ्तर से १९५५ में रिटायर होकर विचार रख । देहली पाया तव मेरे सच्चे प्रेमी बाबू पन्नालाल अग्र- उसके बाद वह मेरी सलाह से मेरे साथ "साहू सीमेंट वाल देहली निवासी से, जो वर्षों मेरे साथ रहकर जैन सरविस" नई देहली के चीफ इजिनियर में मिले और मित्र मण्डल देहली" के कार्यकर्ता रहते हुए जैनधर्म प्रचार श्री वर्णीनी के "इसघूर" का नकशा बनवाने के लिए का कार्य करते रहे हैं, मालूम हमा कि श्रीमान बा. छोटे चर्चा की। उसके बाद मैं और वह तपा नेशनल म्यूजियस लाल जी का विचार दरियागंज देहली मे एक "वीरसेवा नई देहली में गये, वहाँ के अधिकारी श्री कृष्णमूर्ति से मन्दिर" का भवन निर्माण करने का है। उसके बारे में, मिले। उन्होंने "इस पूर" के बहुत से नको दिखाए और प्रापमे कुछ सलाह लेना चाहते है । मे खबर पाते ही श्री तमाम संग्रहालय का दौरा कराकर प्राचीन कलापों के पन्नालालजी अग्रवाल के साथ बा. छोटेलालजी से देहली बात के लाल मन्दिर में मिला। बडे प्रेम से मापने बातचीत उसके बाद "साहू सीमेण्ट सविसेज नई वेहली" के की और भवन के बारे में प्रापने अपने विचार सामने रखे। जिनियर ने श्री पूज्य वर्णी जी को "इसप"का मकसा मैंने अपनी सेवाएं देने का वचन दिया। मापने मुझसे बताकर श्री.बाब छोटेलालजीकी सेवा में भेंट किया। तनख्वाह पर काम करने को कहा। पापको इतिहास, पुरातत्व तथा जैन धर्म से पासप्रेम इस पर मैं तैयार न हमा। मुझसे जो सेवा हो सकी पापाप अनुभवी थे।ौर परोपकारी जीव थे। परीबोंका फी की। उस समय भी प्रापका स्वास्थ्य खराब चल रहा सदा ध्यान रखते थे। जैन नव युवकों को रोजगार से भगाते था। मई सन् १९५६ मे, मैंने साह सीमेण्ट सरविस नई रहते थे। उनका अनेक जैन सस्थामों सम्बन्ध था और देहली मे सरविस करली । माप मेरे से म.प्र. के प्राचीन जैन धर्म प्रचार की सच्ची लगन थी। बड़ीवाद को हटाने क्षेत्रो के मन्दिरों प्रादि के जीर्णोद्वार के कार्य के बारे में के पक्ष में थे। ऐसे मनुष्य संसार में कम ही देखने में पाये पूछते रहते थे जो श्रीमान दानबीर साह शान्तिप्रसादजी जाते हैं जो दूसरों के हित के लिए अपने स्वास्थ की भी जन की भोर से हो रहा है. सुनकर बड़े प्रसन्न होते थे परवाह नहीं करते। पौर कहते थे कि श्रीमान साहजी ने यह बहुत बड़ा ठोस मुझे उनके निधन पर महान शोक है। उनके प्रति कार्य कराकर पुण्य कमाया है। श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और श्रीजी से प्रार्थना करता हूँ उनसे मेरी माखरी मुलाकात लगभग सन् १९६२ के कि स्वर्गीय पात्मा को शाति प्राप्त हो।.
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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