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________________ बिनम्र भडांजलि उत्सव को सफल बनाने में बड़ी परता से कार्य में जुट भौर साहित्य के क्षेत्र में सचमुच जिस निःस्वार्थभाव मौर गये थे। उनके कार्य करने की लगन, दृढ़ता और साहस तत्परता से उन्होंने कार्य किया, वह किसी भी व्यक्ति के देखकर मैं विमुग्ध था। समय पाकर मैं अपने एक साथी लिये अनुकरणीय और स्पर्धा की वस्तु है। भाज वह के साथ उनके निवासस्थान पर एकाएक पहुँच गया। हमारे बीच में नहीं, किन्तु अपने पीछे वे जिन कार्यों की प्रथम परिचय में ही वह मुझे शान्त और प्रसन्नचित्त एक लम्बी सूची छोड़ गये हैं, उन्हें कालान्तर मे पूरा दिखाई दिये। करीब थोड़ी देर ही उनसे वार्तालाप हुमा, करना समाज का कर्तव्य है। लेकिन उतने ही समय में मुझे बहुत हर्ष का अनुभव हुमा । श्वास रोग से ग्रसित, दुबले-पतले छरहरे शरीर मुझे वे दिन अच्छी तरह याद हैं जब 'वीर-सेवा. को देखकर सहसा विश्वास नहीं होता था कि यह वही मन्दिर' से पं० जुगलकिशोर मुख्तार 'युगदीर' के सम्पादबा० छोटेलालजी हैं, जिन्होने अपने जीवन का अधिकाश कत्व में 'अनेकान्त' का मासिक प्रकाशन होता था, जो भाग जैन पुरातत्व, इतिहास तथा साहित्य व समाज को जनवर्म के मूलभूत सिद्धान्त, इतिहास तया पुरातत्व शिलासेवा में अर्पण कर दिया ! पूज्य वर्णीजी के प्रति उनकी लेख सम्बन्धी उत्तमोतम सामग्री से सुसज्जित रहता था। अपूर्व भक्ति थी जो उनके गुणानुराग को ही प्रकट करती यह पत्र उन दिनों अपनी चरम प्रसिद्धि पर था, जिसमें थी। प्रबन्ध कुशलता में वे मानो एकमेवाद्वितीय थे। बाबूजी की मूक प्रेरणा बराबर बनी रहती थी। अब तो २६ जनवरी १९६६ को उनके स्वर्गवास का समा- सिर्फ उनके कार्यों का एक लेखा-जोखा ही रह गया है। चार पाकर हृदय को एक माघात लगा। यह प्राघात मुझे सन्देह है कि उनका यह अवशिष्ट कार्य पूरा हो स्वाभाविक था, क्योंकि समाज में अब ऐसा निरभिमानी, सकेगा, फिर भी उनकी वह सौम्यमूत्ति निरन्तर हमे मागे दानी, परोपकारी साधुमना व्यक्ति कहां, जो जीवन भर बढ़ने की प्रेरणा देती रहे, यही इस अवसर पर मेरी उनके अपनी भूक साधना से जैन-जगत में छाया रहे। समाज प्रति विनम्र श्रद्धाजलि है। श्रीमान गुरुभक्त धर्मानुरागी सेठ छोटेलालजी जैन सरावगी कलकत्ता निवासी के करकमलों में सादर समर्पित अभिनन्दन-पत्र प्राज के युग में जनम की जाति व प्रभावक श्री को प्रकाशन तथा प्राचीन ग्रंथ संशोधन लालसा की कामना धर्मनेता प्राचार्यरत्न १०८ देश मूषण जी महाराज के दर्श- मापके हृदय में हमेशा बनी रहती है। इतना ही नहीं बल्कि नाथं पधारने के कारण प्रापके दर्शन का लाभ प्राप्त हना कलकत्ता जैन समाजमें भी प्राप एक गौरवशाली व्यक्तिहैं। यह हमारे सौभाग्य की बात है। उसी माफिक हमारे दक्षिण जैन समाज के लिये भी हम लोग मापके नामको बहुत दिनोंसे सुनते थे व पापकी माप प्रत्यन्त गौरवशाली है इसलिये हम लोग यही चाहते तारीफ सुनते थे परन्तु आज प्रत्यक्ष दक्षिण काशी कोल्हापुर हैं कि प्राप इसी प्रकार धम' जाति, धर्म प्रभावना, में पाने का शुभ अवसर प्राप्त हमा यह मत्यन्त श्लाघनीय समाज सेवा, अहिंसा का प्रचार, राजनीति पादिक कार्यों है इसलिये माज हम सब दक्षिण निवासियों को भापकी मे हमेशा अग्रगण होकर जैनधर्म की जागति करते रहें। सेवा करने का अवसर प्राप्त हुमा नहीं, तो भी केवल वचनों यही हम सब जैनसमाज हमेशा इच्छा रखते हैं और मापकी से ही आपका स्वागत करके हम लोग कृतार्थ मानते हैं। दीर्घ आयु की कामना करते हुए बार-बार धन्यवाद देते हैं। हे महानुभाव मापकी हृदय भावना, धर्म प्रभा- कोल्हापुर पापके जिज्ञासु बना, न्याय, नीति, सामाजिक सेवा और जैन-साहित्य ता. ११.४.६४ स. दि. जैन समाज, कोल्हापुर
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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