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________________ अनेकान्त और बोरसेवामन्दिर प्रेमीभी बाबुछोटेलालजी १८५ महोत्सव के प्राण वा. छोटेलाल जी महोत्सव की समाप्ति 'वीरशासन संघ' के कार्य में लग गये। के पनन्तर ही ता०५ नवम्बर से बीमार चल रहे हैं- अप्रैल १९५१ के अन्त में मैंने अपने द्वारा संस्थापित महीनों के दिन रात के अनथक परिश्रम ने उनके स्वास्थ्य वीरसेवा मन्दिर के लिए अपने ट्रस्ट की आयोजना की को भारी धक्का पहुँचाया है। उन्हे पहले इन्फ्लुएंजा हुआ, और ट्रस्ट नामा लिखकर २ मई को उसकी रजिस्ट्री कर फिर मियादी ज्वर (टाइफाइट फीवर)। ज्वर के न दी। इस ट्रस्ट में मैंने बा० छोटेलाल जी को भी अपना जाने पर छाती का एक्सरे लिया गया, उससे मालूम हुमा एक ट्रस्टी चुना था, जो ट्रस्ट की पहली मीटिंग में पुन: कि प्लरिसी की बीमारी है, जो पीछे जाकर थाइसिस सरसावा पधारे थे और उस मीटिंग में पापको ही ट्रस्ट का बन सकती है। अतः उनको मद्रास के पास मदनपल्ली के अध्यक्ष चुना गया था। तब से मस्था का सब कार्य दस्ट T. B. Sanatorrum मे जाना पड़ेगा, जहां उनके लिए कमेटी के हाथों वीर सेवा मन्दिर के नाम से होता रहा। अलग मकान निर्माण किया जा रहा है और वहाँ उनको कुछ प्रर्से बाद बीरसेवा मन्दिर को उसके जन्म ५-६ महीने रहना होगा। वे सभवतः २२ या २३ दिसम्बर स्थान सरसावा से बाहर अन्यत्र ले जाने का प्रश्न उत्पन्न तक वहाँ के लिए कलकत्ता से रवाना हो जाएंगे, ऐसा हुमा, जिसके लिए अनेक स्थानो के प्रस्तावों पर विचार उनके १५ दिसम्बर के पत्र से ज्ञात होता है। प्रापकी होकर अन्त को दिल्ली में उसे स्थानान्तर करने का विचार इस बीमारी के कारण कलकत्ता में जिस महती सस्था स्थिर हुमा, जिसके लिए बाबू छोटेलाल जी ने ला. की नीव पडी है उसके कार्य मे कोई प्रगति नही हो राजकृष्ण जी की उस जमीन को पसन्द किया जिस . सकी। इस सम्बन्ध मे बा. छोटेलाल जी के पत्र के पर वर्तमान मे 'वीरमेवा मन्दिर' स्थित है। और उसे निम्न शब्द हृदय मे बड़ी वेदना उत्पन्न करते हैं: आपने तथा आपके भाई नन्दलाल जी ने अपनी स्वर्गीय "चन्दा जितना हुआ था-अन्दाज पौने चार लाख का माता जी के दान द्रध्य से ४० हजार रुपये में वीरसेवा उतना ही है। मेरे बीमार हो जाने के कारण जो कार्य मन्दिर को खरीदवा दिया जिसकी सूचना जनवरी १९५३ जितना जहाँ था वहाँ ही है और मेरी ऐसी हालत में अब मे प्रकाशित 'वीरसेवा मन्दिर का सक्षिप्त परिचय' मे दी ५-६ मास कुछ होना सभव नही है। इस बीच मे समाज गई । इसी वर्ष उक्त बा. नन्दलाल जी से बिल्डिंग के का रुपया अन्य कार्यो मे उठ जायगा और मेरी १० लाख लिए १० हजार की और सेठ मिश्रीलाल जी काला की स्कीम यो ही रही जाती जान पड़ती है । जैन समाज कलकत्ता की ओर से ५ हजार की सहायता का वचन का भाग्य ही ऐसा है । या तो अच्छे कार्यकर्तामो का सह प्राप्त हुना, जिसके प्राघार पर बिल्डिंग का कार्य शुरू योग नहीं मिलता, या कोई प्रागे माता है तो चन्द रोज हया और वीरसेवा मन्दिर के नूतन भवन का शिलान्यास मे जीवन समाप्त हो जाता है-या कुछ प्रगति का कार्य तथा चौखटे का मुहूर्त १६ जुलाई १९५४ को साहु शान्ति जहाँ का तहाँ रह जाता है। मैं बीमार न होता तो तुरन्त प्रसाद जी के हाथो सम्पन्न हुमा । इस उत्सव के अवसर यहा पांच लाख हो जाते और पांच लाख दौरा करके ले पर साहू जी ने अपने भाषण के अन्त में वीरसेवा मन्दिर पाता । भगवान की मर्जी। कृपा रखे।" के महान कार्यों का उल्लेख करते हुए उसके नवीन भवन माशा है समाज बा० छोटेलाल जी की शीघ्र निरो- निर्माण के लिए ११०००) रु. प्रदान करने की घोपणा गता के लिए, अविरल भावना भाएगा और उन्हे उनकी की। इस पर बा. छोटेलाल जी ने खड़े होकर कहा स्कीम के विषय में जरा भी निराश न होने देगा।" "पापका सहयोग हमने अापके गुणो से आकृष्ट होकर हर्ष का विषय है कि उक्त मदनपल्ली के सेनेटोरियम शिलान्यास के लिए चाहा था, मापसे मार्थिक सहायता की में रहकर बा० छोटेलाल जी का स्वास्थ्य सुधरा, उनके याचना नही की थी; किन्तु जब पाप स्वय उदारता शरीर मे वैसा कोई रोग नहीं रहा और वे अप्रैल में पूर्वक दे ही रहे है तब हम मापसे कम क्यों लें? प्रतएव वापिस कलकत्ता मा गये तथा अपनी प्रायोजित सस्था हम तो मापसे पहली मजिल के निर्माण का पूरा खर्च
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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