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________________ १९॥ अनेकान्त श्चित-(अधूरा ही)-करते हैं। फिर भी जरा-जरा राजगृह का यह उत्सव वार्षिकोत्सव के रूप में ही मनाया सी सहायता देकर इतना बड़ा नाम करना पाप नहीं तो गया था, और इस उत्सव का आयोजन, अतिथि सत्कार दम्भ अवश्य है। प्रस्तु क्षमा करे।" कितने ऊँचे उदार तथा खर्च का सब भार बा. छोटेलाल जी ने उठाया था, एवं विशाल हृदय से निकले हुए ये वाक्य हैं। सचमुच जिसके लिए वे भारी धन्यवाद के पात्र है।' सार्बुदयबा. छोटेलालजी जैन समाज की बहुत बड़ी विभूति है। सहस्त्राब्दी महोत्सव के रूप मे उत्सव का दूसरा विशाल मेरी तो शुद्ध, अन्तःकरण से यही भावना है कि पाप आयोजन चार महीने बाद कलकत्ते में कार्तिकीय महोत्सव यथेष्ट स्वास्थ्य लाभ के साय चिरकाल तक जीवित रहे के अवसर पर ता० ३१ अक्टूबर से ४ नवम्बर १९४४ और अपने जीवनकाल में ही वीरसेवा मन्दिर को खूब तक, सरसेठ हुकमचन्द जी के सभापतित्व मे, मनाया फलता फूलता तथा अपने सेवा मिशन में भले प्रकार सफल गया, जिसमें जैन समाज के दिगम्बर-श्वेताम्बरादि मभी होता देखकर पूर्ण प्रसन्नता प्राप्त करे।" सम्प्रदायों ने भाग लिया, दूर दूर से सभी प्रान्तो के विद्वान बीरसेवामन्दिर ने अपने जन्म के प्रथम वर्ष सन् तथा प्रतिष्ठित सज्जन पधारे थे। यह महोत्सव बहुत सफल १९३६ से ही 'वीर शासन-जयन्ती' नाम के एक नये रहा और इसमे कितने ही महत्व के कार्य सम्पन्न हुए पर्वोत्सव को मनाना शुरू किया था, जिसे जैन समाज । है। इसकी सफलता का विशेष हाल 'कलकता में वीर शासन का सफल महोत्सव' लेख से जाना जा सकता है, सैकड़ों वर्षो से भूला हुअा था और जिसका पता मुझे को धवलादि सिद्धान्त ग्रन्थों पर से चला था । यह पर्व जो अनेकान्त वर्ष ७ की सयुक्त किरण ३-४ मे प्रकाशित हा है । और जिसके अन्त मे मैंने लिखा है-"वास्तव श्रावण कृष्णा प्रतिपदा का पुण्य दिवस है, जिस दिन मे यह सारा महोत्सव ही बा० छोटेलाल जी का ऋणी है, भगवान महावीर की पवित्र वाणी सब से पहले विपुला उन्हीं के दिमाग की यह उपज है, वे ही इसे वीरसेवा मन्दिर चल पर विरी थी और उनका धर्मतीर्थ प्रवर्तित हुआ था। इस महत्वपूर्ण तिथि का सभी विद्वानों तथा सज्जनों ने (सरसावा) से राजगिरि, राजगिरि से कलकत्ताले गये है, अभिनन्दन किया और तब से अनेक दूसरे स्थानो पर भी कलकत्ता की सारी मशीनरी के ये ही एक मूविग एजिन (Moving Engine) रहे है और उन्ही की योजनामो, वीरशासन जयन्ती दिवस के उत्सव मनाये जाने लगे और सरसावा के उत्सव मे दूर दूर के सज्जन शामिल होने महीनों के अनथक परिश्रमो, व्यक्तिगत प्रभावों का तथा लगे । सन् १९४३ के पाठो उत्सव में कलकत्ता से बा० स्वास्थ्य तक की बलि चढ़ाने से यह सब इस रूपमे ममन्न छोटेलाल जी भी पधारे थे, अापके ही सभापतित्व मे उस हो सका है । अत इसके लिए बा. छोटेलाल जी जैसे वर्ष का उत्सव मनाया गया था। आपने उत्सव को महो मूक सेवक का जितना भी आभार माना जाय और उन्हे जितना भी धन्यवाद दिया जाय वह सब थोड़ा है। प्राप त्सव का रूप देते हुए यह प्रस्ताव रखा था कि अगले वर्ष स्वस्थता के साथ दीर्घजीवी हो, यही अपनी हार्दिक यह उत्सव राजगृही मे ढाई सहस्त्राब्दी महोत्सव के रूप भावना है।" में मनाया जाय जहाँ भ. महावीर की वाणी का सबसे पहले अवतार होकर उनका तीर्थ प्रवर्तित हया था। कलकता के उक्त महोत्सव की समाप्ति पर बा० तदनुसार थावण कृष्ण १,२ ता०, ७-८ जुलाई १९४४ छोटेलाल जी बीमार पड़ गये, जिसका दुःखद समाचार को यह महोत्सव राजगिरि में बडे उत्साह के साथ मनाया मुझे 'बा० छोटेलाल जी बीमार' नाम की विज्ञप्ति के जिसका प्रानन्दप्रद संक्षिप्त परिचय "विपूला चल पर वीर- रूप मे अनेकान्त की उक्त नवम्बर १९४४ की किरण में शासन जयन्ती का अपूर्व दृश्य' नामक लेख से प्राप्त ही देने के लिए बाध्य होना पड़ा। उसमें बा० छोटेलाल किया जा सकता है, जो अनेकान्त वर्ष ६ की १२वी जी के पत्र का भी कुछ अंश उद्धृत है अतः उसे यहाँ किरण में प्रकट हुआ है। ज्यों का त्यों दे दिया जाना उचित जान पड़ता हैभारी वर्षा कालीन स्थिति के कारण विपुला चल- "पाठकों को यह जानकर दुःख होगा कि वीरशासन कल
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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