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________________ आधुनिक विज्ञान और जैन दर्शन पदमचन्द्र जैन आधुनिक युग वैज्ञानिक युग है। विज्ञान के चमत्कारों व्यापी मानते है। परन्तु जैन दर्शन में माकाश को दो को देखकर मानव दातो तले उँगुली दबाता है। विज्ञान रूपों में बतलाया गया है-१. लोकाकाश, २. प्रलोकाकाश के द्वारा ही अनेक बाते जो धर्म के नाम पर प्रचलित लोकाकाश में छ: तत्त्व होते हैं और प्रलोकाकाश में रूढियाँ थी, उनको समूल नष्ट किया गया। यही कारण आकाश ही तत्व है । कहा भी गया है किहैं कि बहुत से धर्म और विज्ञान में अधिकाधिक जीवा पुग्गलकाया धम्माषम्मा य लोगोणण्णा। विरोध है। तत्तो प्रणण्णमणं मायास अतवदिरित ॥६॥ जैनधर्म तो प्रथम तीर्थकर प्रादिनाथ का बताया पंचास्ति। हुमा मवंज्ञ, वीतराग और हितोपदेशी है। इसी कारण आक्सीजन और नाइट्रोजन (N2) का मिलना मौर यह वैज्ञानिक प्राविष्कारों का सहृदय स्वागत करता है। मिलकर हवा बनाना किसी भी रासायनिक सयोग के भारत के प्राचीन दार्शनिक शब्दो को गगन का गुण नियम से प्रतिपादित नहीं किया जा सकता। बनाते थे और उसे प्रमूर्तिक बताकर अनेक बातों का जाल इससे सिद्ध होता है कि वायु तत्व नहीं हैं । केबिडिश फैलाया करते थे, परन्तु जैनाचार्य ने शब्दों को जड़ तथा नामक वैज्ञानिक ने लिखा है किमूर्तिमान बताया था। आधुनिक विज्ञान ने भी अपने If there is any part of the phlogisticated ग्रामोफोन रेडियो इत्यादि प्राविष्कारो से उपरोक्त कथन air (Nitrogen. of our atmosphere which को पुष्टी की। differs from the rest.........it is not more प्राचीन काल में मनुष्यों का विचार था कि विश्व than 1/120 part of the whole. में पृथ्वी जल, अग्नि और प्रकाश प्रादि पाँच ही तत्व हैं, इस प्रकार वैज्ञानिक विचारों के अनुसार प्राचीन किन्तु सोलहवी सती के वैज्ञानिकों ने इन्हे मिथ्या सिद्ध पाँच तत्व मिथ्या सिद्ध कर दिए गए। . कर दिया । तुलसीदास जी ने भी लिखा है जैन दर्शन में पानी की अनेक प्रशृद्धियों पर प्रकाश "मिति जल पावक गगन समीरा, डाला गया। इसी कारण अहिंसामयी धावक जल को पंच तत्व यह प्रथम शरीरा।" छानकर ही पीता है। इससे जल की बहुत सी अशुद्धियां जल हाइड्रोजन (H2) और पाक्सीजन (02) का दूर हो जाती है। वैज्ञानिको ने भी सूक्ष्म दर्शी यन्त्र के एक यौगिक है। वैज्ञानिको ने इन्ही तत्वों को मिलाकर द्वारा सूक्ष्म जीवो को दिखलाया। जैनाचार्य अपने प्रतीजल का निर्माण किया। इसी जल को पुनः गर्म करने पर न्द्रिय ज्ञान के द्वारा जानते थे। अभीष्ट उपरोक्त तत्व प्राप्त हो जाते हैं। इससे सिद्ध वैज्ञानिक मतानुसार बिना छने पानी का सेवन करने होता है कि जल अलग तत्व नहीं है । से मनुष्य संक्रामक रोगो से प्रसित हो जाता है। जैन पृथ्वी अवस्थाधारी अनेक पदार्थों को पानी और हवा साधु इसी कारण पके हुए पानी का सेवन करते है। रूप अवस्था मे पहुँचा कर यह सिद्ध होता है कि पृथ्वी एक बार समाचार पत्र में कानपुर जिले की घटना वास्तव में स्वतन्त्र तत्व नहीं है।। प्रकाशित हुई थी। एक लडका खाट से उठकर नीचे जो सभी तत्वों को स्थान देता है, वह गगन तत्व रक्खे हुये लोटे का पानी पी गया। कुछ ही क्षण बाद कहलाता है। प्राचीन दार्शनिक इसे प्रमूर्तिक और सर्व- उसका हृदय बहुत जोर से धड़कने लगा। डाक्टरों ने
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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