SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ अनेकान्त अपने को पराजित माने । फिर जल युद्ध करके देख लो। सुखों और दुःखों के कारण में और जन्म-मरण के रहस्यों पश्चात् भुजयुद्ध कर लो जो इनमें हार जाय वह पराजित को जानने में प्रयत्नशील हो जायें। माना जायेगा । ऐसे युद्धों से तुम्हारी युद्ध करने की लालसा यदि संसार दूसरों को मार डालने में वीरता न मानपूरी हो जावेगी और तुम्हारे बीच की वैर रूप कषाय जो तुम्हारे सैनिकों में नही है, स्वतः शान्त हो जायेगी। पौर कर अपने दुर्भावों को मार डालने में ही वीरता मानने तुम लोगों के हृदयों मे भरे हुए बैर के कारण निष्फल लगे तो ससार के दुःखों का अन्त ही हो जायेगा । जिनअगणित निरपराध सैनिकों का संहार नहीं होगा। हिंसक जिन महापुरुषों ने अपनी दुर्भावनाओं, दुर्व्यसनो और नेता इसी प्रकार के प्रयत्नों से शान्ति स्थापित करने के दुराचारो का दमन किया वे ही लोक्य पूजित हुए; ध्येय रखते हैं। इसके विपरीत दूसरों पर विजय पाने के लोलपी अणिक भौतिक विज्ञान इस युग में विस्मयकारी चमत्कार विजयो निसन्देह हुए, यह अन्त में उनका कल्याण नही दिखा रहा है, पर इससे भी करोडो गुने विस्मयकारी हुआ है। चमत्कार माध्यात्मिक शक्ति सम्पन्न मानव दिखा चुके हैं। जो एक व्यक्ति के विषय में सत्य है, वही एक परिप्राचीनकाल के महात्मामों की बात तो प्रादर्श कोटि की वार, एक समाज, एक जाति और एक राष्ट्र के विषय में विस्मयकारिणी थी ही; मभी सन् १५६५ के लगभग की भी सत्य हो सकता है, यहाँ तक कि वह पूर्ण विश्वभर के बात है। फ्रांस के नौदईम नामक एक प्रवधुत की भांति लिए भी सत्य हो सकता है । सभी धर्मानुयायियों ने यथा जीवन व्यतीत करने वाले ने १००० भविष्य वाणियों को शक्ति अहिंसा सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और परिग्रह स्वकरके एक पुस्तक प्रकाशित कराई थी। उसके जीवन पता को महात्मानों की कोटि में विराजमान करने का काल में ही उसकी लगभग ९९ प्रतिशत भविष्य वाणियाँ गणेश माना है। हमारा अनुरोध है कि शासन उक्त यथावत् सिद्ध थी। गत छ योरूपीय महायुद्धों का भी विषयों पर अधिकारी लेखकों द्वारा मनोवैज्ञानिक प्रणाली उसमें जो संकेत था, वे सत्य निकले थे। उसकी प्रतिम के प्रथों की रचनाएँ करा के उनका स्वय, अपने देश में भविष्य वाणी यह थी कि ईसा मसीह के ७००० वर्ष प्रचार करे। छात्रों के हृदयों मे शैशव से ही उनका पश्चात् समस्त योरुप जलमग्न हो जायगा, केवन पाल्पस माध्यात्मिक महत्त्व अङ्कित करा दे। भिन्न भिन्न भाषामों पर्वत समुद्र के ऊपर निकला दीख पड़ेगा। अंग्रेजी प्रादि में उन ग्रंथों को अनूदित करावें और सम्राट अशोक की कई भाषामों में उसकी भविष्य वाणियां प्रकाशित हई भांति विश्वशान्ति के दूतों को प्रत्येक देशों में भेजकर थीं। मेरा पुष्कल स्मरण है कि सन् १९४४, १९४५ या विश्वशान्ति के उपाय करावे । वि १९४६ के जून, जुलाई या अगस्त मास की सरस्वती में इस लेख के लिखने में जो भी बलवती प्रेग्णा रही नौप्टर उस की भविष्य वाणियां शीर्षक एक लेख प्रकाशित है वह श्री विशनचन्द्र जी जैन प्रोवरसियर की है। हुमा धा। अत: इसमे जो कुछ भी अल्पसी अच्छाई हो, उसका श्रेय भौतिक विज्ञान जो नर संहारक माविष्कारों में अपनी थी प्रोवर सियर जी को प्राप्त होना चाहिए। शक्तियां लगा चुका है और लगाता जा रहा है, वह यदि अब लेख के अन्त में मैं स्वरचित तीन छन्दों को जो ऐसा मागे भी करता जायेगा तो इस भूमण्डल पर मानवों मैंने प्रब से लगभग २५ वर्ष पूर्व बनाये थे, 'मघरेण भादि का प्रलय ही हो जायेगा। विज्ञ विवेकियों का ममापर्यत' की लोकोक्ति के अनुसार लिखकर अपना कर्तव्य है कि पब मागे प्राध्यात्मिक माविष्कारों की मोर वक्तव्य समाप्त करता है.अगि मुम्ब हों । चन्द्रलोक की यात्रा के लिए महनिश प्रभो, प्रावेगा कब वह काल ? उत्सुख न होकर अपने घट में विराजमान प्रात्मलोक की जब इन सब विभिन्न सामाजिक संख्यानों के कार्य, और पभिमुख होकर उसके रहस्यों को जानें । जीवों के सर्व हितकर विश्ववन्धुता से होंगे निर्वाय ।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy