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अनेकान्त
रहे, दस वर्ष तक अवैतनिक संयुक्त मन्त्री पद को सुशो- माह शातिप्रसाद जी ने साहित्यिक विकास उन्नयन भित करते रहे हैं। तीन वर्ष तक आप एसोसिएशन के एवं सास्कृतिक अनुसन्धान तथा प्रकाशन के उद्देश्य से सन् उप-प्रधान एव दो वर्ष तक प्रधान पद पर भी आसीन १९४४ मे भारतीय ज्ञान-पीठ की स्थापना की। इसकी रहे थे। अपनी निष्पक्षता के प्राधार पर प्रापने जो स्थापना की प्रेरणा मे पापका प्रमुख हाथ रहा है। प्राप ख्याति प्राप्त कर ली थी, उसके कारण प्रापका निर्णय इसके ट्रस्टी एवं मचालन समिति के सदस्य रहे थे। प्राप सहर्ष स्वीकार होता था। आपके मन्त्रित्व काल मे एमो- इसके जैन प्रकाशनों के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण सुझाव देते सिएशन को व्यापारिक कार्यों के अतिरिक्त जनकल्याण रहते थे । स्वर्गीय प० नाथूरामजी प्रेमी के अनुरोध पर मे भी प्रवृत्त किया गया, जिसमे लगभग पांच लाख रुपये आपने माणिकचन्द अन्यमाला का कार्यभार ज्ञानपीठ को खर्च किये गये । माप इस एसोसिएशन की ओर से अनेक स्वीकार करने की प्रेरणा दी थी। व्यापारिक संस्थानो के प्रतिनिधि भी रहे थे।
आप स्वामी सत्यभक्तजी एव व शीतलप्रसादजी से प्राप जैन सस्कृति की सुरक्षा एवं उत्थान के लिए बहुत प्रभावित थे। आपने सत्यभक्तजी के आश्रम के हमेशा अग्रसर रहते थे। पाप प० जुगलकिशोरजी मुख्तार सचालन एव माहित्य प्रकाशन के लिए हजारो रुपया दान की लेखनी से प्रभावित हुए उनके कार्यों को प्रकाशन आदि दिया था। पाप गीतलप्रमादजी की धर्म-प्रचार-भावना के लिए हजारों रपये दान में देते रहे। वीर सेवा मन्दिर एवं माहिन्य-सृजन की अथक वृत्ति से बहुत प्रभावित थे। को सरसावा जैसी छोटी जगह से लाकर देहली जैसे आप उन्हे हर प्रकार का सहयोग देते रहते थे । केन्द्रीय स्थान में लाने का श्रेय पाप ही को है। आपने ग्राप जैन मस्कृति के पुरातत्व विभाग मे प्रेम रखते हजारो रुपया स्वय व औरों से दिलाकर स्थायित्व प्रदान थे इसलिए जन मामग्री की खोज में विभिन्न स्थानो पर किया । मन्दिर का अपना भवन बना जो पानेवाली पीढी जाते रहते थे। आप वहा मे सामग्री एकत्रित करते थे। के लिए प्रेरणा स्रोत एव जैन इतिहास व संस्कृति के अापके पाम पुरातत्व की दुर्लभ सामग्री के अनेक बहुमूल्य विद्यार्थियो के लिये महत्वपूर्ण केन्द्र सिद्ध होगा। आपने चित्र थे. जिनको विस्तृत कराकर स्थानीय बेलगछिया सस्था की पोर से प्रकाशित 'अनेकान्त' पत्र को महत्व. उपवन के हाल में सर्वमाधारण के प्रदर्शनार्थ, रख दिया पूर्ण सहयोग दिया । अपनी रुग्णावस्था में भी पाप इम गया है। मापके पास २५००-३००० के लगभग बहुमूल्य पत्र के लिए चिन्तित रहते थे एवं इसके समय पर निकलने
म एव इसक समय पर निकलने पुस्तके थी। अापका पूरातत्व विशेषज्ञो एक अधिकारियों की पावश्यक व्यवस्था भी करते थे। लेखादि के लिए से घनिष्ट सम्पर्क था । अाप यथावसर जैन पुरातत्व पर विद्वानों को प्रेरणा करते थे ।
लेख भी लिखते थे। आपने कलकता के जैन मन्दिरो की ___आपको शिक्षा से प्रेम अपने पिता श्री के संस्कारो से मतियो और यन्त्रो के लेखों को भी पुस्तकाकार प्रकाशित मिला था। माप स्याद्वाद विद्यालय, वाराणसी के बहुत कराया था। आपने जैन विवियोलोजी का प्रथम भाग समय से सदस्य थे साथ ही ट्रस्टी एवं उप-सभापति भी प्रकाशित कराया था। आप दूसरा भाग तैयार कर रहे थे। इस मंस्था का सम्मेदशिखरजी मे १९५६ मे स्वर्ण थे जो लगभग प्राय. पूर्ण हो चुका था, किन्तु सापकी जयन्ती महोत्सव मनाया गया था, जिसके मूल प्रेरक एव निरन्तर बीमारी के कारण प्रकाशित नही हो सका। आयोजक प्राप ही थे । इस अवसर पर संस्था के लिए आशा है अब वह प्रकाशित हो सकेगा। एक अच्छी धन-राशि एकत्रित की गई थी। आप एव आप रायल एसियाटिक सोसायटी के सम्मानिन आपकी प्रेरणा पर परिवार के अन्य सदस्यों की ओर से मदस्य थे । प्राप इसक प्रतिनिधि के रूप मे हिस्ट्री काग्रेम सस्था को अब तक लगभग ५० हजार रुपया दिया जा में भी कई बार गये थे । माप विदुपी चन्दाबाईजी के 'जन चुका है । प्रापको विद्यालय की उन्नति तथा खर्चे की पूर्ति बाला-विश्राम' प्रारा से भी सम्बन्धित रहे है । आप वहा एवं यथायोग्य संचालन का सदा ध्यान रहता था। की व्यवस्था, शिक्षा प्रादि से बहुत प्रभावित थे। किसी