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प्राचार्य सकलकोति और सनकी हिन्दी सेवा
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किया है। जन माहित्य को सम्पन्नता एव समृद्धि का २०. चारित्र गीत भोर २१. सीखामगरास। उल्लेख करते हुए उन्होंने अपने भारतीय साहित्य के इति- जीवन परिणव-मा. सकलकीति ने अपने जीवन हास भाग २ पृ.४५३ पर लिखा है कि
परिचय के बारे में कही कुछ भी उल्लेख नहीं किया है ___"There is scarcely any province of Indian पर बाह्य साक्ष्यों के माधार पर निश्चित होता है कि Intrature in which the Jains have not been वे स. १४३७ या १४४३ के लगभग गुजरात प्रान्त में able to hold their own . Above all they have 'मणहिल पाटन' पाम के प्रासपास कहीं अवतरित हुए developed a Voluminous narative literature. होगे । निम्नांकित एक ऐतिहासिक पत्र में उनके सम्बन्ध They have written epics and novels, they में बहुत कुछ जानकारी उपलब्ध होती है। जो जैन सिद्धांत have composed dramas and bymns, wome भास्करवर्ष १३ पृ० ११३ पर प्रमाणित हुमा थाtimes they have written in simple language ___ "प्राचार्य श्री सकलकीति वर्ष २५ छविमनी मस्थाह तथा of the people at other times they have com
तीवारे संयत्रलेई, वर्ष ८ गुरा पासे रहीने व्याकरण २ peted in highly eleborate poems with the तया ४ भण्या श्री वाम्बर गजरान माह गाम खोडेण best marters ofor nate court poetry and they पधारया वर्ष ३४ नी मंस्था थईनीवारे मं० १४७१ ने have also produced important work of scholor- व स्वहा' 'श्री चौवा ने गहे पाहार लीधो वर्ष २२ ship (A history of Indian Literature ll p. 483) पर्यन्त म्वामी नग्नहना जुमले वर्ष ५६.स. १४९९ ___ यह ठीक है कि जैन माहित्यकार लौकिक साहित्य का श्री मागवाड़ जुने देहरे प्रादिनाथनो प्रमाद करावाने पीछे निर्माण न कर मके पर उन्होंने जो कुछ लिखा वह मब पार- श्री नोगा मे मधे पद स्यापन करीने मागवाई जईने पोताना लौकिक और वैराग्य प्रधान रहा तथा उममें गान्त ग्म की पुत्रक ने प्रतिष्ठा करावी पोने मूर मत्र दोधों ने धर्मकीतिए बहुलता ही रही, उमका भाषा विज्ञान की दृष्टि से यदि वर्ष २४ पाटभोगव्यो" प्राचार्य मकलकीति जब २५ या तुलनात्मक अध्ययन किया जाय तो हिन्दी माहित्य के २६ वर्ष के थे तब उन्होने दीक्षा धारण की थी, उन्होंने क्रमिक विकाम मे जैन हिन्दी माहित्य का अपना एक बडा गुरु जी के पास ८ वर्ष रहकर २ या ४ व्याकरण पढ़। ही महत्वपूर्ण स्थान निश्चित रूप में होगा। भाषा विकाम इस तरह जब वे ३४ वर्ष के हुए तो म. १४७१ मे की दृष्टि में इन जैन माहित्यकागे का अपना एक अद्भुत गुजगत के खोड़ेण ग्राम में पधारे और वहाँ श्री योचा मूल्य हो। इसी लक्ष्य से हम यहाँ प्रा. मकलकति माहु के घर पाहार लिया वे २२ वर्ष तक नग्न दिगंबर रचित "सीखामरणगस" को अविकल रूप में दे रहे मुनि रहे इस तरह उनके कुल ५६ वर्ष हुए (मं० १४६६ है । जो अब तक सर्वथा अप्रकाशित है। यहा में उन्होंने सागवाडे के पुराने प्रादिनाथ चैत्यालय का उनकी अतिरिक्त अन्य हिन्दी रचनामो का केवल जीगोंद्धार कराया पुनः नोगामें मंघ में पदार्पण किया । नामोल्लेख मात्र ही कर रहा है। उनकी हिन्दी वहाँ से फिर सागवाड़े चले गये जहाँ प्रतिष्ठा कराई और रचनाएँ निम्न प्रकार है। १. पाराधना प्रतिबोधमार, धर्मकीति को दीक्षित किया जो २४ वर्ष तक अपने पट्ट पर २. कमंचर व्रत बेलि, ३. फुटकर पद संग्रह, ४, पार्श्वनाथा- रहे । इम तरह मा० मकलकीर्ति का समय सं० १४३७ प्टक, ५ मुक्तावली गीत, ६. सोलह कारणगसा. ७. या १४४३ से २४९९ तक तो मप्रमाण मिड होता हैं। शान्तिनाथ फागु. ८ द्वादशानुप्रेक्षा चउपई ६. अकृत्रिम म.१४८१ के प्रावण मास में उन्होंने बड़ाली में चैत्यालय प्रवाडि, १० धर्मवाणी, ११ पूजागीत. १२. चतर्मास किया था तथा प्रमीझराके पार्श्वनाथ चैत्यालय दानगीतड़ी, १३ णमोकार गीतडी, १४ इन्द्री सवर गोत मे अपने भनुज व. जिनदास के प्राग्रह पर 'मूलाचार १५. दर्शनवीनती १६. जन्माभिषेक धूल. १७. मूलसघ प्रदीर' नामक संस्कृत ग्रंथ समाप्त किया था। जैसा कि घूल, १८. भव-भमण गीत, १९. चवीस तीर्थकर फाग. प्रा. मकल कीर्ति की एक कविता के निम्न अंश से विदित