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________________ १२२ अनेकान्त है— 'बाप ! पापने करत मेरी घनी घटि गई ।' २५२ ॥ 'मोरे से बाल' सुजानमल को भी पोषण पाने तथा मायापाश से मुक्त होने के लिए जिन भगवान् माता-पिता के रूप में याद भाते हैंइन कलिकाल कराल तुम बिन कौन करे प्रभु मोह माया तजी फांस पर फांस हर बाप जी का जाल में मैं भोरो सो बाल । मेरी मायत ज्यूं प्रतिपाल । घणी बहुं गई दुल बेकारी । संताप जी कुण सुने धरज तुम बिन हमारी ॥३४ सुजान पद सुमन वाटिका के प्रथम भाग में राजमति विरह के भी कुछ सरस छंद मिलते हैं। पति नेमिनाथ के गिरिनार पर्वत पर तप के लिए चले जाने के कारण राजमती की बड़ी हृदयद्रावक अवस्था हो गई है, जो उन्हीं के शब्दों में दृष्टव्य है रूप रंग चातुरता चित की दुल्हा ने मेरा छीन लिया । रूप रंग चातुरता चित की दूल्हा मेरा छीन लिया । चन्द्र चन्द्रिका चनणविले पण लागत ज्यूँ ततिया बतिया ॥ खान पान सुख शयन न निद्रा तलफत ज्यूं जल बिन मछलिया । पीछा फिर प्रावो जब जाणूं दुःखहरण विरुक साच रचिया ॥२२॥ लोक-कल्याण तथा प्रादर्श समाज की स्थापना भारतीय साहित्य का प्रमुख लक्ष्य रहा है। यही कारण है कि कालिदास, भवभूति तुलसी प्रादि जो भी महा-कवि इस भारत-भू पर अवतीर्ण हुए उन्होंने अपने कल्याणकारी विचारों से भारतीय समाज का नेतृत्व किया। जैन कवियों ने भी जहाँ अपने भावुक हृदय से अनेक भाव-भीनी पंक्तियाँ उद्घाटित की हैं वहाँ विचारशील हृदय से नैतिक धारणाएँ अभिव्यक्त कर भारतीय काव्य की लोक-कल्याण पूर्ण गौरवमयी परम्परा को जीवित रखने का प्रशंसनीय प्रयत्न किया है। सुजानमल की प्रतिभा का भी एक भाग महकार धैर्य, सप्तव्यसन, समता, दया, सुमति श्रादि नैतिक विषयों पर अपने विचार अभिव्यक्ति करने मे व्यय हुआ है। उनमे उपदेश भौर उद्बोधन करने की प्रवृत्ति अधिक है इधर कुछ दिनों से धर्म (रिलीजन) और विज्ञान ( साइंस) में सम्बन्ध स्थापित करने की प्रवृत्ति चल पड़ी है । मौखिक चर्चा से लेकर लेखों और ग्रन्थों तक का विषय बन चुका है धर्म और विज्ञान का सम्बन्ध । तो, आइए, हम एक नये दृष्टिकोण से इस विषय पर संक्षिप्त विचार करें । सुध श्रद्धा दया परम की धारो, बोल तोल सत्य दाखो रे । प्रवत्त ग्रहण मत कर मति मता, शील सुधा रस चालो रे । परिग्रह ममता मेटो कवायां, ज्यं सुधरे सहुं पवालो रे । राग द्वेष की परिणति छोड़ो, कलह माल किम प्रालो रे । १२ ॥ हिन्दी साहित्य के इतिहास में कबीर, सूर और तुलसी के समान बनारसीदास, सुजानमल आदि प्रनेक जैन कवि अपने विशिष्ट स्थान के अधिकारी हैं। इनके काव्य के अध्ययन के बिना हिन्दी साहित्य का इतिहास सर्वदा अधूरा ही रहेगा। ★ धर्म और विज्ञान का सम्बन्ध पं० गोपीलाल 'अमर' धर्म क्या है ? जो धारण किया जावे १ । किसके द्वारा ? वस्तु के द्वारा । क्या? उसका अपना स्वभाव । क्या मतलब ? वस्तु का स्वभाव ही धर्म है२ | १. धियते इति धर्मः । २. 'वत्थुसहावो धम्मो ।'
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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