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________________ उदारमना स्व. बाबू छोटेलालजी वंशीधर शास्त्री गत २६ जनवरी को प्रात. श्री छोटेलालजी जैन जैसे आपने व्यवसाय से सन् १९५२ के दिसम्बर मे ही मूक सेवक, पुरातत्त्व संस्कृत के प्रेमी तथा निर्भीक कार्य. निवृत्ति ले ली थो, तब से पाप अपना पूर्ण समय सस्कृति कर्ता का देहावान हो गया है । इन जैसा उदारमना तथा के उत्थान मे देने लगे। जब किसी असहाय जैनी के बीमार निर्भीक व्यक्तित्व वाला पुरुप सहज सुलभ नहीं होगा। होने का समाचार मिलता तो आपके पिताजी स्वयं जा उन जैसे विविध प्रवृत्तियों में लीन व्यक्ति को कर उसकी सेवा-शुश्रूषा की व्यवस्था करते थे, वे अपने जीवन-गाथा पाने वाली पीढियों के लिए हमेशा प्रेरणा- अन्य पुत्रो के माथ प्रापको भी रोगी के पास ले जाने स्पद रहेगी, जो व्यापार व्यवसाय मे रहते हुए भी पुरा- थे। प्रापकी नि.स्वार्थ सेवा से रोगी अपनी बीमारी के तत्त्व, शिक्षा, साहित्य, संस्कृति, समाज सुधार एवं सारे दु ख भूल जाता था, पाप बीमार के मल-मूत्र साफ संगठन तथा प्रभावग्रस्त एवं पीड़ित मानवों की सेवा करने में भी नहीं हिचकते थे। पादि में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते रहे, जो चिर इस प्रकार की परिचर्या पाप केवल सम्बन्धी या अविस्मरणीय होगे। परिचित की ही करते हो, ऐसा नहीं था । सन् १९१८ आपका जन्म ७० वर्ष पूर्व १६ फरवरी १८६६ दिगम्बर में कलकता मे हुए इन्फ्ल्यूएन्जा के ममय बडा फाल्गुन शुक्ला २ वि०म० १६५२ को हया था। मापके बाजार में गरीबो को ढ ढ-ढूंढकर पाप उनकी चिकित्मा, पिता श्री गमजीवनदासजी सरावगी कलकत्ता जनसमाज पथ्य आदि की व्यवस्था करवाते थे। उन्होने कलकना के प्रतिष्टित व्यक्तियो मे से थे। पाप बचपन से ही कारपोरेशन से लिखा-पढी कर एक चिकित्मक की व्य अपने पिताजी के अधिक सम्पर्क में रहे थे। पिताजी के वस्था कराई। इस प्रकार रोगाकान्त मानवो.को मेवा मे पास पाने वाले व्यापारियो एवं विद्वानो की चर्चा ग्राप आप एक माह तक लगे रहे। रुचिपूर्वक मना करते थे एवं कभी-कभी आप चर्चा मे आप प्रारम्भ से ही सेठ पनराजजी रानीवालो के भाग भी लेते थे । इन सब का परिणाम यह हुमा है कि मम्पर्क में आये । उनके पिता सेठ फूलचन्दजी से आपके पाप प्रारम्भ से हो सार्वजनिक व सामाजिक क्षेत्र मे पिताजी का घनिष्ट सम्बन्ध था, इसीलिये मापका उनके अभिरचि लेने लगे । इस अभिरुचि ने ही इन्हें मूक सेवक यहाँ बरावर आना-जाना बना रहता था। आप उनकी बनने की प्रेरणा दी। ममाज सुधार एवं राजनैतिक विचारधारा से बहन प्रापकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय दिगम्बर जैन प्रभावित थे। पारा के श्री सिद्धान भवन के बाबू करोडी पाठशाला में हुई। प्रापने मैट्रिक परीक्षा श्री विशुद्धानन्द चन्दजी कलकत्ता पाते रहते थे, वे रानीवालों के यहाँ सरस्वती विद्यालय से पास को। तत्पश्चात् कालेज में ठहरते थे । अतः बाबूजी का भी उनमे परिचय हुप्रा । पढना जारी किया, किन्तु कुछ विशेष कारणों के कारण जो आगे चलकर घनिष्ठना में परिवर्तित हुअा, पापकी पाप अध्ययन छोडकर गनि व हैसियन के व्यापार में लग पुरातत्त्व, साहित्य के प्रति रुचि जागृत करने में श्री गये, जहाँ पारने अपने बुद्धि-कौशल से धनोपार्जन के साथ करोडोचन्दजी का बहुत बडा हाय रहा। यह रुचि पापक साथ अपने सहज निर्मल व्यवहार से प्रतिष्ठा भी अजित जीवन का मुख्य प्रग बन गई। की। आप कलकत्ता जैन समाज की ही नहीं, अपितु अन्य
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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