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________________ मचलपुर के राबाबीपालन ही राजा थे, ऐसा मानना पडगा। मोर इतिहास भी पौरपरसपर इनका केहो प्राण की परिभाषा में यही कहता है कि यापुर इल राजा कमषान पा हा अनेक जिले और प्रान्त का जो सम्बन्ध हैसन दिनों इन तथा गोपाल को एक लाख प्राट बार जो मंत्र जपने छोटे-छोटे राज्यों का यही संबंध होगा। को कहा था वह मत्र यह हैं-'भों उसग्गहरं पास (२) उसी प्रकार 'इल्लि देश' इस शब्द का मतमब बंदामि, कम्मिघणमुक्कं विसहरं विसणिण्णासणं मंगल. इलीचपुर (Ellichpur) जिले से होना चाहिए । यह तो कल्याण-मावासं, मो ही नमः स्वाहा।' निर्विवाद है कि इसका पौराणिक और ऐतिहासिक नाम पार्श्वनाथ+श्रीपुर+और श्रीपाल राजा का जहाँ 'प्रचलपुर' ही है। लेकिन हेमचन्द्र सूरि यह बताते है कि, त्रिवेणी संगम है ऐसा श्रीपुर अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ का अचलपुर इस शब्द में मोरल की पदला बदली होकर स्थान ही हो सकता है, ऐसी हमारी मान्यता है। ही मलचपुर यह नाम पड़ा है। प्रलचपुर के एलपुरअब देखना यह है कि पहली कथा-में उद्धत एलीचपुर, इलीचपुर प्रादि समान शब्द है। और इसी (१) बच्छ (बत्स) देश और श्रीपुर नगर कौनसा है, कारण से राजा को तब एल, एलगराय या ईल कहा (२) इल्लि देश कौनसा होगा। (३) हरिपुर गांव जाता होगा। कहां था, और (४) गोपाल राज्य पर बैठने के बाद बड एक बात तो निश्चित है कि प्रचलपुर का-प्रलच सचमुच हुमा था क्या ? आदि । पुर (प्रलेचपुर) ऐसा रूपातर बारहवीं शताब्दी के पहले (१) यहां उत्तर भारत का प्रसिद्ध वत्स देश अभिप्रेत ही हो गया था। अचलपुर यह प्रतिप्राचीन नगर होते नही है, क्योकि बत्सगुल्म-वच्छोम (माजका वाशीम हुए भी अमरावती डि० गंजेटियर में लिखा है-'Raja जिला अकोला) एक समय राजधानी थी। अतः उसके It founded Ellichpur, according to local राज्य को वच्छ या वत्स कहा हो तो बहुत सभव है। pandits'. राजा ईल ने स्थानीय विद्वानों की सलाह से वाशीम को बत्सनगर भी कहते है और अन्तरिक्ष श्रीपुर एलिचप की रचना की । एक बात ध्यान देने योग्य है वत्सनगर से सिर्फ १०,१२ मील के अन्तर पर ही है। कि एलिचपुर में ५२ पुरे याने मोहल्ले थे। उसमें भाज तथा एक यह भी गति है कि राजधानी के नाम से भी अचलपुर शहर नामक एक स्वतन्त्र भाग है। राज्य को पुकारना, जैमे-प्रवति नगरी से प्रति देश, मणिवत नगर से मणिवत देश, और भाज भी बाम्बे स्टेट, .. (३) उन ५२ पुरे में प्राज भी एक 'हिरपुरा है जो म्हैसूर स्टेट, प्रादि । 'हरीपुर' का अपभ्रंश मालूम पड़ता है। और एक बात सोनाम से ध्यान देने योग्य यह है की प्रत्येक पुरे में यहाँ थोड़ा-थोड़ा पुकारा जाता है। जिले को सस्कृत में 'मण्डल' कहते है। अन्तर है। अतः इन सब देहात जैसे स्थलों का एकीकरण बृहद्रव्य सग्रह टीका के प्रारम्भ मे हि श्रीपाल राजा को ईल राजा ने किया होगा जो युक्ति युक्त ही है। महामण्डलेश्वर जिलो का अधिकारी बतलाया है। प्रतः श्रीपुर का गोपाल ग्वाल देवी के कहे मुताबिक यह बात और है कि, पूरे विदर्भ में उस समय राष्ट्र- इस इल्लि देश के हरिपुर गांव में पाये हो तो उसमें बाधा कटो का अमल था । और अचलपुर उनकी उपराजधानी नही माती; क्योकि श्रीपुर से एलिचपुर (या हरिपुर भी थी। लेकिन इसी से ही सिद्ध होता है कि एलिचपर कहिए) का अन्तर लगभग १०० मील का ही है। प्रमगका राजा सम्राट नही सामत ही था। उसका अधिकार वती डि. गजेटियर में बताया है की, The legend of कुछ विशेष मण्डलो पर चलता था। इसीलिए ईल राजा Raja It, is that he was a Jain by religion and को अन्तिम राष्ट्रकट राजा इन्द्रराज (चतुर्थ) का सामत come from the village now known as Khanराजा ही कहा गया है । अत: यह बहुत कुछ सभव है कि, zama nagar near Wadgaon. (राजा ईल की हकीये बच्छ, इलि प्रादि मण्डल जैसे राज्य विभाग ही हो कत यह है की वे धर्म से जैन थे और बड़गांव के पास जो
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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