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________________ मिलती है। इसकी रचना फाल्गुन शु०४ शक १६१४ लिए संघपति पूंजा ने भाग्रह किया था। इस विषय के के दिन कारंजा के चन्द्रनाथ मन्दिर में पूर्ण हुई थी। मूल पद्य इस प्रकार हैंकवि के गुरु काष्ठासंघ-नन्दीतटगच्छ के भट्टारक सुरेन्द्र- काष्ठासंघ प्रसिद्ध गच्छ नन्दीतट नायक। कीति ३१ तथा इस काव्य की रचना उन्होने सघपति विद्यागण गंभीरसकल विद्या गुण ग्यायक ।। भोज के प्राग्रह से की थी। इस सम्बन्ध के मूल पद्य इस रामसेन माम्नाय इंद्रभूषण भट्टारक। प्रकार हैं तत्पट्टोडर पौर सुतकीर्ति सुखकारक। पुन्नाट संजक गच्छ स्वच्छ पुष्करगण राणो। तवन विनिर्गत अमृतसम सदुपवेश वाणी सुनी। विनयंधर सूरीश ईश तवंशे मानो॥ पश्चरण पासजिनवरतणा जोड्या धनसागर गुणी ॥१४॥ प्रतापकोति भट्टारक तशिरोमणि धामह । देश बराड़ मझार नगर कारंजा सोहे। तत्पट्ट प्रतिसुहन भुवनकीति अभिरामह ॥ चंद्रनाथ जिनचंत्य मूलनायक मन मोहे । गच्छ नन्दीतट विद्यागण सुरेनकीर्ति नितवंदिये। काष्ठासंघ सुगच्छ लाडबागड बड़भागी। तस्य शिष्य पामो कहे दुखदाति निकरिये ॥२१॥ बघेरवाल विख्यात न्यात श्रावक गणरागी। शाक बोडश शत चौव बुद्ध फाल्गुन सुव पक्षह। जिनपरमी जमुनासंघपति सुत पूजा संघपति वचन । चतुर्यि दिन चरित परित पूरण करि बक्षह ।। चितमे परि प्रत्याग्रह पकी करी सुधनसागर रचन ।१४ । कारंजो जिन चंद्र इंद्रवंवित नमि स्वार्थे । षोडश मात एकवीस शालिवाहन शक जाणो। संघवी भोजनी प्रीत तेहना पठनार्थे । रस भुज भुज भुज प्रमित वीरजिनशाक बखाणो । पलि सकल श्रीसंघने येषि सहू वाछित मले। विक्रम शाक विविक्त बरस सत्रासे बीते। चक्रि काम नामे करी पामो कहे सुरता फले ॥२१॥ कृत मंगल मगलवार दिन मंगल मंगलतेरसी। नागपुर के श्रीपाश्र्वप्रभु बड़े मन्दिर में स्थित पपा घनसागर पासजिनेस का षटपद् वचन कहे रसी। १६॥ वती-मूर्ति का लेख प्रकाशित हुमा है (भट्टारक सप्रदाय पृ० २८२)। यह मूर्ति बघेर वाल ज्ञाति के बोरखंड्या धनसागर की अन्य रचनाएँ इस प्रकार हैं-नवकार गोत्र के साह भावा के पुत्र पामा ने शक १५६१ में काष्ठा- पचीसी (सं० १७५१), विहरमान तीर्थकर स्तुति (सं. संघ-नन्दीतटगच्छ के भ० लक्ष्मीसेन द्वारा प्रतिष्ठित कराई १७५३), दानशीलतपभावना छप्पय (केवलपूर्वार्ध) रचना थी। हमारा अनुमान है कि ये साह पामा ही प्रस्तुन कवि समय प्रज्ञात)। पामो हैं । यद्यपि इस मूर्तिप्रतिष्ठा और प्रस्तुत काव्य ५. कवियों के प्रेरणास्रोत संघपति भोज-कवि पामो रचना में ५३ वर्षों का अन्तर है तथापि वह एक व्यक्ति ने अपनी काव्यरचना के प्रेरणादाता के रूप मे जिन के जीवन के लिए असभव नहीं है। सघपति भोज का उल्लेख किया है वे अपने समय के ..कवि बनसागर-इन्होने कारंजा में ही शक प्रथितयश श्रीमान थे। कवि धनसागर ने भी सरस्वती१६२१ की माश्विन व० १३ को पार्श्वनाथ पुराण की लक्ष्मीसवाद में उनकी बहुत प्रशसा की है जिसके मूल पद्य रचना पूर्ण की थी। धनसागर भी काष्ठासंघ-सन्दीतटगच्छ इस प्रकार हैंके भ. सुरेन्द्रकीति के शिष्य थे। उनकी काव्यरचना के दक्षण देश मझार खंड वैराड विपंतो। १. परिवार की परम्परा से कवि काष्टासघ के लाडबागड बघेरवाल बर न्यात धर्म तहाँ जेन जयंतो॥ (पुन्नाट) गच्छ के श्रावक थे किन्तु उस समय इस मनि करे चौमास प्रास ते सहकी पूरे। गच्छ के कोई भट्टारक मौजूद नही थे अत. वे नन्दी गनियन गहरे लोक कर्म ते कठन महि चूरे ॥ तटगच्छ के भटटारकों को गुरु मानकर धर्मकार्य इनमें विसेस मुनिराजको प्रेमप्यार इक बारणो। सम्पन्न कराने थे। संघवीय भोज धनराजको कद कवित्त तस कारणो ॥॥
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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