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________________ तलपर में प्राप्त १६० दिन प्रतिमाएं संग्रहालय भवन के पीछे एक स्तम्भ भूमि में गाड़कर से कवि ने वर्णन किया हैप्रदर्शित किया गया है। यह स्तम्भ भी इन्हीं प्रतिमामों ध्रम देश मण्डोवर महा. बलसर राजा सोहए। के साथ नरबर में स्थित तलघर से ही प्राप्त हमा है। तिहा गाम एक प्रमेक पालक, पंधांणी मन मोडm दूषलारे नाम तलाव बहरत, इसके चारों तरफ जैन साधु प्रकित हैं। क्योंकि जैनधर्म तसु पूठा रेसोलाइमामक हर। में साधुनों को विशेष स्थान एवं महत्व दिया जाता रहा तसु पाईरेसिणंता प्रगटयर मुंहरी, है। इस जैन चौमुख स्तम्भ पर यह लेख संस्कृत भाषा परियागत रे जाण निधान प्रगट्यो सरर । में अंकित हैं, "मबत् १५१७ श्री नभ भीतराठा श्री कष्ट प्रगट्यउपर हरउ, तिण माहि प्रतिमा पति भली। सप्तया......।" इस प्रकार और अन्य जैन प्रतिमाएँ जंठ सुबी इग्यारस सोल बासठ, विब प्रगट्यर मारली। जो कि नरवर से प्राप्त हुई हैं उनमें १२४२, १२४३ तथा केतली प्रतिमा केहनी बलि, किण भराण्यउ भावसुं। १५१७ सवत् मिलता है। इन तिथियों से यह स्पष्ट हो एकउण नगरी किण प्रतिष्ठी, ते कई प्रस्ताव॥२॥ जाता है कि सारी जैन प्रतिमाएँ जो नरवर से प्राप्त हुई ते सगली रे पैंसठ प्रतिमा जागिया, हैं वे मध्यकालीन है । उस समय यहाँ पर जैन धर्म का जिम शिवमी रे सगली विगत बबाणिया। अधिक प्रचार था।" समय-समय पर जैन मूर्तियों की रक्षा के लिये भूमि- मलनायक रेश्री पद प्रभू पास जी, इक चौमुख रे चौवीसट सुविलास जी। गृहो प्रादि मे रखा जाता था और कही-कही तो खड्ढा सुविलास प्रतिमा पास केरी, बीजी पणी ते वीसए। खोदकर या बालू के धोरों आदि के नीचे भी मूर्तियाँ ते माहि काउसग्गिया बिहुँ विशि, बंउ सुन्दर बीसए॥ छिपाकर रखी जाती थी-ऐसी बहुत-सी मूर्तिया उदय वीतरागनी चवीस प्रतिमा, बली बीजी सुन्दरू। काल पाकर प्रकट होती रही हैं। उन मूर्तियों के प्रति सगली मिली ने जैन प्रतिमा, संतालीस मनोहरू ॥३॥ लोगों की विशेष श्रद्धा होना स्वाभाविक है। १७वीं इन ब्रह्मा रे ईसर रूप चश्वरी, शताब्दी से २०वीं शताब्दी तक मूर्तियो के प्रकट होने की इकविका रेकालिका प्रई नारेश्वरी। अनेकों घटनाएं सुनी जाती है। कइयो के सम्बन्ध में तो विन्यायक रेजोगणी शासन देवता, समकालीन उल्लेख भी मिलते हैं। महोपाध्याय समय पासे रहा रेश्री जिनवर पाय सेवता॥ सुन्दरजी के घघाणी व सेत्रावा मे मूर्तियों के प्रकट होने सेविता प्रतिमा जिण भरावी, पाच पृथ्वीपाल ए। चनगुप्त सम्प्रति बिन्दुसार, अशोकचनकृणाल ए। सम्बन्धी दो स्तवन प्राप्त होते हैं। उन स्तनों के कति. कंसाल जोडी धूप पाणी, दीप सब भूगार ए। पय पद्य नीचे दिये जा रहे हैं। त्रिसठिया मोटा तवा काल ना, एह परिकर सार ए॥४॥ (१) सवत् १६५५ के फाल्गृण सुदि रविवार को मलनायक प्रतिमा भली परिकर अभिराम । सेवाबा मे ५ मूर्तियां प्रकट हुई जिनका उल्लेख करते सुन्दर रूप सुहामणउ, श्री पत्र प्रभु स्वाम ॥१॥ हुए कवि ने लिखा हैसंवत सोल पंचावन, फागण सुदि रविवार । इसी तरह खींवसर गांव में १७वीं शताब्दी में जैन प्रगट पई प्रतिमा घणी, सेत्रावा सिणगार ॥२॥ मूर्तियां प्रकट हुई थीं उनके सम्बन्ध में एक अन्य कवि का ऋषभ शीतल शांति वीरजी, श्रीवासुपूज्य अनूप । रचा हुमा स्तवन प्राप्त है। सं० २०१३ में बीकानेर से सकल सुकोमल शोभती, प्रतिमा पाँचे सरूप ॥३॥ ७० मील अमरसर गांव में बालू के टीबे में १६ प्रतिमाएं श्री संघ रंग बधामणा, मानव अंगन माय । निकली थीं जिनमे से २ पाषाण और १४ धातुमय है। भाव भगति करि भेटियो, प्रथम जिलेसर राय ॥४॥ जिनमें से १२ जिन-प्रतिमाएं और २ देवियों की प्रतिमाएं (२) पंचाणी के डुपला तालाब के खोखर नामक हैं। १० प्रतिमानों पर लेख खुदे हुए हैं जो सवत् १०६३ देहरे के भूमिगृह मे सवत् १६६२ के जे० सुदि ११ को से १२३२ के हैं। ये प्रतिमा लेख हमारे "बीकानेर जन बहुत-सी प्रतिमाएं प्रकट हुई थी जिनके विषय में विस्तार लेख संग्रह" के पृ०४०६ मे छप चुके हैं।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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