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________________ स्वर्गीय बाबू छोटेलाल जी की अपूर्ण योजनाएँ श्री नीरज जैन सत्तर वर्ष की आयु मे एक दीर्घ और कष्टदायक अथक परिश्रम करके और बहुत व्यय करके तैयार कराये बीमारी के बाद गत छब्बीस जनवरी को कलकत्ता के थे । इन चित्रों तथा निगेटिव का संग्रह भी इसी कक्ष में मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी अस्पताल मे बाबू जी ने इस प्रदर्शनार्थ रखा गया है। नश्वर शरीर का त्याग किया। पूज्य वर्णी जी महाराज के टेपरिकार्ड किये हुए बाबू छोटेलाल जी ने अपनी इस पर्याय का अधिकाश । भाषणों का संग्रह तथा टेप मशीन दो वर्ष पूर्व ही उन्होने भाग जैन पुरातत्त्व, इतिहास तथा साहित्य का शोध और मुझे सौंप दी थी। इन भाषणों की सुरक्षा, प्रसार मोर प्रकाशन में व्यतीत किया था। उन विषयो की विपुल अतिरिक्त प्रतियां तैयार करा कर रवाने की व्यवस्था में शोध-सामग्री और एक अच्छा पुस्तकालय वे छोड गये है। कर रहा है। खण्डगिरि उदयगिरि की सवा दो हजार वर्ष प्राचीन शेष सामग्री की व्यवस्था और योजनाओं के संचालन जैन गुफापो की खोज तथा प्रकाशन सभवतः उनके जीवन के सम्बन्ध में विचार करने मैं और प्रोफेसर खुशालचन्द्र की विशालतम सफलता थी । इसके अतिरिक्त जन गोरावाला कलकत्ता गये थे। श्रीमान् साहु शांतिप्रसाद जी बिबलियो ग्राफी का प्रकाशन, सैकडों भूले-बिसरे जैन से विचार विमर्श करने का भी अवसर अनायास मिल मंदिरों मूर्तियों की शोध एवं व्यवस्था, वीर-शासन संघ गया। रविवार ६-३-६६ को श्रीमान् साहु जी एव श्री की स्थापना और उन्नति, वीर-सेवा-मंदिर की उन्नति लक्ष्मीचन्द जी ने बेलगछिया पधार कर समस्त सामग्री प्रादि दर्जनों ऐसे कार्य है जो उनकी जीवन व्यापिनी मूक । का निरीक्षण किया। पूज्य भगत जी, सर्व श्री बाबू साधना के फल के रूप में हमारे समक्ष है। नन्दलाल जी, जुगमदर दास जी, बशीधर जी शास्त्री, उनकी इन योजनाओं की उनके बाद क्या व्यवस्था नन्दलाल जी (जवाहिर प्रेस), नमिचन्द पटौरिया पौर हो तथा उनकी सामग्री का क्या उपयोग हो इसकी एक भाई अमरचन्द जी, भाई शांतिनाथ जी का भी सहयोग रूप-रेखा उन्होंने बना रखी थी। समय-समय पर मिलने पौर मार्ग दर्शन प्राप्त हुना। इस प्रकार जो सामयिक वालों से इस बारे में चर्चा भी वे किया करते थे। इतना व्यवस्था करना निश्चित हमा है वह इस प्रकार हैही नहीं, उस रूप रेखा पर कार्य करना भी उनके जीवन काल में ही प्रारम्भ हो गया था। १. साहित्य के क्षेत्र में जन बिबलियो ग्राफी का प्रकाबेलगछिया मंदिर के एक विशाल कक्ष मे जैन शन स्वर्गीय बाबू जी का मही स्मारक होगा । लगभग एक पुरातत्व का संक्षिप्त परन्तु समग्र परिचय देने वाली एक हजार पृष्ठ के इम अन्य की पाण्डु लिपि लगभग तैयार चित्र प्रदर्शनी लगाने तथा उनके ग्रन्थ भण्डार को एक है। डा० श्री ए०एन० उपाध्ये पोर डा० सत्यरंजन बनर्जी नियमित पुस्तकालय का रूप देने का कार्य उनके सामने जी इसे अन्तिम रूप दे रहे हैं। इसके प्रकाशन का कार्य ही प्रारम्भ हो गया था जो यथा शीघ्र पूर्ण हो जाने की यथा शीघ्र प्रारम्भ किया जाय । जैनाचार्यों पर जो शोष माशा है। अपनी शेष सम्पत्ति के सदुपयोग के लिए भी कार्य बाबू जी ने प्रारम्भ किया था उसको सम्भावनामों "जैन ट्रस्ट" की स्थापना वे अपने सामने ही कर गये है। पर श्री गोगवाला प्रारम्भिक खोज और विचार करेंगे। धवल जयधवल प्रादि सिद्धान्त ग्रन्थों को मूल ताड़- २. बेल गछिया की चित्र प्रदर्शनी को समृद्ध मोर पत्रीय प्रतियों के वृहदाकार चित्र भी स्वर्गीय बाबू जी ने पूर्ण बनाया जाय। ऐसी ही एक प्रदर्शनी वीर सेवामन्दिर
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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