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________________ साहित्य में अंतरिक्ष पानाप बोपुर २७ जोगी, एडवोकेट वाशीम के पास है। उसमें उन्होंने महाराज तेथे श्रीपुरी अन्तरिम, 'सम्यक्त्व महात्म्य' वर्णन में इस प्रकार लिखा है कि सदा जो देखिला असे मी प्रत्यक्ष । 'पहा त्या खरदूषण राजानं, देवाकार केला उत्तम पण । असे पावले स्वामी राया श्रीपाल, मग घेतले आहार भोजन, सम्यक्त्व वर्म त्या नाव । असे पावजी देखिले माजि डोल ॥२॥ इसका सीधा अर्थ यह भी होता है कि, उस खरदूषण तथा उन्होंने प्रत्यक्ष प्रभु के सामने जो गीत गाया राजा ने-पाश्र्वप्रभु की-मूर्ति करने का उत्तम पण था, उसमें बताया है की राजा ने श्रीपुर में स्वामी की (नियम या प्रतिज्ञा) किया था। उसकी पूर्ति होने पर अच्छी रचना की है। स्वामी श्रीपाल को प्रसन्न याने ही उसने भोजन किया। सारांश प्रतिज्ञा पूरी करना हि प्राप्त होने पर प्रभु पूजन से उसका कोड गया। तब सम्यक्त्व की महिमा बढ़ाना है। राजा ने कच्चा सूत से गुफा हवा एक रथ बनाया, उस (३४) बापु (प्रज्ञात काल)-इनकी एक तीर्थ पर प्रभु विराजमान हए । रथ पर बैठकर राजा भी रथ बदना मिलती है, जिसमें अलग अलग तीर्थों की वंदना, हांकने लगा, लेकिन राजा ने खड़े होकर पीछं देखा तो वहाँ जाकर करने की प्रेरणा है। देखो प्रभुजी की जगह पर ही रथ रह गया । यह देखकर राजा 'चल सीरपुराल जाऊ, देव अंतरिक्ष पाहू चितित हुमा और धावा करने बगा कि, हे प्रभो, अंतरिक्ष, माम्ही देवाच्या मालणी, शब्द हारासी गुफूनी।२ मापने यह क्या किया? हे प्रतरिक्ष मुझे सारो और पाले विकाया देउली, फुका घ्या हो सभामोली ।३ भव-भव में आपकी सेवा करने की संधि दो। प्रादि देखोनका देउ कपर्दिका, परिहंत बोल मुखा ।४ 'पासोबा तुझे रूप मी नित्य पाहूँ, ...पहा त्या श्रीपाल राजाचा, तीये कोड गेला त्याचा ।१. तुझे स्थान कि नित्य नाथाची राहु । .."बापु म्हणे श्रावकासी, चल सिरपुर यात्रेसी ।१२ सिरपुर हे स्थान कस्तूरि पाहे, इसमें बताया है कि देखो-उस श्रीपाल राजा का कोड तीर्थ से याने गंधोदक जल से गया, (१०) अतः बरी मूर्ति अंतरिक्षाची पाहे ॥१॥ मनीं मानसीं दिसते शिरपूर, 'बापु' कहते हैं शिरपुर यात्रा को चलो। बरी रचना केली स्वामीची थोर । (३४) तीर्थ वंदना-(अज्ञात कर्तृत्व-काल) श्रीपालसी स्वामी प्रसन्नचि झाला, 'धर्म वासना हृदयी राहविज, स्वमी पूजता कोड निघून गेला ॥२॥ अंतरिक्षस्वामी मनांत ध्याइ जे। त्या कालसी तो रहि करवितो, प्रसन्न प्रत्यक्ष जनामध्ये होय, कच्या सूताने रथहि गुंफवितो। सिरपुरांत नग्रांत प्रानंद होय ॥२॥मादि रथावर तो स्वामी बैसोनि बोझे, [३६] पंडित चिमण-(१९वीं सदी) ये एक सूर्याहूनि ते रूप अधिक साजे ॥३॥ उत्कृष्ट कवि और कीर्तनकार थे । तथा मांत्रिक भी थे। वरे बैसले स्वामी श्रीपाल राजे, कहते हैं उन्होंने कारंजा के बलत्कारगरण मदिर के मूल बरे चालवी रथ तो पावसाज। नायक श्री १००८ चद्रप्रभु को एक कीर्तन में हमाया था, और पंचो की अनुमति पाकर उस मूर्ति को पैठण [पट्टण] उभा राहुनि पाहतो राय मागे, रथ गहिले स्वामी गयाची जागे ॥४॥ में मुनिसुवत स्वामी के पास रखा था। इनके मुप्रभाली में असे पाहुनि स्वामी चिनीत भाले, 'सिरपुर नगर अति थोर ग्राम, ____स्वामी अंतरिक्षा असे काय केले । मादि। तेथे बाग बगिचे फुलवाड़ी विथाम । [३७] गुरु दयानकीर्ति [सं० १९३०-३२] ये तेथे अन्तरिक्ष असे पार्श्वनाथ, बलात्कारगण लातूर शाखा के भ० चन्द्रकीर्ति के शिष्य थे। सदा वंदितो कर जोडोनि हाथ ॥१॥ इनका एक पद नीचे दे रहा हूँ।
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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