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गव-बासौदा के जन मूर्ति या यंत्र लेख
चन्दनकल्प' अथवा वासीचन्दनसमानकल्पा शुरू हुआ है। हुमा है। इन व्याख्याकारों ने सम्भवतः नोक प्रसिद्ध सम्भव है, अभयदेवमूरि प्रादि व्याख्याकार जिन्होंने सुभाषितों पोर सूक्तियों के माधार पर अपनी व्याख्याएं उपयुक्न दूसरी तथा तीसरी व्याख्या को स्वीकार किया की हैं। यद्यपि दूसरी और तीसरी व्याख्या प्रयथार्थ नहीं है। इसी सूक्त के विस्तृत रूप से अवगत न हो, जिसका हैं, फिर भी उनमें मूल मर्य का प्रतिनिधित्व नहीं हरा है। प्रयोग 'जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र' में "वासीतच्छणे अट्ठ
जहां तक डा. जैकोबी की व्याख्या का सम्बन्ध है, चंदणाणलिवणे मस्ते" अथवा महाभारत में वास्येक तक्षतो
यह स्पष्ट है कि वह पूर्णतया प्रयथार्थ और निराधार है। बाई चन्दमेनकभुक्षनः" के मविम्नार शब्द-विन्यास के साथ
इसमें कोई सन्देह नहीं कि डा. जैकोबी जैनधर्म और सत्र' की वृत्ति में तथा 'हारिभद्रीय अष्टक' की वृत्ति प्राकृत भाषाओं के प्रकाण्ड विद्वान थे. फिर भी प्रस्तुत (जिसका परिष्कार अभयदेवसरि ने किया है) मुक्त की व्याख्या के मौलिक अन्यों में हुए प्रयोग से उन्होंने जो व्याख्या की है, वह स्वयं हरिभद्रमरि की परिचित होने के कारण यहां तो अवश्य ही वे भ्रान्त व्याख्या से भिन्न है।
धारणा के शिकार हुए है।
गंज-वासौदा के जैन मूर्ति व यंत्र लेख
श्री कुन्दनलाल जैन एम. ए. एल. टी. सा. शा.
गजबासौदा मध्य प्रदेश के विदिशा (भेलमा) जिले विद्वान भद्रारकों एवं विद्वानों प्रादि का परिचय मिलता की एक तहसील है, जो मध्य रेलवेके बीना-भोपाल सेक्सन है। पर स्थित है। यहां व्यापार की अच्छी मंडी है। पहले भी मति-लेख---- यह स्थान अच्छा सम्पन्न रहा है। यहां जैनियों का पुरा- चौबीमी पीनल की-मं. १६७४ जट मुदि नवमी तन काल में अच्छा प्रभाव था। ऐसा यहा के प्राचीन चन्द्रे मूल-संधे सरम्वनी गच्छे बलात्कारगणे कुण्डकुन्दामन्दिगें, मूर्ति-लेखों यत्रों तथा शास्त्र-भंडार के अच्छे चार्यान्वये भ० या.कीनि. नस्पट्ट भ० ललितकोति सकलन से जान पड़ता है। १५वीं १६वीं शताब्दी में इम उपदेशान् जैमवालान्वये कोटिया गोत्र चौ० पूरणमल नगर की मम्पन्नता का दिग्दर्शन, मूर्तियो की प्रतिष्ठा नथा भार्या मानमती तयो पत्राः चौ० पग्मगम भार्या कमलामन्दिर निर्माण आदि से ज्ञान होना है। यहा पर अब भी बनी पुत्र मुदर्शन भ्रा० गजमल भार्या परभा (प्रभावती) ५-७ प्राचीन मन्दिर दि० जैन मन्दिर है जिनमें अनेको चौ० परमराम प्रणमति । मूनि लेख व यंत्र लेख तथा प्राचीन हस्तलिखित ग्रथों का (२) चौबीमी पीनल को-म० १५३४ वर्षे प्राषाढ़ अच्छा संग्रह विद्यमान है। मैंने यहा के मन्दिरों के मूर्तिलेख मुदी २ गुरो श्री काष्ठासंघे माथुरान्वये पुष्करगणे म. लिये थे, जिनमें से कुछ का विवरण "सन्मति मंदेश" के कमलकीति देवास्तत्पर्ट भ० शुभचन्द्र देवास्तदाम्नाए पिछले अंकों में प्रकाशित हो चुका है। अनेकान्त के पाठकों अग्रवाल जातीय मंगही भोज भार्या नखमी देवी तत्पुत्राः को बासौदा के धूसरपुरा के मन्दिर में स्थित मूर्ति व यंत्र- या. मं० महणमीह भार्या रतनपालही पुत्र साधारणः । लेव प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिनका इतिहास की दृष्टि से म० भोजू द्वितीय पुत्र: म० जिणदास भार्या दोगोहलाही बड़ा महत्व है। इन मूर्ति लेखों मे विविध जानियों के तयोः पुत्राः चत्वारः सं० दिनू भार्या ज्ञानचद ही पुत्र प्रतिष्ठाकारक श्रावक धावकाओं और मूल संघादि के लवणमींह दि. भार्या अमरादे पुत्र हारनु, मंजिणदास