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अनेकान्त
_ "He was indifferent to success or failure मुझे लगता है कि चन्दन के साथ 'वासी शब्द का प्रयोग (in begging), to happiness and misery, to होने से वासी कोई 'दुर्गन्धयुक्त पदार्थ' या 'विष्ठा' का
life and death, to blame and praise, to द्योतक होना चाहिए। honour and insult."
प्रस्तुत प्रकरण का सूक्ष्म अवलोकन करने से ज्ञात "He had no interest in this world and no होता है कि डा. जेकोबी और प्रवचुरिकारने 'वासी' interest in the next world. he was indifferent और 'वासीचन्दनकप्पो' की जो व्याख्याएं दी हैं, वे यथार्थ to impleasant and pleasant things, to eating नहीं हैं। प्रवचूरिकार ने 'वासी' शब्द को 'वास'-रहने and fasting."'1
के स्थान के साथ जोड़कर उससे 'थवई' अर्थ निकाला है, वह लाभ-लाभ, सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु, निदा-प्रशंमा जबकि डा० जेकोबी चन्दन के साथ वासी का प्रयोग होने तथा मान-अपमान में उदासीन था।
के कारण 'वास' को 'गन्ध' मानकर 'वासी' का अर्थ 'दुर्गउसको (मृगापुत्र को) न तो इस लोक में दिलचस्पी न्धयुक्त पदार्थ' या विष्ठा करते है। थी, न परलोक में, 'अप्रीतिकर और प्रीतिकर वस्तुओं के कल्पसत्र के प्रति तथा प्राहार करने और उपवास करने के प्रति
इन व्याख्यायों की यथार्थता-अयथार्थता पर चिन्तन उदासीन था।
करने से पूर्व कल्पसूत्र में प्रयुक्त इसी शब्दावलि को भी 'प्रीतिकर और प्रीतिकर वस्तु', इन शब्दों की पोर देखना आवश्यक है। वहां चौबीसवे तीर्थकर भगवान् चिन्तन अपेक्षित है। डा. जेकोबी के अनुसार 'वासी' शब्द महावीर का जीवन-वृत्त एवं साधना का क्रम उपलब्ध अप्रीतिकर वस्तु और चन्दन शब्द प्रीतिकर वस्तु के द्योतक होता है। हैं । डा. जेकोबी ने 'वासीचन्दनकप्पो' पर एक टिप्पणी -
१. यह प्रवचूरिकार कौन है, इसका उल्लेख डा. जेकोबी भी दी है। उसमें वे लिखते हैं :
ने नहीं किया है । भूमिका में प्रवचूरि के परिचय में "Vasi Kandana2-Kappo. The author
उन्होंने इतना ही लिखा है कि इसकी एक रंगीन of the Avakuri explains this phrase this he
प्राचीन पाण्डुलिपि मुझे स्टेस्वर्ग युनिवर्सिटी लायब्ररी did not like more a man who anoints himself
से प्राप्त हुई। यह अवचूरि शान्त्याचार्य की वृत्ति का with sandal than Mason, Apparently he
ही एक संक्षिप्त रूप है, ऐसा प्रतीत होता है, क्योंकि gives to vasa the meaning dwelling', but |
इसके बहुत सारे परिच्छेद देवेन्द्रगणी की टीका से think that the Juxtaposition of KANDANA
शब्दशः मिलते हैं। (देवेन्द्रगणी की टीका शान्त्याcalls for a word denoting a bed smelling
चार्य की वृत्ति पर आधारित है) S. BE Vol substance perhaps ordere."3
XI.V. Introduction) हरी दामोदर बेलनकर ने 'वामीचन्दनकप्पो' इसकी व्याख्या करते हग अवचरि
'जिनरत्नकोप' (पृ. ४४, ४५) मे चार प्रवचूरियों कार ने लिखा है : 'वह (मगापुत्र) अपने पर चन्दन
का उल्लेख किया है, जिनमें एक तपागच्छ के देवविलेपन करने वाले को थवई (राजा) से अधिक अच्छा नहीं समझता।' स्पष्टतया, प्रवचरिकार ने यहा 'वास'
सुन्दर मूरी के शिष्य ज्ञानसागर सूरि (म० १४४१) का अर्थ 'रहने का स्थान' (या मकान) किया है, परन्तु
की है, दूसरी जानशीलगणी (?) की है, तीसरी
(मं० १४८८) की है, चौथी के रचयिता प्रज्ञात है। 1. S.B.E.. Vol. XIV. p.p. 98, 99.
इन चारों प्रवचरित्रों की पाण्डुलिपि के उपलब्धि २. डा. जेकोबी की संज्ञा पति में 'K' का प्रयोग 'च' स्थानों में स्टेस्वर्ग का उल्लेख नहीं है। अतः यह के लिये किया गया है।
जानना कठिन है कि जेकोबी द्वारा प्रयुक्त प्रवचूरि 3. S.B.E. Vol. P.A.A. footnote.
के कर्ता कौन हैं।