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साहित्य में अंतरिक्ष पार्श्वनाष धोपुर
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होङ, यह तो सद्गुण, श्री [लक्ष्मी] और कीर्ति का १६. श्रीपाल दर्शन-प्रज्ञात कर्तृत्व-जलकूप से साक्षात् धाम ही है। प्रादि भावपूर्ण यह जयमाल विदोष पार्श्वनाथ की श्रीपाल राजा को प्राप्ति होने पर उसके जो महत्त्व को है । इसका झवट है
भाव होते है उसका पूर्ण दिग्दर्शन इसमें है।'शून्य वेदरूपी चन्द्र सुवर्षे, मार्गशीर्ष द्वितीया सुत हर्षे ।। 'जिन प्रतिबिंब देखियो जब, जे कार उच्चरे तवै। विश्वभूषण पूजा कृत प्राप्तं, तेन वंदित दुर्गतिघातम् ॥" जै जै निहकसंकजिन देव, जै जै स्वामी अलख प्रभेव ॥२
१६. पण्डित गंगादास [सं० १७४२-४३] बलात्कार सुरनर पुनि मिली पावै सेव, मुनिजनमरम नजाने भेव । गण मलयखेडका पाठ कारंजा में स्थापन करने वाले भ० ज कंदपंगज दलनमृगेश, जै जै चारित्र धराधासेस। ... धर्मचन्द्र [द्वितीय] के ये शिष्य थे। इन्होंने कारंजामें रहकर जै जै क्रोधसर्पहतमोर, जज प्रज्ञान रज निहत भोर ॥ बहुत साहित्य सेवा की है। इनकी जयमाल प्रारति में।' जै जै निराभरण शुभसंत, जे जे मुकति कामिनी कंत। अन्तरिक्ष प्रभु की वंदना का उल्लेख मिलता है । देखो- बिनु प्रायुध कछु अंक न रहै, रागद्वेष ताके न वह ॥६ जयमाल 'वर बोध निधान मनंत बलं,
धन्य पाय मेरे भये अब, तुमले पानि पहुचों जब । गतजन्म जरामय मोह मलम् ।
प्राज धन्य मेरे कर भए,स्वामी जिन प[पा] रस नमए । प्रयजेऽधरपार्श्वजिनेंद्रपरं
जाके कुल मारग नहि देव, नहि जाने दस लग्वन भेव ॥१७ शिव सम्पतिसागरचन्द्रवरम् ॥ प्रादि । जाके गुरु निरग्रंथ न होई, ताको विवेक कहां ते होई। प्रारति-प्रथम नमन माझे, परब्रह्मचरणा,
याते मैं तुम दरसन लयो, प्रातम अनुभो मो सौ करपी १८ अश्वसेनराया वामानन्दना ।
तुम परमातम सिद्धनिदान, तुम परहंत मोक्षपद दान । अन्तरिक्ष स्वामी त्रिभुवन नन्दना,
तुम चितत संसय दुख हरी, तुम सुमिरत अजरापद करो।१६ मनमोहन महाराज मुक्ति रंजना ॥
भक्ति वीनती करो उछाह, भव नासे मुझ शिवपुर लाह । जयदेव जयदेव, जय श्रीपुरराया,
भव्य जीव धीपाल नरेश, हाथ जोरि के प्ररज करेस २० सद्भावे प्रारति अपित तब पाया ॥ प्रादि ॥
२०. झलना-श्री. न्याहालचन्दकृत [अज्ञात काल] १७. भ. कल्याणकीर्ति स० १७००] ये बलात्कार
-भट्टारक थी छत्रसेन [सं० १७५४] कृत भूलने में गण लघुतरशाखा के भ० शांतिकीर्ति के उत्तराधिकारी थे।
इसका उल्लेख मिलता है । प्रतः हो सकता है भ० छत्रसेन इन्होंने भी स्वरचित अष्टक जयमाला से अन्तरिक्ष प्रभु की
जी का हि दीक्षापूर्व नाम न्याहालचन्द होगा। ये श्रीपुर पूजा की। देखो
को पारसकूल कहते है। साथ में खरदूपण राजा ने ही 'स्वधु नि समुद्भवेन शीतलेन वारिणा ।
प्रभु को जल में लय रखे ऐसा बताते है । देखोचारु चन्द्र मिश्रितेन पापतापहारिणा ॥
'सीरपुर म्याने अन्तरिक्ष केहने, भुक्तिमुक्तिसारसौख्य दायिणी सतां यजे,
जिसका नाम पारसकूल जगजाने। अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ चारुपादपंकजे ॥ प्रादि ।
श्रीपाल भूपाल का कोड गया, इनके जयमाल में 'श्रीपाद द्वितीयं निरसादुरितं' प्रादि
य तो बात सारी प्रफरीग ज्याने ॥ उल्लेख है।
खरदूख राजा की खूब पूजा, १८. पामो [सं० अज्ञात] ये काष्टा संघ के भ०
प्रभु लय रखे जलग्याने । वासवभूषण के शिष्य थे। जिन ग्रह जयमाला मे वे इन
न्याहाल तो हाल तारीफ करे, प्रान्तरिक्ष प्रभु की वंदना करते हैं।
य तो जागती ज्योत कल जुगम्याने ॥ (क्रमशः) मुनिसुव्रत पैठण अभिरामं, एरंडवेल नेमीश्वर धाम । अन्तरिक्ष प्रभु श्रीपुरनाथं, पाबुगड नमो जोडी सुहाथ ।३०। १. चारित्रधर+घरसेस (प्रधर है शैया जिसकी, ऐसा)