SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९८ अनेकान्त विद्यानुवाद नाम के पूर्व का प्रारम्भ णमोकार मन्त्र से ही शताब्दी माना जाता है। उन्होंने एक स्थान पर 'शान्ति हमा था। विद्यानुवाद मन्त्र-विद्या का अपूर्व ग्रन्थ था। यन्त्र' की महत्ता के संबंध में लिखा है, "शमयतिदुरितश्रेणि श्री मोहनलाल भगवानदास भावेरी ने जैन मन्त्र-शास्त्र दमयत्यरिसन्तति सततममौ। पुष्णाति भाग्यनिचयं मुष्णाति का प्रारम्भ ईसा से ८५० वर्ष पूर्व, प्रति तीर्थकर पार्श्व- व्याधि सम्बाधाम४ ॥" तात्पर्य है-शान्ति यन्त्र की पूजा नाथ के समय से स्वीकार किया है। हो सकता है कि से रोग. पाप, शत्र और व्याधियाँ उपशम हो जाती हैं, पार्श्वनाथ के समय में भी '१४ पूर्व' पहले से आई हुई और मौभाग्य का उदय होता है । शान्ति के लिए 'शान्ति विद्या' के रूप में प्रतिष्ठित रहे हों। उपलब्ध पुरातात्त्विक पाठ' भी किये जाते हैं। वे मन्त्र-गभित होते हैं। अनेक सामग्री के प्राधार पर णमोकार मंत्र' का प्राचीनतम दिन विधिवत् उनका पाठ होता है। आज भी उनका उल्लेख हाथी-गुम्फ के शिलालेख में प्राप्त होता है, जिसके प्रचलन है। प्रति वर्ष अनेक स्थानों पर उनके पाठ का निर्माता सम्राट् खारबेल ईसा से १७० वर्ष पूर्व हुए है। आयोजन किया जाता है। इन मन्त्र-यन्त्रों में इहलौकिक 'शान्ति' का आधार केवल णमोकार मन्त्र' ही नहीं शान्ति की अमोघ शक्ति मानी गई है। किन्तु उनका मुख्य है, अन्य अनेक मन्त्र भी हैं। यहाँ सबका उल्लेख सम्भव उद्देश्य पारलौकिक शाश्वत शान्ति ही है। उनका मूल नहीं है । वे एक पृथक निबन्ध का विषय हैं। मन्त्र क्षेत्र स्वर 'आध्यात्मिक' है 'भौतिक' नहीं। यह ही कारण है में यन्त्रो की भी गणना होती है। उनमें एक शानि यन्त्र कि उनमें वज्रयानी तान्त्रिक सम्प्रदाय की भांति व्यभिभी है। मन्दिरों में इसकी स्थापना की जाती है पोर चार, मदिरा और मांस वाली बात नहीं पनप सकी। जैन उसकी पूजा-अर्चा होती है। 'मन्त्राधिराज कल्प' नाम के देवियाँ मन्त्र की शक्तिरूपा थीं। उन्हे मन्त्र के बल पर ही ग्रन्थ में शान्ति यन्त्र' की पूजा दी हुई है। इसके रचयिता साधा जा सकता था। किन्तु ऐसा कभी नहीं हुआ कि एक सागरचन्द्र सूरि नाम के साधु थे। उनका समय १५वी उन मंत्रो के साथ नीच कुलोत्पन्न कन्याओं के प्रासेवन की १. कहा जाता है कि मुनि सुकुमारसेन (७वीं शताब्दी बात चली हो। ऐमा भी नहीं हुग्रा कि भाद्रपद की अमाईस्वी) के विद्यानुशासन मे विद्यानुवाद की बिखरी वस की गत में एक मौ सोलह कुपारी, सुन्दरी कन्याओं सामग्री का संकलन हुआ है। विद्यानुशामन की की बलि से वे यत्किञ्चित् भी प्रसन्न हुई हो। वे कराला हस्तलिखित प्रति जयपुर और अजमेर के शास्त्र थी, किन्तु उनकी करालता व्यभिचार या मदिरा-मास से भण्डारों में मौजूद है। से तृप्त नहीं होती थी। सतगुणों का प्रदर्शन ही उन्हें 2. "Mr. Jhaveri thinks that the Man सन्तुष्ट बना सकता था। इमी भांति जैन साधु मन्त्र विद्या trasastia among the Jains is also के पारंगत विद्वान थे, किन्तु उन्होने राग सम्बन्धी पदार्थों __ में उनका कभी उपयोग नही किया । जैन मन्त्र सांसारिक of hoary antiquity. He claims that its antiquity goes back to the days वैभवों के देने में सामर्थ्यवान होते हए भी वीतरागी बने of Parsvanatha, the 23rd Tirthan रहे । वीतरागता ही शान्ति है। उसका जैसा शानदार kara, who flourished about 850 समर्थन जैन मन्त्र कर सके, अन्य नही । जैन भक्ति कान्य और मन्त्रों की सबसे बड़ी विशेषता B.C." है उनकी शान्तिपरकता। कुत्सित परिस्थितियों और Dr. A.S. Altekar, Mantra Shastra संगतियों में भी वे शान्तरम से दूर नहीं हटे। उन्होंने and Jainism', Jaiu Cultural Re कभी भी अपनी प्रोट में शृंगारिक प्रवृत्तियों को प्रश्रय search Society, Banaras Hiudu University, Banaras, P. 9. ४. श्री सागरचन्द्र सूरि, मन्त्राधिराजकल्प, जैनस्तोत्र 3. V.A. Smith, Early History of India, संदोह, भाग २, मुनि चतुरविजयसम्पादित, अहमदाOxford, 1908, P. 38, N.I. बाद, सन् १९३६, ३३वा श्लोक, पृ० २७७ ।
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy