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________________ १५७ विषय-सूची निवेदन विषय पृष्ठ वीर-सेवा-मन्दिर एक शोध-सस्था है। इसमें जैन१. श्री मिद्ध-स्तवनम्-धवला टीका ४५ | साहित्य और इतिहास की शोध-खोज होती है, और अने२. विदर्भ में जैनधर्म की परम्परा कान्त पत्र द्वारा उमे प्रकाशित किया जाता है। अनेक - [डा. विद्याधर जोहग पुरकर] १४ | विद्वान रिमर्च के लिए वीर-मेवामन्दिर के ग्रन्थागार मे ३. यशस्तिलक में चचित-पाश्रम व्यवस्था और पुस्तके ले जाते है। और अपना कार्य कर वापिस करते मन्यस्त व्यक्ति | हैं। समाज के श्रीमानों का कर्तव्य है कि वे वीर-सेवा-डा. गोकुलचन्द्र जैन एम. पी-एच.डी. १४६ | मन्दिर की लायब्रेरी को और अधिक उपयोगी प्रकाशित ४. सेनगण की-भट्टारक परम्पग अप्रकाशित साहित्य प्रदान करे। जिससे अन्वेषक विद्वान -[पं० नेमचन्द धन्नसा न्यायतीर्थ] १५३ | पूरा लाभ उठा सके । पाशा है जैन साहित्य और इतिहास ५. नीर्थकर मुपार्श्वनाथ की प्रस्तर प्रतिमा के प्रेमी सज्जन इस ओर ध्यान देंगे। -ब्रजेन्द्रनाथ शर्मा एम. ए. प्रेमचन्द जैन ६. भ० विश्वभूपरण की कतिपय अज्ञात रचनाएँ सं० मन्त्री वीरसेवामन्दिर -थी अगरचन्द्र नाहटा २१, दरियागज, दिल्ली। ७. अप्रावृत और प्रतिमलीनता -मुनि श्री नथमल ८. अपराध और बुद्धि का पारस्परिक सम्बन्ध अनेकान्त के ग्राहकों से -साध्वी श्री मंजना __ अनेकान्त के प्रेमी पाठकों से निवेदन है कि वे अपना ६. सम्यग्दर्शन-माध्वी श्री संघमित्रा | वार्षिक मूल्य शीघ्र भेज दे । जिन ग्राहको ने अभी तक १०. कल्पसिद्धान्त को मचित्र स्वर्णाक्षरी प्रशस्ति अपना वापिक मूल्य नही भेजा है । और न पत्र का उत्तर -कुन्दनलाल जैन एम. एल. टी. ही दिया है। उनसे सानुरोध प्रार्थना है कि प्राना वे वार्षिक ११. अतिशय क्षेत्र प्रहार-श्री नीरज जैन] १७७ | मूल्य ६) रु० शीघ्र भेजकर अनुग्रहीत करे। अनेकान्त १२. श्री मोहनलाल जी ज्ञान भडार सूरत की जैन समाज का ख्याति प्राप्त एक शोध पत्र है, जिसमें ताडपत्रीय प्रनिया धार्मिक लेखों के शोध-खोज के महत्वपूर्ण लेख रहते -[श्री अगरचन्द नाहना] १७६] है। जो पठनीय तथा संग्रहणीय होते है। १३. अपभ्रंश भाषा की दो लघु गमो रचनाएँ -व्यवस्थापक -डा० देवेन्द्र कुमार शास्त्री १८४ अनेकान्त १४. निश्चय और व्यवहार के कपोल पर वीर सेवा मन्दिर २१ दरियागंज, दिल्ली । षटप्राभृत एक अनुशीलन-मुनिश्री नथमल १८८ १५. साहित्य-समीक्षा-परमानन्द जैन शास्त्री १९२ * अनेकान्त का वार्षिक मूल्य ६) रुपया सम्पादक-मण्डल एक किरण का मूल्य १ रुपया २५ पै० डा० प्रा० ने० उपाध्ये अनेकान्त में प्रकाशित विचारों के लिए सम्पादक डा०प्रेमसागर जैन मण्डल उत्तरदायी नहीं है। श्री यशपाल जैन १६२ १७५
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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