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________________ ११८ अनेकान्त राजकुमार पार्श्वनाथ अपने साथियों के साथ वन के लिए कथा से दूसरी कथा निकलती गई है और इस भाँति रस भी जाया करता था। एक बार वे बन केलि से लौट रहे की गति अवरुद्ध होकर मृतप्रायः सी हो गई है। पार्श्वथे कि एक साधु को अग्नि कुण्ड में डालने के लिए लकड़ी पुराण में एक भव के लिए एक ही कथा है। कोई-कोई चीरते हुए देखा । उन्होंने कहा कि इस लकड़ी में एक नाग कथा तो एक चित्रसी प्रतिभासित होती है। यद्यपि मुख्य जोड़ा है इसे मत चोरो, किन्तु वह न माना और नाग कथानक में पार्श्वनाथ के पंच कल्याणकों का विवेचन रूढि दम्पत्ति के प्राण समाप्त हो गये । वह साधु पार्श्वनाथ का बद्ध ही है, किन्तु धरणेन्द्र और पद्मावती की कथा के नाना राजा महीपाल था, जिसने अपनी पत्नी की मृत्यु से संयोग से उसमें रुचिरता उत्पन्न हुई है। कथा के परम्परावैराग्य धारण कर लिया था और बनारस के समीपस्थ वन नुगत होने पर भी, प्रस्तुत करने के ढग और विशेषकर में तप कर रहा था। पार्श्वनाथ को देखते ही उसका पूर्व चित्रमयता तथा दृष्टातों की छटा ने ग्रन्थ को मौलिक वैर उदित हो पाया और वह क्रोध में भरकर लकड़ी चीर बना दिया है। अंग्रेजी के प्रसिद्ध नाटककार शेक्सपियर उठा। क्रोधवशात् ही उसने राजकुमार के कथन को नहीं के नाटकों में कथानक किसी न किसी प्राचीन कथा से लिए माना । नागदम्पत्ति मरकर धरणेन्द्र और पद्मावती हए गये हैं१ किन्तु नायकों के केवल स्वगत कथनों ने उन नाटकों जो नागलोक के राजा और रानी थे। कालान्तर मे साधु को मौलिकता प्रदान की है। पार्श्वपुराण की घटनाओं मरकर ज्योतिषी देव हुआ। का चित्रवत् प्रस्तुतीकरण दृष्टान्तों की सहायता से विस्तार समय पाकर पार्श्वनाथ में वैराग्य का भाव उदित का परिहार, भाषा की सरलता और प्रवाहमयता ही उसकी नवीनता है। हुमा । लौकातिक देवों ने उसे और भी पुष्ट किया। वे चार निकायों के इन्द्रों के द्वारा मनाये गये महोत्सवों के चित्रांकनसाथ जिन दीक्षाधारण कर, वन मे तप करने चले गये। मरुभूति का जीव सल्लकी वन में वजघोष नाम का एक बार पार्श्वनाथ योगमुद्रा में कायोत्सर्ग धारण किये हस्ती हुमा। उधर राजा अरविन्द वैराग्य धारण कर खड़े थे। उधर से कमठ का जीव सम्बर नाम का ज्योतिपी दिगम्बर मुनि बन गये। एक बार वे 'सारथ वाही' के संग निकला। पूर्वभव के बैरस्मरण से उसने घोर उपसर्ग शिखर सुमेरु की वंदना के लिए चले। सल्लकी वन में किया। फणीश धरणेन्द्र का प्रासन कांपा। वह पद्मावती पहुंचे और कुछ समय के लिए संघ सहित ठहर गये । को लेकर रक्षा करने पाया । ज्योतिषी देव भाग गया। गजराज व गजराज वज्रघोष ने गर्जना करते हए संघ पर आक्रमण भगवान् को केवल ज्ञान उत्पन्न हया । धनपति ने समोसरण । कर दिया। काल के समान क्रोधित हाथी को देखकर संघ की रचना की । भगवान् ने दिव्य उपदेश दिया और फिर में खलबली मच गई। लोग भागने लगे। गज का जिमे विहार किया। अन्त में आयुकर्म के क्षीण हो जाने पर भी धक्का लग गया, वह परलोक पहुँच गया। मार्ग के थके उनका निर्वाण हो गया। हए घोड़े, बैल और गधों को उसने मार डाला। इस प्रकार संहार करता हुआ वह हाथी विकराल रोष विष इस महाकाव्य की कथा में पार्श्वनाथ के जन्म से ही है हा से भरा हुमा मुनि के सम्मुख अाया। उसने ज्यों ही सुदनहीं, अपितु नौ भवपूर्व से निर्वाण पर्यन्त का वर्णन है। शंन मेरु के समान और वक्ष है चिह्न जिसके वक्षस्थल में नौभवों की कथानों में से प्रत्येक कथा सरस है। इन ऐसे मनिराज को देखा और शान्त हो गया। मुनि के उपदेश कथानों को ही अवान्तर कथा कहा जा सकता है। उनके से उसने अणवत धारण किये। संयोग से मुख्य कथानक में और अधिक सरलता पाई है। 1. Shakespeare 11. almost every instance पं० रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार अवान्तर कथायें रस की derived his plots from Somebidy else's पिचकारियाँ होती है । इन कथाओं ने भी रस की वर्षा की work, DAVID DAICHES A critical है। संस्कृत, अपभ्रंश और हिन्दी के अनेक महापुराणों में His story of English Literature Valume 1 ये अवान्तर कथायें एक जटिल जालसा बन गई हैं। एक Ed. 1960-Page 249.
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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