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शब्द-चिन्तन : शोध-दिशाएँ
मुनिश्री नथमल
[यहाँ प्राकृत भाषा के शब्दों का भाषा वैज्ञानिक, व्याकरण-सम्मत और इतिहास-पुराण के प्राचार परसा विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, वह मुनिश्री को विद्वत्ता और सूक्ष्म दृष्टि का परिचायक है। उससे विद्वान पाठक प्रत्याधिक लाभान्वित हो सकेंगे, ऐसा मैं समझ सका है। ये शोध के दुर्गम पथ है, जिन पर साधारमअनुसन्धिसुचलते हुए हिचकता है। मुनिश्री उन पर सहजगति से ही चले चलते हैं। -सम्पादक)
(१) रायवेटि
में गौतम-गोत्र के अन्तर्गत गर्ग गोत्र का उल्लेख हुआ है। रायवेट्ठि का मर्थ है-राजा की बेगार१। राजस्थान इसलिए शान्त्याचार्य वाला अर्थ ही संगत लगता है । सर में इसे 'बेठ' कहते है (विट्टि वेटूि-बेठ), यह देशी शब्द है। पेन्टियर ने यह अनुमान किया है कि-गर्ग शब्द देशीनाममाला में इसका पथ प्रषण' किया है। उपदेश अति प्राचीन है और वैदिक साहित्य में इसका प्रयोग हुआ रत्नाकर (५ ६११) में इसका अर्थ 'बेगार' किया है। है । इसके निकट के शब्द गार्गी और गार्य भी ब्राह्मणप्राचीन समय में यह परम्परा थी कि राजा या जमीदार युग से सुविदित है। सम्भव है कि उस समय मे गर्ग नाम गांव के प्रत्येक व्यक्ति से बिना पारिश्रमिक दिए ही काम वाला कोई ब्राह्मण मुनि रहा हो और जैनों ने उस कराते थे। बारी-बारी से सबका कार्य करना पड़ता था। नाम का अनुकरण कर अपने साहित्य में उसका प्रयोग इसी की भोर यह शब्द संकत करता है। जेकोबी 'विट्ठि' किया हो। उत्तराध्ययन में पाए हुए 'कपिल' मादि शब्द का अर्थ 'भाड़ा', "किराया करते हैं। किन्तु यहाँ यह उप- के विषय में भी ऐसा ही हुआ है। किन्तु ब्राह्मण लोग युक्त नहीं है।
जैन-शासन में प्रव्रजित होते थे, इसलिए ब्राह्मण-मुनि नाम (२) गग्ग:
का अनुकरण कर यह अध्ययन लिखा गया, इस अनुमान इसके दो सस्कृत रूप होते हैं-गर्ग और गार्म्य ।
, के लिए कोई पुष्ट आधार प्राप्त नहीं है । 'गर्ग' व्यक्तिवाची शब्द है और 'गाय' गोत्र-सम्बन्धी। (३) खलंक: शाम्त्याचार्य ने इसका सस्कृत रूप 'गाय' देकर इसका 'खलुक और खुलुंक' ये दोनों रूप प्रचलित हैं । नेमिअर्थ गगंसगोत्र:' किया है। नेमिचन्द्र ने इसे 'गर्ग' शब्द चन्द्र ने इसका अर्थ 'दुष्ट बैल' किया है३ । स्थानांग वृत्ति मानकर 'गर्ग नामा' ऐसा अर्थ किया है। स्थानांग सूत्र में भी खलुक का अर्थ प्रविनीत किया गया है। खलुक' का
१. बृहद् वृत्ति, पत्र ५५३ ।
"राजवेष्टिमिव' नृपतिहठप्रवर्तितकृत्य मिव । २. २१४३, पृष्ठ ६६ । ३. पाइयसद्दमहण्णव, पृष्ठ ९७१ । ४. दि सेकंड बुक्स मॉफ दि ईस्ट बोलूम ९५५.
उत्तराध्ययन पेज १५१, फुट नोट ३ । ५. (क) बृहद् वृत्ति, पत्र ५५० 'गार्ग्य' गर्गसगोत्रः।
(ख) सुखबोधा, पत्र ३१६ 'गर्ग:' गर्गनामा।
१. ७.५५१
"जे गोयमा ते सत्तविधा पं० नं० ते गोयमा, ते गग्गा, ते भारद्दा, ते मंगिरसा, ते सक्कराभा, ते भक्खराया, ते उदत्ताभा।"
उत्तगध्ययन, पृ० ३७५। ३. सुखबोध, पत्र ३१६-'खलुङ्कान' गलिबृषभान् । ४. स्थानांग बृत्ति ४१३।३२७, पत्र २४०-खलुको
गलिरविनीतः।