SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रात्म-निरीक्षण मात्मा से प्रात्मा को देखो। भगवान महावीर का यह वाक्य प्रात्म-निरीक्षण का मूल मंत्र है। जो भी मनुष्य जीवन में उत्थान का मार्ग प्राप्त करना चाहता है, उसके लिए इससे बढ़कर दूसरा कोई मार्ग नहीं है। ___ "मेरा कौन-सा प्राचार-व्यवहार पशुओं के समान है और कौन-सा महापुरुषों के समान, इस तरह प्रतिदिन आत्म-निरीक्षण करना चाहिए।" संसार में दूसरों को देखने वाले बहुत है, किन्तु स्वयं को देखने वाले थोड़े है। दूसरे के दोषों की ओर बारबार ध्यान जाता है, अपने दोषों की पोर कभी भी नहीं जाता। जब स्वयं के दोष देखता है तो दृष्टि छोटी हो जाती है और जब दूसरों के दोष देखता हूँ तो वह बड़ी बन जाती है। -मुनिश्री राकेश वीर-सेवा-मन्दिर और "अनेकान्त" के सहायक १०००) श्री मिश्रीलाल जी धर्मचन्द जी न, कलकत्ता । १५०) श्री चम्पालाल जी सरावगी, कलकत्ता १०००) श्री देवेन्द्रकुमार न, ट्रस्ट, १५०) , जगमोहन जो सरावगी, कलकत्ता श्री साहु शीतलप्रसाद जी, कलकत्ता १५०) , कस्तूरचन्द जी मानन्दीलाल कलकत्ता ५००) श्री रामजीवन संगवगी एण्ड संस, कलकत्ता १५०) , कन्हैयालाल जो सीताराम, कलकत्ता ५० ) श्री गजराज जी सरावगी, कलकत्ता १५०) , पं० बाबूलाल जी जैन, कलकत्ता ५००) श्री नथमल जी सेठी, कलकत्ता १५०), मालीराम जी सरावगी, कलकत्ता ५००) श्री वैजनाथ जी धर्मचम जी, कलकत्ता १५०) , प्रतापमल जी मदनलाल पांड्या, कलकत्ता ५००) श्री रतनलाल जो झांझरी, कलकत्ता १५०) , भागचन्द जी पाटनी, कलकत्ता २५१) श्री रा. बा० हरख बन्द जो जैन, रांची १५०) , शिखरचन्दनी सरावगी, कलकत्ता २५१) श्री अमरचन्द जी जंन (पहाइया), कलकत्ता १५०) , सुरेन्द्रनाथ जी नरेन्द्रनाथ जी कलकत्ता २५१) श्री स० सि० धन्यकुमार जी जैन, कटनी ०१) , मारवाड़ी दिजैन समाज, व्यावर २५१) श्री सेठ सोहनलाल जी जैन, १०१) , दिगम्बर जैन समाज, केकड़ी मैसर्स मुन्नालाल द्वारकादास, कलकत्ता १०१) , सेठ चन्दूलाल कस्तूरचन्दजी, बम्बई नं. २ २५१) श्री लाला जयप्रकाश जी जैन १०१) , लाला शान्तिलाल कागजी, दरियागंज विलनी स्वस्तिक मेटल वर्क्स, जगाधरी १०१) , सेठ भंवरीलाल जी बाकलीवाल, इम्फाल २५०) श्री मोतीलाल हीराचन्द गांधी, उस्मानाबाद १०१) , शान्ति प्रसाद जी जैन २५०) श्री बन्शीवर जी जगलकिशोर जी, कलकत्ता जैन बुक एगेन्सी, नई दिल्ली २५०) श्री गमन्दरदास जी जैन, कलकता १०१) , सेठ जगन्नाथजी पाण्ड्या अमरीतलैया २५.) श्री सिंबई कुन्दनलाल जी, कटनी १००) , बद्रीप्रसाद जी प्रास्माराम मी, पटना २५०) श्री महावीरप्रसाद जी अग्रवाल, कलकता १००) , रूपचन्दजी जैन, कलकत्ता २५०) श्री बी. प्रार० सी० जैन, कलकत्ता १००) , जैन रत्न सेठ गुलाबचन्द भी होंग्या २५०) श्री रामस्वरूप जी नेमिचन्द्र जी, कलकता इन्दौर १५.) श्री बजरंगलाल जी चन्द्रकमार जो, कलकत्ता | १००), बाबू नुपेन्द्रकुमार जी जैन, कलकता
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy