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________________ ८० अनेकान्त नाम साकेत पड़ गया।' साकेन और विशाग्या में बुद्ध के में होते रहे हैं। प्रादम के दोनों बेटों की क (अयूब और कुछ चातुर्मास विताने और उनकी दोन से वृक्ष उत्पन्न हो शीसकी) अयोध्या में बतलाई जाती हैं। सम्राट अकबर का जाने की घटना का उल्लेख मिलता है। चीनी यात्रियों ने मंत्री अबुल फजल भी दो कत्रों का वहां उल्लेख करता है। अपने यात्रा विवरणों में माकेत और विशाग्वा का उल्लेख 'इम नगर में दो बडी कब्र हैं एक छह गज लम्बी और किया है । इसमे ऐसा जान पड़ता है कि बुद्ध के समय में दूसरी मात गज लम्बी । जन साधारण का विश्वास है कि ये और उसके कई मौ वर्ष के पश्चात् भी अयोध्या यादिनाथ को अयूब और शीमकी हैं२ । अयोध्या एक खुर्द (छोटी प्रादि जैनतीर्थकरों की उपासना का केन्द्र बन रही थी। मक्का) के नाम से प्रसिद्ध है। ऊपर मान की जो व्युत्पत्ति उदृत की गई है. वह इस ११ वीं शताब्दी से पूर्व संभवतः मुसलमानों ने अयोध्या नगर को स्वयं निर्मित होने की प्रादिम कालीन अनुश्रुति का नाम भी न सुना था । महमूद गजनी पहला मुपलमान की ममर्थक है। दूसर कोमल गज्य की नूतन राजधानी सुलतान था, जो लूट-खसोट करता हुअा भारत के मध्य श्रावती को बौद्ध धर्म का केन्द्र बनाया जाना इस बात का प्रदेश में प्रविष्ट हुआ था, किन्तु वह अयोध्या तक नहीं सूचक है कि वहां जैनियों की प्रबलता थी। यही कारण है पहुंच पाया था। उसका प्रतिनिधि और भानजा मैयद मालार कि दशरथ जातक में राम के पिता दशरथ को काशी का मसऊदगाजी जो गाजी मियां और बाले मियां के नाम में राजा बतलाया और सीता को दशरथ की पुत्री. और फिर लोक में प्रसिद्ध है। प्रथम मुसलमान सरदार था जिसने अवध उसी के माय राम के विवाह की बात उल्लिखित की गई पर आक्रमण किया था। वह अयोध्या भी पहुंचा था३ । किन्त है । इसमें स्पष्ट ज्ञात होता है कि बुद्ध का सम्बन्ध प्रयोध्या अयोध्या के तत्कालीन राजा श्री वास्तव ने, जो जनाधर्मावसन होकर विशाग्वा (श्रावती) से रहा है। और उनके लम्बी था, गाजी मियां को भगा दिया था । पश्चात् वह बाद किसी समय अयोग्या में हीयमान सम्प्रदाय के कुछ गाजी आगे बढ़कर मन् १०३२ (वि० सं० १०८६) में स्तूप और संघाराम आदि वहां बने हए थे । जिनका उल्लेख श्रावस्ती पहुँचा, जहां श्रावस्ती के तत्कालीन जैन नरेश ईमा की 9 वीं शताब्दी में चीनी यात्री हुएनमांगने किया सुहिल देवने कोडियाला (कोशल्या) नदी तट पर होने वाले युन्न में समन्य परास्त कर मन १०३३ में मार डाला गया । महात्मा बुद्ध का जन्म कोशल देश के 'कपिलवन्धु फारमी तवारीख में लिखा है। कि कुटिलानदी के किनारे नामक नगर में हुआ था और परिनिर्वाण कशीनगर में। महुए के वृक्ष के नीचे एक तीक्ष्ण बाण लगने से मयदमहावीर और बुद्ध के समय कोसल नरेश प्रमनजिन की सालार का जीवन-प्रदीप बुझ गया । राजधानी श्रावस्ती में ही अनाथ पिण्डक द्वारा बनवाया हुश्रा सन् ११६४ ईस्वी में मुहम्मद गौरी का भाई मरवदूम जेतवन नामक विहार था। और विशाम्बा नाम की प्रमिन्द्र शाहजूरन गौरी सेना लेकर अयोध्या पर चढ़ पाया। उसने उपालिका का पूर्वाराम भी श्रावस्ती क निकट होने की बहुन वहां के सबसे प्राचीन भगवान आदिनाथ के विशाल मन्दिर कुछ संभावना है। इस तरह अयोध्या बुद्ध के पश्चात ही को नष्ट कर दिया, और स्वयं भी उसी स्थान पर युद्ध में किमी समय उनके धर्म का स्थान बनी । जब बुद्धधर्म का संस्थान बनी तब भी वहां जैनधर्म मौजूद था। -देखो, मदीनतुल अोलिया। २-देखो, प्रायने अकबरी भा० २ प्र. २४५ मुसलमानी शासन में अयोध्या 3-देखो, फारसी ग्रन्थ दर बिहिस्त । मनातन, बौद्ध और जैनधर्मो को छोड कर इलाम ४-देखो, अवध गजेटियर भा० पृ. ३ धर्मका सम्बन्ध अयोध्या के साथ अवाचान है। परन्तु -निल्द दरियाय कटिला जर दरख्तो गुलचिकों। मुसलमानों का कहना है कि आदमके समय से ही अयोध्या व जर्व नावक हमचूं मौजान शहीद सुदन्द । विद्यमान है। तब तक अनेक पार और प्रोनिय इस नगर देखो, मैलाने ममजवीअनुवाद मीराते मसऊदी ।
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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