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________________ अयोध्या एक प्राचीन ऐतिहासिक नगर ७६ स्थलों पर उल्लेख किया गया है । भगवती भागधना और प्राधान्य था, और वैदिक ब्राह्मण सभ्यता वहां बाद में निलोय पण्णती श्रादि जैन ग्रन्थों में उसका उल्लेख है। पहुंची। यशस्तिलक चम्पू में मोम देव ने अयोध्या को कोशल देश ईस्वी सन् की दूसरी शताब्दी पूर्व के लगभग महर्षि में बतलाया है। तथा मगधदेश में प्रसिद्ध अयोध्या के बाल्मीकि द्वारा रामायण ग्रन्थ के रचे जाने पश्चात प्राह्मण राजा सगरचक्रवर्ती का उल्लेख किया गया है । परम्पराने अयोध्या के प्राचीन महापुरुष रामचन्द्र को अपनाना वैदिक साहित्य में अयोध्या प्रारम्भ कर दिया था। उस समय उत्तरापथ के शासक मगध वंदनी में कहीं भी अयोध्या या कोशलदंश का के ब्राह्मण जातीय शुगंनरेश थे, जिन्होंने श्रमणों और बौद्धों उल्लेग्व नहीं है । किंतु अथर्ववेद बगा दो में एक स्थान पर पर बड़े अत्याचार किये थे। ब्राह्मण धर्म के पुनरुद्वार का लिखा बिताना योध्या में मार श्रेय भी उन्हें दिया जाता है। उस समय प्रचीन याशिक महल, नवकार और लोहमय धन भंडार है। यह स्वर्ग की क्रिया काण्ड रूप धर्म में क्रान्ति भागई थी, और औपनिषभांति समृद्धि सम्पन्न १३ । शतपथ ब्राह्मण में केवल एक दादिक कं अध्यात्म प्रधान वैदिक धर्म ने पौराणिक हिन्न स्थान पर 'कोशल' का नाम पाया है। हां, प्रसिद्ध वयाकरण धर्म का रूप लेना प्रारंभ कर दिया था। उसी समय से पाणिनीय व्याकरण के एक मूत्र में 'कोशल' का उल्लेख अयोध्या हिन्दू धर्म का केन्द्र बनने लगी थी। अतएव गुप्त अवश्य हुधा है।। काल में वैष्णवधर्म के अवतार वादके विकास एवं प्रचार के पतंजलि महाभाष्य में 'अरूणदयवनः माकनमः दिया परिणाम म्वरूप प्रयो-या की गणना हिन्द धर्म के प्रमुख है जिसमें एक महत्वपूर्ण घटना का उल्लेख किया है. और तीयों में होने लगी थी। बतलाया है कि यवनी द्वारा साकेत पर आक्रमण किया बाल्मीकि रामायण में६, कालिदास के रघुवंश में, कुमारगया था। यद्यपि पंतजलिने उक्त प्रकरण में उसका कोई दाम के जानकादरण और भव-भूति के उत्तर रामचरित परिचय नहीं दिया, किन्तु यूनानी लेखकों के वर्णन में स्पष्ट आदि 'प्रन्यों में अयोध्या का मुन्दर नगर के रूप में वर्णन है कि उस राजा का नाम मिनन्दर था और उसके सिक्कों पर किया गया है। किन्तु भागवत में उसका उत्तर कौशल के भी उसका नाम प्राकृत भाषा में अंकित मिलता है। उस रूप में ही उल्लेग्व हुआ है। (भागवन ५-१६-८) की दृष्टि पाटलीपुत्र (पटना) पर अधिकार करने की थी. बौद्ध माहित्य में अयोध्या प्रतः उसने मथुरा पर अधिकार कर लिया, क्यों कि माकेत बौद्ध माहित्य में अयोध्या का उल्लेख सांकन और को जीतने के लिये मथुरा पर अधिकार करना आवश्यक था विशाग्वा के रूप में मिलता है। दिव्यबादान के अनुसारपश्चात उसने मार्कत पर घेग डाला । पर बाद में उम 'म्बय मागनं म्वयमागनं माकैतं माकेतमिति मंझा संवृत्त'भागना पड़ा। परन्तु प्राचीन ब्राह्मण माहित्यका अयोध्या अर्थात जो श्राप ही पाया प्रापही पाया, इस कारण उसका के सम्बंध में मौन होना इस बात का घोतक है कि प्राचीन काल में इक्ष्वाकु या मूर्य वशी क्षत्रियों की उपासना का - -अयोध्या नाम तत्रास्ति नगरी लोकविक्षता। मनुना मानवेन्द्रण पुचि निमिता स्वय ॥ 1. कोशल देश मभ्यायामयोध्यायो पुरि, पृ० २६३ मायता दश चक्रे च योजनानि महापुरी । २. मगध मध्य प्रसिद्धचाराध्दयामयोध्यायां नरवरः मगरी श्रीमती श्रीणि विस्तीर्ण नानासंस्थानशोभिता । नाम यशस्तिलक पृ. ३५१ । -बालकाण्ड ३-अए चका नव द्वारा देवानां : अयोध्या। -ग्रामीद वनन्यामतिभागभाग___ तस्यां हि हिरण्यमयः कोशः स्वर्गोज्योतिषावृतः॥ डिवोऽ वतीर्णा नगरीय दिया । ४-वृद्ध कोसला जादा जज्यङ ,.,.७१। क्षत्रानलेस्थान शमी समृदया, ५-देखो, जैनेन्द्र महावृत्ति की भूमिका पृ०-१०।। पुरीमयोध्येति पुरी परार्ध्या ॥ -घुवंश
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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