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________________ बाबू कामता प्रसाद जी बाबू कामता प्रसाद जी जैन समाज के अच्छे सेवक उत्साही कार्य कर्ता और साहित्य तथा इतिहास के विद्वान थे। प्रापने मैट्रिक के बाद कोई उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाई थी । किन्तु विद्याभिरुचि और अध्यवसाय से ही अपने ज्ञान की वृद्धि की थी। जैन सिद्धान्त के ग्रन्थों के अध्यपन के साथ साथ आपने भारतीय वाङ - मयक अनेक उच्चकोटि के ग्रन्थों का अध्ययन किया था । आपकी रुचि स्वभावतः इतिहास की ओर भी गई. और अनेक ऐतिहासिक अंग्रेजा प्रन्थों का अध्ययन भी किया। और शोध-खोज के कार्यों में भी अपना समय लगाया । भा० द० जैन परिषद के मुखपत्र 'वीर' का आपने वर्षो तक सम्पादन कार्य किया । जैन सिद्धान्त भवन, आरा ( बिहार ) की पत्रिका के भी आप सम्पादक थे। श्रनेक ग्रन्थों के लेखक अनुवादक तथा अखिल जैन विश्व मिशन के संचालक थे । श्रहिंसा वाणी और वाईस आफ अहिसा जैसे मासिक पत्रों के सम्पादक थे। I बा. कामता प्रसाद जी कहा करते थे कि मेरे हृदय पर स्वर्गीय वैरिस्टर चम्पतराय जी की छाप पडी है, उन्होंने अपने जीवन में महत्वपूर्ण कार्य किया है उसी तरह मेरी मी इच्छा विदेशों में जैनधर्म प्रचार की है। आपने इस दिशा में उचित परिश्रम भी किया । उनका यह कार्य अद्वितीय है। ये पत्र व्यवहार में निपुण थे। कोई भी पत्र दे उसका उत्तर तत्काल देते थे । वे समाज के कर्मठ कार्य कर्त्ता थे, वे स्वयं मिशन थे और उसके प्रचार में लगे रहते थे, वे अपनी धुन के पक्ष थे और विश्व में अहिया का प्रचार करना चाहते थे । यद्यपि यह बहुत कठिन तथा परिश्रम साध्य कार्य है, फिर भी वे उस में अपनी शक्ति लगा कर लोक में जैनधर्म का प्रचार कर उसे विश्व धर्म बना देना चाहते थे। जो कुछ कार्य उन्होंने किया है, को चाहिये कि उस कार्य को आगे बढ़ाने का यत्न करें यहां उनकी है। समाज आपकी रचनाओं में जैन इतिहास भगवान पार्श्वनाथ भगवान महावीर, दिगम्बर और दिगम्बर मुनि आदि अनेक पुस्तकें आपकी लेखनी से प्रसूत हुई | लेखन कार्य करते हुए अपका समग्र जीवन ही व्यतीत हुआ हे । प्रखिल जैन विश्वमिशन द्वारा जैनधर्म का प्रचार करने के लिये अनेक ट्रेक्टों का निर्माण और प्रकाशन कार्य किया । जैन धर्म प्रचार की आपकी उस्कट भावना थी । और उसी लगन का ही परिणाम था कि विदेशों में जैनधर्म का प्रचार कर सके, और विदेशीय विद्वानों से जैनधर्म और अहिंसा पर साहित्य भी लिखवा सके। आप अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भाषाओं में लिखत थे। यद्यपि आपका भौतिक शरीर अब यहां नहीं रहा. किन्तु आपका यशः शरीर सदा विद्यमान रहेगा । साथ ही आपकी कृतियां आपके जीवन को अमर बनाती रहेंगी। आपकी भद्र परिणति, और मिलन सारता जन साधारण को अपनी ओर आकृष्ट किये हुए है। आपने जैन धर्म और जैन समाज की अच्छी सेवा की है। आपके श्राकरिमक निधन में जैन समाज की जो क्षति हुई है उसकी पूर्ति होना कठिन है । अनेकान्त परिवार दिवंगत आत्मा की परलोक में सुख-शान्ति की कामना करता हुआ बीजनों के प्रति हार्दिक समवेदना व्यक्त करता है।
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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